Wednesday, December 8, 2010

चिदंबरम और सिब्बल की दलील के तो क्या कहने

तो 26/11 का सबक यही, बैताल फिर पेड़ पर जा लटका। वही रोना-धोना- न अत्याधुनिक हथियार, न खुफिया जानकारी। केंद्र-राज्य के बीच ठीकरा फोड़ू बयानबाजी। पर सवाल, 26/11 की दूसरी बरसी के बाद भी वही राग क्यों बज रहा? मल्टी एजेंसी सेंटर (मैक), एनआईए, आधुनिक हथियारों का ताम-झाम किस काम का? वाराणसी के गंगा घाट पर धमाके के बाद भी बुधवार को श्रद्धालुओं ने वही जज्बा दिखाया। पर अपने नेताओं में आवाम की सुरक्षा का जज्बा क्यों नहीं दिखता? आतंकवाद पर फिर वही गीत क्यों गा रहे? मौका-मुआइना करने वाराणसी पहुंचे होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने सुरक्षा में चूक तो कबूली। पर जिम्मेदार यूपी सरकार को ठहरा दिया। बोले- 26/11 और छह दिसंबर की बरसी पर तो एडवाइजरी दी ही थी। इससे पहले 25 फरवरी को पुणे की जर्मन बेकरी विस्फोट के बाद वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट पर हमले की जानकारी दी थी। यानी चिदंबरम ने बेहिचक मायावती सरकार पर सुरक्षा में कोताही का आरोप लगा दिया। पर माया की ओर से यूपी के केबिनेट सैक्रेट्री शशांक शेखर ने मोर्चा संभाला। ठोस खुफिया जानकारी न देने के लिए केंद्र को लपेटा। लगे हाथ केंद्र को नसीहत भी दे दी- दलगत राजनीति से ऊपर उठे केंद्र सरकार। सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक हथियार दे। खुफिया सूचना का फायदा तभी, जब स्पष्ट और कार्रवाई योग्य हो। केंद्र सामान्य एडवाइजरी जारी कर अपने फर्ज की इतिश्री न माने। शशांक ने 25 फरवरी की खुफिया जानकारी को यह कहते हुए कमजोर बताने की कोशिश की कि वह सूचना दशहरा के परिप्रेक्ष्य में थी। यानी बम धमाके के 14-16 घंटे के भीतर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। बीजेपी ने भी कूदने में देर नहीं की। चिदंबरम को कनफ्यूज्ड होम मिनिस्टर बता आतंकवाद का राजनीतिकरण न करने की सलाह दी। पर सवाल, क्या ऐसी हरकतों से हम आतंकवादी मंसूबों पर पानी फेर सकेंगे? आतंकवादी अयोध्या फैसला, एसआईटी से मोदी को क्लीन चिट और कश्मीरी नेताओं के साथ बुरे बर्ताव को हमले का आधार बना रहे। सो राजनीतिक संयम की जरूरत। गुजरात दंगे हों या बाबरी विध्वंस, वह दौर बीत चुका। पर दो साल की मासूम स्वास्तिका का क्या कसूर? पापड़ बेचने वाला हरिया का एक पैर खराब हुआ। पर असल में उस परिवार की कमर टूट गई। फूल बेचने वाली दस साल की राधिका बूढ़ी नानी की देखभाल करती थी। अब नानी हास्पीटल में उस मासूम की देखभाल कर रही। सो अपने नेताओं को वोट बैंक से ऊपर उठ संयम और राजनीतिक एकता की मिसाल पेश करने की जरूरत। संसद में एक मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि देना ही सब कुछ नहीं। वैसे भी संसद को तो नेताओं ने मजाक बना रखा। भ्रष्टाचार की आग में उन्नीसवें दिन भी संसद झुलसी। पर दोनों पक्ष पानी के बजाए पेट्रोल डाल रहे। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से लगातार पड़ रहे डंडे और संसद ठप होने से हो रही फजीहत के बाद पूर्व संचार मंत्री राजा पर शिकंजा थोड़ा कसा। बुधवार को सीबीआई ने राजा के दिल्ली, चेन्नई आवास और उनके साथ रहे चार अधिकारियों के घर छापा डाला। वैसे छापे के मायने आप खुद निकालिए। सीबीआई ने स्पेक्ट्रम घोटाले में 21 अक्टूबर 2009 को ही केस दर्ज किया। राजा ने पिछले महीने 14 नवंबर को पद से इस्तीफा दे दिया। सुप्रीम कोर्ट से सीबीआई से फटकार मिल चुकी। सो यह दिखावा नहीं, तो क्या? क्या कोई आरोपी घर में इतने वक्त तक सबूत छुपाकर रखेगा? पर विपक्ष ने छापे को संसद का दबाव बता अपनी पीठ ठोकी। गुरुदास दासगुप्त ने तो राजा को गिरफ्तार कर तिहाड़ भेजने की मांग कर दी। यानी जेपीसी पर अड़ा विपक्ष अब अडिग हो गया। पर लगातार लपेटे में आ रही सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को थोड़ी राहत दी। ए. राजा लंबे समय से दलील देते आ रहे। उन ने स्पेक्ट्रम आवंटन में अपने पूर्ववर्ती की नीति का ही अनुसरण किया। सो अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच का दायरा 2001 तक ले जाने की हिदायत दी। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा- हम इस जांच में पक्षपाती नहीं होना चाहते। बल्कि 2001 में जो हुआ, उस पर भी नजर डालने की जरूरत है। अब यह सीबीआई का काम है कि वह जांच करे और यह पता लगाए कि क्या हुआ था। सो बीजेपी ने फौरन स्वागत किया। वैसे भी इन आरोपों का बीजेपी कई बार जवाब दे चुकी। प्रमोद महाजन के वक्त पहले आओ, पहले पाओ की नीति के तहत स्पेक्ट्रम की कीमत तय की गई थी। सो बुधवार को नए-नवेले संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने विपक्ष को घेरा। तो बोले- नीति बनाई उन ने, आरोप हम पर लगा रहे। यानी सिब्बल की मानें, तो राजा ने वही किया, जो एनडीए ने तय किया था। सो सवाल सिब्बल से- अगर राजा गलत नहीं, तो इस्तीफा क्यों लिया? क्या सुप्रीम कोर्ट और सीबीआई लकीर पीट रहीं? सिब्बल भूल रहे, राजा ने चालाकी दिखाई। साल 2001 के मार्केट रेट पर स्पेक्ट्रम की जो कीमत तय हुई थी, 2008 में उसी कीमत पर अपनी पसंदीदा कंपनियों को बांट दी। अब कोई पूछे, जब 2001 की नीति पर ही काम करना था, तो राजा क्या झक मारने के लिए मंत्री बने थे? अगर राजा गलत नहीं थे, तो पीएम मनमोहन ने चिट्ठी क्यों लिखी थी? अगर सिब्बल 2001 के आधार पर स्पेक्ट्रम घोटाले और राजा का बचाव कर रहे। तो सवाल, क्या सिर्फ पूंजीपति कंपनियों के लिए ही दरियादिल? अगर 2001 में तय कीमत पर स्पेक्ट्रम आवंटन जायज, तो सिब्बल यह बताएं, आज आम आदमी को 2001 की कीमत पर राशन, दूध, सब्जियां क्यों नहीं उपलब्ध करा रही सरकार?
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08/12/2010