Thursday, March 10, 2011

पीएम की ‘सफाई’ और शीला का ‘समाजशास्त्र’

तो थॉमस पर पीएम की ‘सफाई’ पृथ्वी‘राज’ की फांस बन गई। विपक्ष ने देशव्यापी जनसंघर्ष अभियान छेड़ दिया। महाराष्ट्र के सीएम पद से इस्तीफे की मांग तेज कर दी। सो गुरुवार को पृथ्वीराज चव्हाण दिल्ली तलब हो गए। दस जनपथ से लेकर सात रेस कोर्स रोड तक बचाव की रणनीति पर मंथन हुआ। अहमद पटेल से मिलते हुए चव्हाण ने सोनिया गांधी के सामने सफाई पेश की। फिर महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी मोहन प्रकाश के साथ बचावी एजंडे पर मंथन। चव्हाण ने अपनी सफाई में हर जगह थॉमसाई इतिहास को दोहराया। पर अब इतिहास बांचने से क्या होगा, जब चुनावी राज्यों में पार्टी का भूगोल खराब होता दिख रहा। वामपंथी दलों ने तो थॉमस मुद्दे को केरल-बंगाल में भुनाने का एलान भी कर दिया। सो अब सवाल- ‘आदर्श’ पर अशोक चव्हाण की बलि लेने वाली कांग्रेस अपने पृथ्वी राज का क्या करेगी? पीएम ने संसद में ‘हाथ’ की ऐसी सफाई दिखाई, पृथ्वी का दामन दागदार हो गया। सो हताशा में चव्हाण ने भी झूठी कथा सुना दी। कह दिया- थॉमस मुद्दे पर केरल सरकार से रिपोर्ट मांगी गई थी, पर उसमें चार्जशीट की कोई जानकारी नहीं थी। पर अब केरल के सीएम वी.एस. अच्युतानंदन ने चव्हाण को झूठा बता दिया। बोले- थॉमस पर सारी जानकारी केंद्र को भेजी थी। यानी थॉमस पर साफ-सफाई के खेल में कांग्रेस ‘सर्फ एक्सेल’ का इश्तिहार बना रही। एक दाग छुड़ाने के चक्कर में दाग पर दाग लगाए जा रही। तभी तो पीएम ने संसद में सफाई दी, तो चव्हाण पर ठीकरा फोड़ दिया। चव्हाण ने केरल सरकार पर। और अब आलाकमान से मुलाकात के बाद चव्हाण ने चुप्पी की चादर ओढ़ ली। गुरुवार को बोले- पीएम की सफाई के बाद थॉमस मामले पर अब मुझे कुछ नहीं कहना। सीवीसी के पैनल के तीन नाम की सूची तैयार करने की जिम्मेदारी मेरी थी। यानी साफ-सफाई के लपेटे में पीएम के बाद सीधे दस जनपथ पर आंच न आए। सो आज की राजनीति के ‘पृथ्वीराज चव्हाण’ ने लड़े बिना ही हथियार डाल दिए। पर पीएम की सफाई हो चव्हाण की चुप्पी, सवाल अभी बहुतेरे। माना, पीएम को कार्मिक मंत्रालय ने थॉमस के केस के बारे में जानकारी नहीं दी। पर जब मीटिंग में सुषमा स्वराज ने मुद्दा उठाया। तो पीएम ने भरोसा क्यों नहीं किया? क्या लोकतंत्र में विपक्ष की अहमियत खत्म हो गई? अगर पीएम 24 घंटे के लिए थॉमस की नियुक्ति रोक तथ्यों की जांच करवा लेते। तो कौन सी आफत टूट पड़ती? अभी भी तो सीवीसी बिना चीफ के काम कर रहा। पर सत्ता का नशा सिर चढ़ कर बोला। सो अब सुप्रीम कोर्ट के डंडे से समूची सरकार सीधी हो गई। राज्यसभा में सीताराम येचुरी ने भी एक मौजूं सवाल उठाया। पूछा- जब टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मामले में भी थॉमस पर सूई घूम रही थी, तो पीएम ने खुद पड़ताल क्यों नहीं कराई? इसके अलावा एक और सबसे अहम सवाल। जब तीन नामों के पैनल में सिर्फ थॉमस के नाम पर आपत्ति थी। तो पीएम ने बाकी अन्य दो नामों पर विचार क्यों नहीं किया? आखिर थॉमसाई जिद का क्या मतलब? क्या पैनल में बाकी दो नाम सिर्फ खानापूर्ति के लिए रखे गए थे? पर जैसी सरकार, वैसा ही विपक्ष। कोई मजबूत विपक्ष होता, तो ऐसे हालातों में सरकार की डोली उठ चुकी होती। पर यहां तो दोनों सदनों के नेता विपक्ष ही आपस में लड़ रहे। आडवाणी जैसे वटवृक्षी नेता अफसोस जता रहे कि आज कोई वीपी सिंह जैसा नेता नहीं। यानी विपक्ष ने खुद को कमजोर मान लिया। जबकि टू-जी हो या थॉमस जी, अब बोफोर्स से बड़ा मुद्दा बन चुकी। पर विपक्ष में इतनी ताकत ही नहीं, इसलिए किसी वीपी सिंह की बाट जोह रही। कांग्रेस भी अब हर काम डंके की चोट पर कर रही। तभी तो टूटने की कगार पर पहुंच चुके डीएमके-कांग्रेस गठबंधन को बचा लिया। सीट-सीबीआई का समझौता कर कांग्रेस बाजी मार गई। सो राजनीतिक नैतिकता तो सिर्फ सुनने-सुनाने की कहानी भर। जैसे आज आडवाणी कह रहे- कोई वीपी होता, तो....। वैसा ही एक दिन आएगा, जब नई पीढ़ी को उनके बाप-दादा कहानी सुनाएंगे- राजनीति में कभी नैतिकवान नेता हुआ करते थे..। पर अफसोस, आज के नेता आईना देखने के बजाए मौजूदा समाज को कोस रहे। दिल्ली की महिला सीएम शीला तीसरा टर्म सरकार चला रही। महिला दिवस के दिन सूरज के उजाले में दिल्ली की एक लडक़ी और बुजुर्ग महिला की हत्या हो गई। पर आत्ममंथन के बजाए मैडम शीला समाजशास्त्र पढ़ा रहीं। गुरुवार को बोलीं- राधिका तंवर हत्याकांड में पुलिस के साथ-साथ समाज भी जिम्मेदार। कहने-सुनने में दलील बिल्कुल सही। पर बंदूक थामे व्यक्ति से क्या कोई मुकाबला करेगा? अगर किसी ने हिम्मत दिखा भी दी। तो पुलिस स्टेशन के इतने चक्कर लगाने पड़ते, लोग पुलिस के नाम से सिहर उठते। अपनी पुलिस आज भी ब्रिटिश मानसिकता वाली। किसी भी राजनेता ने पुलिस रिफॉर्म पर ध्यान नहीं दिया। यही वजह है कि आज भी पुलिस को लोग सम्मान नहीं, खौफ की नजरों से देखते हैं। पुलिस को आम लोगों का दोस्त बनाने की राजनीतिक पहल कभी नहीं हुई। ताकि समाज के लोग हिम्मत से आगे बढ़े। पर शीला को तो ऐसी भाषणबाजी की आदत हो चुकी। महिला पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या हुई, तो शीला ने महिलाओं को रात में बाहर न निकलने की नसीहत दे दी। दिल्ली में क्राइम बढ़ा, तो बाहरियों को जिम्मेदार ठहराया। जबकि शीला खुद बाहरी।
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10/03/2011