Thursday, April 15, 2010

तो कांग्रेसी 'लैंड माइन' से कैसे जूझेंगे चिदंबरम?

ब्रेक के बाद पहला दिन विपक्ष के नाम रहा। विपक्ष ने लंबे वक्त के बाद ऐसा जिम्मेदाराना रुख अपनाया। यों तो सुर्खियों में छाने वाले मुद्दे को ही बीजेपी तरजीह देती। सो बीजेपी पहले दिन शशि थरूर का मुद्दा उछालना चाहती थी। पर एनडीए मीटिंग में शरद यादव ने दंतेवाड़ा कांड को प्राथमिकता देने की पैरवी की। सो थरूर से पहले गुरुवार को नक्सली हमले पर बहस हुई। अब शुक्रवार को थरूर मुद्दा भी गरमाएगा। सो थरूर ने भी जवाबी तैयारी शुरु कर दी। गुरुवार को सोनिया-प्रणव से मिले। पर प्रणव दा ने अभी थरूर के बयान को हरी झंडी नहीं दिखाई। यों पुरानी नसीहत दोहरा दी, अपना बचाव खुद करें। अब भले कांग्रेस थरूर से दूरी दिखाए। पर आईपीएल के सभी मालिकों के नामों का खुलासा हुआ। तो अटकलें इस बात की भी, थरूर से भी किसी बड़े मंत्री का नाम आ सकता है। अगर सचमुच ऐसा हुआ, तो फिर कांग्रेस क्या करेगी? यों आईपीएल का फंदा कांग्रेस की फांस तो बाद में बनेगी। पर गुरुवार को दंतेवाड़ा की बहस में कांग्रेसी छोटी-छोटी टिप्पणियों से ही इस कदर बौखलाए। लोकसभा की कार्यवाही कई बार स्थगित करनी पड़ी। एजंडा पेपर में दंतेवाड़ा पर होम मिनिस्टर के बयान का भी जिक्र नहीं था। सो समूचे विपक्ष ने फिर एकजुटता दिखाई। आखिरकार बिन बयान ही लोकसभा में बहस शुरू हो गई। पर राज्यसभा में पहले चिदंबरम का बयान हुआ। तो उन ने फिर अपनी इच्छाशक्ति का इजहार किया। नक्सली समस्या से निपटने के लिए समझदारी, मजबूत हृदय और सहनशक्ति की जरूरत पर बल दिया। पर लोकसभा में बीजेपी से यशवंत सिन्हा ने मोर्चा संभाला। तो राज्यसभा में खुद विपक्ष के नेता अरुण जेतली ने। आखिर बहस का हश्र वही हुआ, जो सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच होना चाहिए था। बीजेपी ने कांग्रेस पर नक्सलियों से सांठगांठ का आरोप लगाया। तो सदन को सुचारू ढंग से चलाने के लिए जिम्मेदार संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल और उनके जूनियर नारायण सामी ने हंगामा मचाया। बीजेपी पर सांठगांठ का आरोप लगाया। सो स्पीकर मीरा कुमार को कार्यवाही रोकनी पड़ी। अब भले सदन में न सही, यशवंत ने बाद में वही सवाल उठाए। कैसे 2004 में कांग्रेस ने आंध्र में नक्सलियों से सांठगांठ की। तबके होम मिनिस्टर हैदराबाद नक्सलियों से वार्ता करने गए। लाखों नक्सलियों ने हैदराबाद की सडक़ों पर खुलेआम मार्च किया था। पर चिदंबरम और कांग्रेस की दुखती रग को बड़े सलीके से छेड़ा। होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम जितने अपनों के निशाने पर। बीजेपी के उतने ही दुलारे बने। सो गुरुवार को बीजेपी के नेताओं के भाषणों का निचोड़ निकालें। तो बीजेपी का नया जुमला यही बनेगा- देश का नेता कैसा हो, पी. चिदंबरम जैसा हो। जेतली हों या यशवंत, चिदंबरम के खूब कसीदे पढ़े। संदेश देने की कोशिश की- देखो, एक जिम्मेदार विपक्ष के नाते हम नक्सलवाद की समस्या के प्रति होम मिनिस्टर के साथ खड़े हुए। पर कांग्रेस पार्टी अपने ही मंत्री का घेराव कर रही। अपने ही मंत्री से कांग्रेसी इस्तीफा मांग रहे। पर हम माओवादियों को खुशी मनाने का मौका नहीं देना चाहते। जेतली ने मणिशंकर अय्यर, ममता बनर्जी, दिग्विजय सिंह की ओर से चिदंबरम पर उठाए सवाल का जिक्र किया। सिर्फ इतना ही नहीं, राजनीति के फनकार जेतली ने भिगो-भिगोकर मारने में कसर नहीं छोड़ी। कहा- क्या देश का होम मिनिस्टर घायल सिपाही के तौर पर मुकाबला कर सकेगा? उन ने चिदंबरम को सलाह दी, अपनी पार्टी के आधी माओवादी मानसिकता वाले लोगों को नजरअंदाज करें। विपक्ष उनके साथ खड़ा है। पर जरा विपक्ष की रणनीति देखिए। चिदंबरम की तारीफ कर नक्सलवाद के खिलाफ सख्त रवैये की पैरवी कर रही। तो कांग्रेस को नक्सलियों के प्रति नरम दिखाने की कोशिश। सो मुश्किल चिदंबरम की। चिदंबरम नक्सलियों के खिलाफ कठोर रुख जारी रखें। तो चिदंबरम की बौद्धिकता के शिकार दिग्विजय जैसे लोग बीजेपी के स्टैंड पर चलना बताएंगे। अगर कठोर रुख से पलटे, तो विपक्ष को समूची सरकार पर हमले का मौका मिलेगा। सो अपनी ही चाल में कांग्रेस उलझ गई। पर बहस के बाद चिदंबरम ने लोकसभा में जवाब दिया। तो अपनों के विरोध का असर चेहरे और जुबान पर दिख रहा था। उन ने सेना के इस्तेमाल से पल्ला झाड़ा। पर अपने विरोधियों को जनवरी 2009 का एआईसीसी का प्रस्ताव भी पढक़र सुनाया। जिसमें कांग्रेस ने नक्सली समस्या को लॉ एंड आर्डर, सामाजिक-आर्थिक और बातचीत का जिक्र किया था। सो चिदंबरम ने नीति के साथ चलने की दलील दी। कहा- बातचीत के दरवाजे कभी बंद नहीं। विकास भी होगा। पर लॉ एंड आर्डर समस्या ज्यादा गंभीर। सो संसद में बहस तो पूरी हो गई। भले अपने जवान नक्सलियों के लैंड माइन को नाकाम कर किला फतह कर लें। पर सबसे अहम सवाल, अपनों के बिछाए 'लैंड माइन' से कैसे जूझेंगे पी. चिदंबरम?
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15/04/2010