Friday, October 22, 2010

....तो गांव के लोग अब पेटू हो गए!

सचमुच नेताओं को शर्म है कि आती नहीं। आम आदमी जैसे-तैसे महंगाई झेल ही रहा। पर नेताओं को अब गरीबों का झेलना भी गवारा नहीं। इनका वश चले, तो गरीबी भले न मिटे, गरीबों को जरूर मिटा देंगे। सो अबके योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने महंगाई का ठीकरा गांव-गरीबों पर फोड़ दिया। अब इसे बेहयाईपन की हद पार करना न कहें, तो क्या कहेंगे? यों राजनीतिक नफा-नुकसान के लिहाज से आहलूवालिया सही फरमा रहे। सोचो, जब इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। तभी गरीबी मिट जाती, तो आज कांग्रेस क्या घास छीलती? सोनिया-मनमोहन राज में फिर यह नारा कैसे बनता- कांग्रेस का हाथ, गरीब और आम आदमी के साथ। तभी तो दादी इंदिरा से पोता राहुल तक, गरीबी ही राजनीतिक जुमला बनी हुई। अगर गरीब सुखी-संपन्न हो गए, तो फिर राजनीति की दिशा बदल जाएगी। वोट बैंक नाम की चिडिय़ा फुर्र हो जाएगी। सो मोंटेक ने बेलाग कह दिया- गांवों के लोगों की आय और जीवन स्तर बढऩे से खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ी। इसीलिए महंगाई भी बढ़ी। अगर सीधे-सपाट लहजे में मोंटेक उवाच को समझें। तो मतलब यही, गांव के लोग अब पेटू हो गए। यही भाषा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश इस्तेमाल कर चुके। उन ने वैश्विक महंगाई का जिम्मेदार भारत-चीन को ठहराया था। भारत-चीन के लोगों खदोड़ कह दिया था। सो मोंटेक भले अपने योजना आयोग का जिम्मा संभाल रहे। पर लंबे समय तक अमेरिका में काम कर चुके। सो अमेरिकी वेश-भूषा, रहन-सहन के साथ अब भाषा भी वैसी हो गई। पर मनमोहन के बयान बहादुरों में सिर्फ मोंटेक ही नहीं। शरद पवार, मुरली देवड़ा, जयराम रमेश यहां तक कि खुद मनमोहन भी इस होड़ में शामिल। सनद रहे, सो बता दें। अपने शरद पवार ने जब-जब मुंह खोला, महंगाई बढ़ी। हर बार ऐसे बयान दिए, गरीबों का जख्म कुरेद दिया। एक बार कहा था- मैं कोई ज्योतिषी नहीं, जो बताऊं, महंगाई कब कम होगी। फिर चीनी महंगी हुई। तो बयान दिया- चीनी नहीं खाएंगे, तो मर नहीं जाएंगे। फिर चावल उत्पादक राज्यों में रोटी खाने वाली जनता को जिम्मेदार बता दिया। साग-सब्जी, फल महंगे हुए। तो पवार ने कहा था- जब पेप्सी-कोला खरीद सकते, तो महंगी फल-सब्जी क्यों नहीं। पर पवार को छोडि़ए। सही मायने में पवार देश के कृषि मंत्री नहीं, क्रिकेट मंत्री कहे जाते। पर महंगाई ने जब-जब कांग्रेस को घेरा, कांग्रेस और उसकी सरकार ने बेशर्मी की सारी लक्ष्मण रेखा लांघ दी। बाईस मई-2004 को मनमोहन पीएम बने। नवंबर से ही महंगाई ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। फिर वित्त मंत्री रहते चिदंबरम ने बजट पेश किया, तो कुत्ते के खाने वाले बिस्किट की कीमतें घटा दीं। पर बाहर महंगाई पर सवाल हुआ, तो मुस्कराते हुए कहा था- कुत्ते के बिस्किट का दाम घटा दिया। फिर महंगाई रोकने को कोई जादू की छड़ी नहीं वाला बयान तो चिदंबरम से लेकर सिब्बल तक और पूरी कांग्रेस कई बार दे चुकी। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम बढ़े, तो पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया। शीला दीक्षित की अहंकारी टिप्पणियां तो कई बार अपना खून जला चुकीं। चुनाव से पहले गैस के दाम पर सब्सिडी दी, पर चुनाव बाद बेशर्मी से सब्सिडी हटा ली। शीला ने भी कहा था- अकेले महंगाई नहीं बढ़ी, लोगों की आमदनी भी बढ़ी। सो महंगाई पर हाय-तौबा करने की जरूरत नहीं। अब कांग्रेसी नेताओं के इतने सारे बयानात देखने-सुनने के बाद मोंटेक सिंह आहलूवालिया का बयान कांग्रेसी सोच को आगे बढ़ाने वाला ही लग रहा। पर जिस गांव-गरीब को मोंटेक ने पेटू कहा। अब अधिक पीछे नहीं, इसी साल लालकिले के प्राचीर से पीएम मनमोहन जो योजना आयोग के अध्यक्ष भी, उन ने महंगाई पर कुछ यों फरमाया था। उन ने कहा था- महंगाई से सबसे अधिक गरीब प्रभावित हुए। पर मनमोहन के जूनियर मोंटेक तो गरीब को महंगाई का जिम्मेदार बता रहे। आखिर कब तक गांव-गरीब को छलेगी कांग्रेस सरकार। महंगाई के लिए और कितनी वजहें गिनाई जाएंगी? पहले महंगाई को एनडीए से विरासत में मिली बताया। फिर बीजिंग ओलंपिक पर ठीकरा फोड़ा। कभी लोगों की खान-पान की आदत में बदलाव वजह बताई। अब गांव की समृद्धि को वजह बता दिया। सो सवाल राहुल गांधी से। जो भारत को दो हिस्सों यानी, चमकता और पिछड़ा भारत में बांट चुके। खुद को गांव-गरीब का रहनुमा बताते फिर रहे। अब राहुल बताएं, मोंटेक के बयान से कैसे एक ही पायदान पर खड़ा होगा भारत? गांव में आज भी अधिकतर आबादी ऐसी, जो महज दो जून की रोटी के लिए सुबह से शाम तक संघर्ष करती। पर गांव-गरीब की बात करने वाली कांग्रेस महंगाई के इस दौर में गरीबों के खाली पेट को सहलाना तो दूर, उलटे लात मार रही। सो अब कांग्रेस पर जनता कैसे एतबार करे। बिहार चुनाव में सोनिया-राहुल-मनमोहन ने चीख-चीख कर कहा- बिहार के विकास के लिए हमने पैसा दिया। तो शुक्रवार को बीजेपी ने पूछ लिया- क्या इन तीनों ने अपनी निजी संपत्ति में से दिया? पर नेताओं का क्या, अभी कुछ, घंटे भर बाद कुछ। गांव-गरीब की फिक्र तो छोडि़ए, देश को भी भगवान भरोसे छोड़ रखा। अलगाववादी नेता सैयद अलीशाह गिलानी अब दिल्ली में आकर पृथक कश्मीर की आवाज बुलंद कर गए। पर अपनी पुलिस ने तिरंगा झंडा लहराने वालों को सेमिनार हॉल से ही बाहर कर दिया। सो नेताओं से अब लाज की कैसी उम्मीद?
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22/10/2010