Thursday, February 10, 2011

भ्रष्टाचार पर मनमोहन के बोल बड़े अनमोल

स्पेक्ट्रम से ऐसा ‘बैंड’ बजेगा, मनमोहन सरकार ने सोचा न होगा। टू-जी स्पेक्ट्रम की कहानी तो एकता कपूर के सीरियल की तरह, जो खत्म होने का नाम नहीं ले रही। पर सीरियल टू-जी से पहले इसरो के एस-बैंड की बात। मनमोहन ने एस-बैंड स्पेक्ट्रम को लेकर हुए करार की जांच के लिए हाई लेवल कमेटी गठित कर दी। पहले कानूनी सलाह ली थी। पर करार को सीधे रद्द करना मुमकिन नहीं। सो पूर्व केबिनेट सचिव बी.के. चतुर्वेदी की रहनुमाई में दो मेंबरी आयोग बन गया। आयोग एंट्रेक्स और देवास मल्टीमीडिया के बीच हुए करार के तकनीकी, वाणिज्यिक, प्रक्रियात्मक और वित्तीय पहलुओं की समीक्षा करेगा। आयोग को एक महीने में रपट सौंपने की हिदायत। पर चतुर्वेदी को आयोग का मुखिया बनाना विपक्ष को नहीं जमा। विपक्ष का एतराज, आवंटन प्रक्रिया में चतुर्वेदी खुद शामिल थे। तो अब उनसे निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती? पर लगातार घोटालों से कांग्रेसी अब खीझने लगे। गुरुवार को सवाल हुआ, तो खीझते हुए कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी बोले- अब सवाल न उठाएं, आयोग की रपट का इंतजार करें। सचमुच बेचारी कांग्रेस कितने सवालों का जवाब दे। टू-जी हो या एस, कांग्रेस का लगातार बैंड बज रहा। अब अगर देवास मल्टीमीडिया पुचकारने से राजी नहीं हुआ। तो पीएमओ तक पहुंच रही घोटालों की आंच को कांग्रेस शांत नहीं कर पाएगी। जांच के लिए बनने वाली ऐसी सरकारी कमेटियों का मकसद क्या होता, किसी से छुपा नहीं। सो चौतरफा घिरी कांग्रेस बजट सत्र में जेपीसी की ओर कदम बढ़ा चुकी। पर यहां तो घोटालों की पूरी काली बदरा सरकार के सिर घुमड़ रही। सीवीसी पी.जे. थॉमस पर गुरुवार को सुनवाई पूरी हो गई। पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। आखिरी सुनवाई में कोर्ट ने नियुक्ति के दिशा-निर्देश बदलने के भी संकेत दिए। पूछा- क्या नियुक्ति पैनल में विपक्ष के नेता को वीटो दिया जा सकता? अब गाइड लाइंस क्या होंगी, यह तो बाद की बात। पर ऐसे पैनलों में नेता विपक्ष का अधिकार जरूर बढऩा चाहिए। वरना सरकार के दो नुमाइंदे और तीसरे विपक्ष के नेता हों। तो हमेशा सरकार अपनी मर्जी ही थोपेगी। विपक्ष का नेता हमेशा शृंगारिक ही रह जाएगा। सो आम सहमति के लिए तीनों के पास वीटो होना चाहिए। पर फिलहाल थॉमस को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार। यों थॉमस हों या टू-जी या काला धन, कोर्ट की हर टिप्पणी से सरकार के मन में छुपे काले चोर का ही आभास हो रहा। सो गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने काले धन के मामले में सरकार को फिर आगाह किया। विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाला पुणे का व्यापारी हसन अली देश से फरार न हो, इसके लिए जरूरी कदम उठाने की हिदायत दी। कोर्ट ने सरकार से कहा- यह सुनिश्चित करना आपका कर्तव्य है कि हसन अली मुकदमा चलाए जाने के लिए देश में मौजूद रहे। कोर्ट की सख्ती का ही असर, अब सरकार ने औपचारिक तौर पर मुकदमा दर्ज करने के बाद काला धन जमा करने वालों का नाम सार्वजनिक करने का भरोसा दिया। यानी देर से ही सही, सरकार लाइन पर आने लगी। सचमुच अगर अपनी जुडिशियरी ने साख बनाकर न रखी होती, तो व्यवस्था का क्या हाल करते ये नेता। सो गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआई की फिर नकेल कसी। कोर्ट ने इशारा कर दिया- चाहे जो भी हो, केस अंजाम तक पहुंचेगा। गुरुवार को ही टू-जी घोटाले के राजा की रिमांड चार दिन और बढ़ी। इसी केस में स्वान कंपनी के प्रमोटर शाहिद बलवा भी ट्रांजिट रिमांड पर सीबीआई के कब्जे में। अब राजा-बलवा को आमने-सामने पर सीबीआई तार जोड़ेगी। पर बात सुप्रीम कोर्ट की, जिसने मामले की अलग से सुनवाई के लिए विशेष अदालत गठित करने का आदेश दिया। देश की बाकी अदालतों को भी हिदायत- इस मामले में कोई ऐसा आदेश पारित न करे, जो जांच में खलल डालने वाला हो। कोर्ट ने दो-टूक कहा- इस मामले की जांच में सीबीआई पर कोई दबाव नहीं होना चाहिए। ताकि वह खुलकर मामले की जांच कर सके। पर फिलहाल सीबीआई अभियुक्तों की रिमांड कम दिन के लिए ही मांग रही है, जिससे लगता है कि उसके हाथ बंधे हुए हैं। सो सीबीआई ने फौरन भरोसा दिया- 31 मार्च को राजा के खिलाफ भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का मामला दायर करेगी। पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम घोटाले की गंभीरता और व्यापकता की ओर इशारा करते हुए कहा- ‘हमें लगता है कि बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो समझते हैं कि वो ही कानून हैं। कानून इन लोगों को गिरप्तार करे, उनके नाम फोब्र्स या अरबपतियों की सूची में आने से कुछ नहीं होता है।’ सुप्रीम कोर्ट ने इशारा तो कर दिया। पर सीबीआई कितनी ईमानदारी से फर्ज निभाएगी, यह तो वक्त बताएगा। यों गुरुवार को ट्रेनी आईएएस को संबोधित करते हुए अपने पीएम ने जो ज्ञान बांचा, सचमुच ‘मनमोहन सार’ ही समझो। उन ने सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी की अपील करते हुए कहा- जब नेता और नौकरशाह अपने कार्य और व्यवहार में ईमानदारी की राह से भटक जाते हैं, तो लोग आहत होते हैं। सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार की इजाजत नहीं दे सकते। हमें नहीं भूलना चाहिए, भारत अभी भी एक ऐसा देश, जहां लाखों लोगों को भूखे रहना पड़ता। पर सवाल- मनमोहन को यह बात इतनी देर के बाद ही क्यों समझ आई? स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ 2008 में। मनमोहन ने कार्रवाई की 2010 के आखिर में।
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10/02/2011