Monday, June 28, 2010

महंगाई है, तो अच्छा है ना, सांसदों के वेतन जो बढ़ेंगे

अंधा बांटे रेवड़ी, अपनों-अपनों को देय। महंगाई की मार से भले जनता को राहत नहीं मिली। पर अपने सांसदों के वारे-न्यारे होंगे। संसद की ज्वाइंट कमेटी की सिफारिश हो गई। सांसदों का वेतन पांच गुना बढ़े। पर दलील तो महंगाई की, असली वजह अहं आड़े आ रहा। केंद्र सरकार में सचिव स्तर के अधिकारियों के वेतन 80 हजार प्रति माह। सो रुआब झाडऩे वाले सांसद महज 16 हजार से कैसे गुजारा करें। अब सिफारिश हुई, सांसदों का वेतन 80,001 रुपया हो। ताकि सांसद नाम से नहीं, जेब से भी सचिव पर भारी पड़ें। यानी अपने माननीय सांसदों का दर्द महंगाई नहीं, सचिवों का बढ़ा वेतन। जिससे रुआब कम होता दिख रहा। यों सांसद भूल रहे, भले वेतन कम। पर भत्तों और सुविधाओं को मिला दें, तो इतनी सुविधा स्वर्ग लोक में इंद्र को भी नसीब नहीं। अगर सांसदी नहीं भी रही, तो भी सुविधाएं इतनी, जिंदगी मौज में कटे। सो सांसदों को सचिवों से अधिक वेतन क्यों चाहिए? सचिव बनने वाला अधिकारी अखिल भारतीय स्तर का इम्तिहान देकर आता। सचिव बनते-बनते अफसर रिटायरमेंट की उम्र में होता। पर सांसदों की तो कोई योग्यता तय नहीं। लोकसभा में तो चुनाव लडऩे का जोखिम। पर राज्यसभा में तो दल किसी को भी भेज दे। यों सांसदों की दलील सिर्फ सचिवों के वेतन वाली नहीं। अलबत्ता श्रीलंका के सांसदों को मिलने वाली शानदार कार का भी दुख। अमेरिका में एक सिनेटर को अपने स्टाफ में 18 कर्मचारी रखने की छूट। पर सांसद यह भूल रहे, अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय और भारत की प्रति व्यक्ति आय में बड़ा अंतर। अपने देश में 45 करोड़ लोग बीपीएल में। इतना ही नहीं, अमेरिकी सिनेटर के काम करने का तरीका और अपने सांसदों का तरीका जगजाहिर। अपने सांसदों को सचिवों से एक रुपया अधिक वेतन चाहिए। पर सांसद कैसे अठन्नी में बिकते, यह ऑपरेशन दुर्योधन और ऑपरेशन चक्रव्यूह के जरिए इतिहास में दर्ज। भ्रष्टाचार रोकने की भी दलील वेतन बढ़ाने के लिए दी जा रही। पर अबके महंगाई के सहारे बेड़ा पार की तैयारी। सचमुच महंगाई की आड़ में इतना बड़ा खेल नेता ही कर सकता। संसद की कमेटी ने सिफारिश की, तो वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी महज औपचारिकता समझिए। अब तक की यही परंपरा, कोई भी दल इसका विरोध नहीं करता। अलबत्ता यही बिल ऐसा, जो झटपट बिना बहस के सर्वसम्मति से पारित हो जाता। पर विडंबना देखिए, सांसद अपना वेतन-भत्ता खुद तय करते। अब तक 27 बार सांसदों के लिए वेतन-भत्ते कानून-1954 में संशोधन हो चुके। माननीयों को जब सुविधा में कोई कमी नजर आई, कानून मनमाफिक बदल लिया। इसे कहते हैं अपना हाथ जगन्नाथ। पिछली लोकसभा में सोमनाथ दा स्पीकर थे। उन ने अपना हाथ जगन्नाथ पर एतराज जताया। वेतन आयोग जैसी संस्थागत प्रक्रिया का सुझाव दिया। पर क्या कभी कोई अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारता है? पिछली बार 23 अगस्त 2006 को जब वेतन-भत्ते बढ़े थे। तो तबके संसदीय कार्यमंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने सोमनाथ दा के सुझाव के मुताबिक संस्था बनाने पर हामी भरी थी। पर असलियत सबके सामने। मानसून सत्र में बिल तो पास होकर रहेगा। सांसदों का दर्द दूर होकर रहेगा। भले महंगाई जनता को मार क्यों न दे। एक जमाना था, सांसद 400 रुपए वेतन, 21 रुपए भत्ते पर थे। वर्ष 1998 तक महज 1500 रुपए वेतन था। पर एनडीए राज में सीधे 12,000 हो गया। फिर 16,000, अब सीधे 80,001 की तैयारी। संविधान सभा का इतिहास तो और भी रोचक। दिल्ली बैठक में आने वाले मेंबरों को सब कुछ मिलाकर सिर्फ 25 रुपए मिलते थे। जिसमें रहना, खाना-पीना भी शामिल था। पर आज के सांसदों का मुंह तो मानो सुरसा हो गया। ऐसे भी कई सांसद, जो महज एक रुपया वेतन लेते रहे। हसरत मुहानी और डा. कर्ण सिंह इसी श्रेणी में। महात्मा गांधी ने भी यही नसीहत दी थी, सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों को कम वेतन लेकर सादा जीवन जीना चाहिए। पर अपने माननीय सांसदों के वेतन-भत्ते देख शायद गांधी जी की आत्मा भी बिलख पड़े। यों एक रुपया लेने वालों में अपने मनमोहन सिंह भी। पर मनमोहन की कहानी दूसरी। पहले वल्र्ड बैंक के मुलाजिम रहे। अब वल्र्ड बैंक पेंशन दे रहा, जो बतौर सांसद मिलने वाले वेतन-भत्ते से अधिक। ऊपर से टेक्स का कोई लफड़ा नहीं। यों टेक्स का लफड़ा अपने सांसदों के वेतन में भी नहीं। पर बात मनमोहन की। सुनते हैं, मनमोहन पेंशन ही लेते। सांसद के तौर पर महज एक रुपया उठाते। अब मनमोहन सिंह से आम जनता क्या उम्मीद रखे। पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस-कैरोसिन के दाम बढ़ा मनमोहन जी-20 की मीटिंग में गए। तो सदस्य देशों ने खूब पीठ थपथपाई। सब्सिडी खत्म करने में मनमोहन की पहल का जमकर स्वागत किया। तो जाकर मनमोहन का अर्थशास्त्र समझ आया। अब अगली बार मनमोहन की विदेश यात्रा की खबर सुनें। तो दिल थामकर बैठिएगा। भले बीजेपी महंगाई के खिलाफ पहली-दूसरी जुलाई को कॉरपेट बोंबिंग करेगी। मुलायम ने पांच जुलाई को आम हड़ताल का एलान किया। पर मनमोहन के पास हर मर्ज का इलाज। सांसदों का वेतन महंगाई की आड़ में इतना बढ़ा देंगे, सांसदों का मुंह हैरानी से खुला ही रह जाएगा। सांसदों को महंगाई से त्रस्त जनता का दर्द समझ नहीं आता। तभी तो जितना जतन अपने वेतन के लिए कर रहे, आम आदमी की खातिर नहीं किया। अब आम आदमी को मझधार में छोड़ सांसद अपनी बल्ले-बल्ले कराएंगे। यानी महंगाई है, तो अच्छा है। कम से कम सांसदों के वेतन तो बढ़ेंगे।
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28/06/2010