मौसम ने करवट ली, ठंड ने कंपकपाना शुरू किया। तो सरकार भी अब ठिठुरने लगी। सीवीसी पीजे थॉमस ने आखिर इस्तीफा नहीं दिया। शायद कांग्रेस और थॉमस ने अब ठान लिया, जब तक सुप्रीम कोर्ट प्याज नहीं खिलाए। तब तक सीवीसी का इस्तीफा नहीं होगा। कोर्ट ने आखिरी सुनवाई के लिए 27 जनवरी की तारीख मुकर्रर करते हुए थॉमस और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया। चीफ जस्टिस एसएच कपाडिय़ा की खंडपीठ ने कहा- हमने फाइल देख ली है और अब आखिरी सुनवाई करेंगे। कोर्ट ने बाकायदा थॉमस को सफाई पेश करने के निर्देश दिए। तो अब थॉमस ने भी कोर्ट के सामने सारे दस्तावेज रखने की दलील दी। पर सुप्रीम कोर्ट की मंशा पिछली दो टिप्पणियों में साफ हो चुकी। फिर भी थॉमस हैं कि कुर्सी से चिपके हुए। सरकार की ओर से इशारे के बाद भी थॉमस अब इस्तीफे को राजी नहीं। यानी सरकार अपने ही जाल में उलझ गई। अब या तो कोर्ट थॉमस की नियुक्ति को रद्द करे, या फिर सरकार महाभियोग लाए। थॉमस भी तकनीकी दांवपेच से वाकिफ। सो भ्रष्टाचार के इस खेल में अकेले शहादत क्यों दें? वैसे भी लानत-मलानत यूपीए सरकार की फितरत बन चुकी। सो अब इंतजार बासठवें गणतंत्र दिवस की अगली सुबह का। पर जरा कांग्रेस की दलील सुनिए। थॉमस की नियुक्ति पर अभी भी कोई पछतावा नहीं। अलबत्ता संवैधानिक पद पर नियुक्ति के सभी मानदंडों को पूरा करने वाला बता रही। अभिषेक मनु सिंघवी ने बहुमत के फैसले से थॉमस की नियुक्ति का पुराना राग दोहराया। पर सवाल, जब पैनल में पीएम-गृहमंत्री और नेता विपक्ष हो। तो क्या फैसला होगा, कोई भी अनुमान लगा सकता। तभी तो सुषमा ने थॉमस का विरोध किया। पर पीएम-गृहमंत्री ने सत्ता की धौंस जमा दी। क्या इसे बहुमत का फैसला कहेंगे? क्या पीएम या गृहमंत्री कभी सपने में भी विपक्ष के सुर में सुर मिला सकते? सो थॉमस की नियुक्ति बहुमत का फैसला नहीं। अलबत्ता सत्तापक्ष की दादागिरी कहिए। पर अब कांग्रेस और सरकार बेचारगी की मुद्रा में। थॉमस कुर्सी छोडऩे को राजी नहीं। सो सारी फजीहत कांग्रेस की झोली में गिर रहीं। पर फिलहाल कांग्रेस की हालत नंगा नहाए क्या, और निचोड़े क्या जैसी। कहते हैं ना, मुसीबत कभी अकेले नहीं आती। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जेपीसी जांच को लेकर संसद ने गतिरोध के पुराने रिकार्ड की बराबरी कर ली। हर्षद मेहता कांड के वक्त 17 दिन के गतिरोध के बाद जेपीसी बनी थी। सोमवार को स्पेक्ट्रम मामले में गतिरोध का सत्रहवां दिन था। सो अठारहवें दिन इतिहास दोहराएगा, ऐसी उम्मीद तो नहीं दिख रही। पर कांग्रेस की सिट्टी-पिट्टी गुम जरूर हो चुकी। बंगाल चुनाव के मद्देनजर ममता बनर्जी ने भी जेपीसी मानने का दबाव बढ़ा दिया। शरद पवार और करुणानिधि भी पक्ष में। करुणानिधि को लग रहा, अगर गतिरोध जारी रहा, तो तमिलनाडु में अहम चुनावी मुद्दा बनेगा। और अगर जेपीसी बन जाए, तो फिलहाल राजा पर बना फोकस शिफ्ट होकर मनमोहन की ओर जाएगा। यानी भ्रष्टाचार के भंवर में डूबने की आशंका। सो करुणानिधि की दलील सुनिए। उनने कहा- बेहद अफसोस की बात है कि पढ़े-लिख भी यह मानने को तैयार हैं कि एक व्यक्ति एक नील 76 खरब रुपए की बड़ी राशि का घोटाला कर सकता। करुणानिधि ने बकासुर का जिक्र करते हुए कहा- लोग सोचते थे बकासुर का मुंह 30 हजार मील लंबा हो सकता था, जिसकी भूख कभी शांत नहीं होती। यों करुणा के कहने के निहितार्थ अलग। पर उन ने यह तो साफ कर दिया, घोटाले में एकला राजा ही नहीं, समूची टीम शामिल। सचमुच अगर राजा ही दोषी होते, तो कांग्रेस जेपीसी बनाने में इतनी हील-हवाली न करती। पर कांग्रेस की मुश्किल सोमवार को तब और बढ़ गई, जब गैर यूपीए-गैर एनडीए के 11 दलों ने न सिर्फ जेपीसी मांगी, अलबत्ता पीएम को भी तलब करने का इरादा जता दिया। सीताराम येचुरी और गुरुदास दासगुप्त ने सवाल उठाया- जब बिल क्लिंटन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री संसदीय समिति के सामने पेश हो सकते। तो हमारे शासन प्रमुख को बुलाने में क्या गलत। वैसे भी मनमोहन को जेपीसी का सामना करने का पुराना अनुभव। येचुरी ने तो साफ कहा- देशहित में पीएम जेपीसी से भयभीत नहीं, पर कांग्रेस जरूर डरी हुई। सचमुच कांग्रेस का डर सोमवार को उजागर हो गया। जब यूपीए की इमरजेंसी मीटिंग बुला ली। विपक्षी दलों ने खम ठोक दिया- शीत सत्र में जेपीसी नहीं बनी, तो बजट सत्र में भी मांग जारी रहेगी। यानी कांग्रेस का संकट अभी खत्म नहीं। जेपीसी और थॉमस का मामला तो गले में हड्डी की तरह अटक चुका। अगर शीत सत्र पूरी तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, तो संसदीय इतिहास में एक और काला अध्याय जुड़ेगा। पर बात मुसीबत की, तो लुटी-पिटी कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर के स्वास्थ्य मंत्री ने अस्पताल पहुंचाने का बंदोबस्त कर दिया। कांग्रेस कोटे से मंत्री श्यामलाल शर्मा ने कश्मीर समस्या का फार्मूला रैली में सुझा दिया- कश्मीर को आजादी दे दो, जम्मू को राज्य और लेह-लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दो। यानी संसद के प्रस्ताव और संविधान की भावना के खिलाफ राष्ट्रद्रोह जैसा बयान। सो अब कांग्रेस जेपीसी और थॉमस के बाद श्यामलाल शर्मा के बयान में फंसी। पुराने जमाने में कहते थे- त्रिदोष यानी एक साथ तीन बीमारी- कफ, पित्त और वात का कोई इलाज नहीं। अब कांग्रेस एक साथ तीन बीमारी का सामना कैसे करेगी, यह वक्त ही बताएगा।
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06/12/2010
Monday, December 6, 2010
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