Tuesday, September 28, 2010

‘यूपीए चैनल’ पर रामायण और ‘महाभारत’ एक साथ

अयोध्या विवाद में नई इबारत लिखने का रास्ता खुल गया। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे के खामखां रमेश चंद्र त्रिपाठी की याचिका खारिज कर दी। सो हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच अब 30 सितंबर को फैसला सुनाएगी। पर फैसले से समाज में फासला न बढ़े। सामाजिक सौहार्द कायम रहे, सो सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। फैसले को कबूल करने और शांति बनाए रखने की अपील भी की। सो अब सबकी निगाहें इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच पर टिक गईं। अब फैसला क्या होगा, यह बाद की बात। पर राजनीति की बिसात हफ्ते भर में कुछ अधिक बिछ गईं। बीजेपी-संघ परिवार ने चुप्पी तोड़ी, तो दूसरे पक्ष ने भी जल्द फैसले का दबाव बनाया। सुप्रीम कोर्ट में सिवा निर्मोही अखाड़े के कोई फैसला टालने को राजी नहीं हुआ। सो केंद्र सरकार ने भी दोहरा रुख अपनाया। अटार्नी जनरल जी.ई. वाहनवती ने दलील दी- बातचीत से समाधान निकले, इससे अच्छी बात नहीं हो सकती। पर कानूनी प्रक्रिया में भी अनिश्चितता नहीं रहनी चाहिए। यानी त्रिपाठी से सांठगांठ से केंद्र ने दूरी दिखा दी। सो कोर्ट ने प्रक्रिया में दखल देने से इनकार कर दिया। त्रिपाठी को वक्त से उलटी दिशा में चलने वाला करार दिया। सो अयोध्या मामला अब एक कदम आगे बढ़ेगा। तो फिर सुप्रीम कोर्ट में आना तय। फैसला किसी के लिए खुशी, तो किसी को गम देगा। पर खुशी या गम में कोई बलवा न हो। सो एहतियातन तैयारियां हो गईं। केंद्र सरकार ने फौरन एडवाइजरी जारी कर देश भर में शांति बरतने की सलाह दी। यूपी को अर्धसैनिक बलों की 52 कंपनियां देने का फैसला हुआ। कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र समेत 19 संवेदनशील जगहों की पहचान कर विशेष तैनाती का फैसला हुआ। देश भर के आठ ठिकानों पर वायुसेना के विमान तैनात रहेंगे। जो दस मिनट में मौके पर पहुंचने में सक्षम। केंद्र सरकार की एडवाइजरी में लोगों से फैसले पर खुशी न मनाने की भी अपील। यूपी की मायावती सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के फौरन बाद दो लाइन का नोट जारी कर दिया। गड़बड़ी करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। यों पिछले साठ साल में अयोध्या की सरयू नदी में बहुत पानी बह चुका। अगर छह दिसंबर 1992 को भी देखें, तो अठारह साल बीत चुके। तबसे अब तक पीढिय़ां बदल चुकीं। अब युवा वर्ग मंदिर-मस्जिद के झमेले से अधिक देश की तरक्की की ओर उन्मुख। पर नई पीढ़ी की सोच से जिन लोगों की राजनीतिक दुकान बंद होती दिख रही। सचमुच उनके इरादे न तब नेक थे, न अब। रणनीति यही बन रही- फैसला कुछ भी हो, अपने वोट बैंक के हिसाब से भुनाएंगे। यानी राम-रहीम के नाम पर वोट बटोरने का गुणा-भाग करने में कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं। संघ-विहिप ने सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद फिर वही राग अलापा। अदालती फैसला तो हो, पर भगवान राम दुनिया की सभी अदालतों से ऊपर। राम को आस्था का विषय बताया। पर अयोध्या में मंदिर-मस्जिद की ठेकेदारी करने वालों ने क्या कभी उस नगरी की सुध ली। जहां इमारतें खंडहर, सडक़ें बदहाल, बाकी पूजा स्थल चीख-चीख कर अपना कसूर पूछ रहे। अब सोचो, जब भगवान या खुदा आस्था के मुद्दे। तो जमीन के लिए ऐसी कटु लड़ाई क्यों? अब संघ परिवार की दलील देखिए। कोर्ट तो 2.77 एकड़ जमीन पर फैसला सुनाएगा। पर मंदिर के लिए तो समूची 70 एकड़ जमीन चाहिए। यानी केंद्र की ओर से अधिग्रहीत 67 एकड़ जमीन के लिए सोमनाथ की तर्ज पर कानून बनाने की मांग। सो भले कोर्ट के फैसले के बाद पहले जैसा बलवा न हो। पर धर्म के ठेकेदारों ने इस कदर जाल बुन रखा, सामाजिक तनाव का वातावरण बनेगा। सो चुनौती केंद्र और राज्य सरकारों की। अगर वक्त रहते खतरा भांप असामाजिक तत्वों पर काबू पा लिया। तो तथाकथित स्वयंभू ठेकेदारों की मंशा धरी रह जाएगी। सचमुच यूपीए सरकार के लिए अग्नि परीक्षा की घड़ी। देश की सुरक्षा में लगे जवान कई मोर्चों पर लड़ रहे। कश्मीर में अलगाववाद, तो कई राज्यों में नक्सलवाद के खिलाफ जंग चल रही। पर सबसे बड़ी चुनौती कॉमनवेल्थ गेम्स कराने की। हाल ही में जामा मस्जिद के पास हुई फायरिंग की घटना से किरकिरी हो चुकी। सो कॉमनवेल्थ की सुरक्षा भी अभेद्य बनाने की तैयारी हो गई। सुखोई से लेकर मिग-21 तक। मानव रहित विमान के जरिए 24 घंटे निगरानी की व्यवस्था। पर संयोग कहें या कुछ और, अयोध्या का फैसला 24 सितंबर को आना था। अब गुरुवार को फैसला आएगा। इतवार से कॉमनवेल्थ गेम्स का आगाज। यानी कॉमनवेल्थ रूपी महाभारत से जूझ रही सरकार को अब फिक्र, कहीं अयोध्या की रामायण पर कोई ‘महाभारत’ न छिड़ जाए। वैसे भी खेल के महाभारत में आयोजकों ने देश की भद्द तो पिटवा ही दी। अब कहीं अयोध्या के फेर में कुछ गड़बड़ हुई। तो खेल का राम ही राखा। सचमुच यूपीए सरकार के लिए अयोध्या और कॉमनवेल्थ किसी चुनौती से कम नहीं। सो एक बार फिर वही पुरानी अपील। फैसले का सम्मान हो, पर दिलों के बीच फासला न बढ़े। देश की जनता को शांति और धैर्य रखने की जरूरत। किसी के बहकावे या उकसावे में आकर अपना ही नुकसान करेंगे। राजनेताओं का क्या, उनकी तो आदत। जब भी मौका मिलता, उल्लू सीधा कर कुर्सी से चिपक जाते। और फिर राम-खुदा के नाम पर राजनीति की रोटी सेकते रहते। सो पीएम से लेकर देश का हर तबका यही अपील कर रहा- शांति बनाए रखें।
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28/09/2010