Thursday, April 7, 2011

उपवास पर अन्ना, दम सरकार की घुट रही

बजट सत्र से पहले 16 फरवरी को जब पीएम भ्रष्टाचार पर भरोसा देने के लिए टीवी संपादकों के जरिए देश से रू-ब-रू हुए थे। तब उन ने खम ठोककर कहा था- भारत में मिस्र नहीं दोहराएगा। उन ने भारतीय लोकतंत्र की मजबूती की दुहाई दी थी। तो ऐसा लगा, सचमुच अब जनता में क्रांति की भावना खत्म हो चुकी। समाज सुविधा भोगी हो चुका। पर दो महीने भी नहीं हुए, अपने जंतर-मंतर ने ‘तहरीर’ लिख दी। साइबर से सडक़ तक सिर्फ देश नहीं, दुनिया में अन्ना के आंदोलन की चर्चा। सो मनमोहन सरकार को अनशन के तीसरे दिन ही बात समझ आ गई। मिस्र में तो सिर्फ एक तहरीर-ए-स्क्वायर। गर आंदोलन लंबा खिंचा, तो भारत में कई तहरीर चौक बन जाएंगे। सो गुरुवार को केबिनेट मंत्री कपिल सिब्बल को वार्ताकार बनाकर भेजा। सरकार अब जाकर अन्ना की मांग के मुताबिक संयुक्त समिति बनाने को राजी हुई। पर चूंकि सिब्बल सरकारी वार्ताकार बने। सो कानूनी घालमेल कर गए। संयुक्त समिति को तैयार, पर नोटिफिकेशन नहीं होगा। अब कोई मनमोहन से पूछे- जब 16 फरवरी को लोकतंत्र की दुहाई दे रहे थे। तो अब लोकतंत्र की आवाज सुनने के बजाए उसे अपनी जागीर क्यों माने बैठे? क्यों नहीं जन लोकपाल बिल लाने और भ्रष्टाचारियों को सींखचों में बंद करने का साहस दिखाते? क्या सिर्फ सोनिया गांधी सरीखे नेताओं के लिए ही एनएसी बन सकती? क्या सिर्फ बड़े नेताओं को बचाने के लिए ही बैक डेट से लाभ के पद का कानून लागू किया जा सकता? जिस कानून पर तबके राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी आपत्ति जताई थी। सो नीयत में खोट देख अन्ना समर्थकों ने सरकारी प्रस्ताव ठुकरा दिया। दो दौर की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला। अब शुक्रवार को फिर वार्ता होगी। पर मौके की नजाकत भांप सोनिया गांधी ने गुरुवार को ही अपील जारी कर दी। अन्ना के अनशन पर दुख जताया। बोलीं- अन्ना ने जो मुद्दा उठाया, वह बेहद चिंता की बात। भ्रष्टाचार पर कभी दो राय नहीं हो सकतीं। भ्रष्टाचार से लडऩे का कानून प्रभावी और नतीजा देने वाला होना चाहिए। मुझे भरोसा है, सरकार अन्ना की राय को पूरी तवज्जो देगी। सो मैं अन्ना हजारे से अनशन खत्म करने की अपील करती हूं। अब जब सोनिया गांधी जैसी नेता भ्रष्टाचार पर दो राय न होने की दलील दे रहीं। तो उनके मनोनीत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अगर-मगर क्यों कर रहे? क्यों नहीं जनता की आवाज को अक्षरश: कबूल किया जा रहा? क्रिकेट डिप्लोमैसी के लिए तो मनमोहन मोहाली के मैदान में घंटों बैठे। पर जंतर-मंतर जाने की जहमत क्यों नहीं उठा रहे, जहां लोकतंत्र की सच्ची आवाज गूंज रही? विधानसभा चुनाव की दलील देकर पल्ला क्यों झाड़ रहे? क्या सिर्फ चुनाव के समय ही जनता की बात होगी? और तो और, मनमोहन ने ऐसे कपिल सिब्बल को वार्ताकार बना क्यों भेजा, जिन्हें न तो टू-जी घोटाले में कोई घोटाला नजर आता, न घोटालाधिराज ए. राजा दोषी नजर आते? पर सिब्बल ने स्वामी अग्निवेश और अरविंद केजरीवाल से बात की। तो संयुक्त समिति का अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी को बनाने का प्रस्ताव रखा। पर अन्ना समर्थकों ने अन्ना का नाम आगे किया। तो देर शाम खुद अन्ना हजारे ने अध्यक्षता से इनकार कर दिया। बोले- मैं संयुक्त समिति का अध्यक्ष बना, तो कहा जाएगा- मैं इस पद के लिए अनशन कर रहा। मैं ताउम्र कहीं भी किसी भी संस्था का सामान्य पदाधिकारी तक नहीं रहा। अन्ना ने साफ कर दिया- अब पीछे नहीं हटेंगे। गांधीवादी तरीका नहीं, तो छत्रपति शिवाजी को सामने लाना होगा। अन्ना ने शरद पवार के इस्तीफे पर दो-टूक कहा- सिर्फ एक शरद पवार की बात नहीं। जो-जो भ्रष्ट मंत्री, उसे केबिनेट में नहीं रहना चाहिए। सूचना के हक कानून के लिए अपने आंदोलन की याद ताजा करते हुए अन्ना बोले- उस कानून की वजह से आज घोटाले दर घोटाले बाहर आ रहे। पर अफसोस, घोटालेबाज जेल नहीं जा रहे। सो अब पीएम साहस दिखाएं। यों अन्ना भले पीएम को ईमानदार कहें। पर दागी मंत्री के मसले में मनमोहन ने ही संसद में क्या कहा था, रिकार्ड उठाकर देख लीजिए। उन ने दलील दी थी- जब तक कोर्ट में आरोप तय न हो, किसी मंत्री को दागी नहीं कहा जा सकता। सो पीएम से साहस की उम्मीद भला कैसे करें। वैसे भी केबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत से मनमोहन को अलग नहीं किया जा सकता। पर बात अन्ना के आंदोलन की। अब देश का हर चौक-चौराहा तहरीर की झलक दे रहा। भले अन्ना का आंदोलन अभी सिर्फ जन लोकपाल के लिए। सरकार जल्द नहीं चेती, तो जनता चेतनाशून्य न कर दे।
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07/04/2011