होली में अबके महंगाई ने खूब हुल्लड़ मचाया। रंगों का त्योहार बेरंग न कहलाए। सो आम आदमी ने भी राजनीतिक पैंतरा आजमाया। सादगी की चादर ओढ़ हल्के में होली मना ली। ताकि बच्चे यह न कहें, गरीबी ने होली का रंग फीका कर दिया। पर तंगहाली को आम आदमी कब तक सादगी की चादर में ढांपेगा। राजनेता को तो देश पर राज भी करना, नेतागिरी भी। सो दोहरी जिंदगी नेताओं की फितरत में। तभी तो नेता विलासिता की जिंदगी भी जीते। दिखावे को सादगी का ढिंढोरा भी पीटते। अब आम आदमी राजनीति के पेच में इतना माहिर कहां। यों कहावत है, घूरे के दिन तो बारह साल बाद फिरते। पर अपने संविधान निर्माताओं का धन्यवाद करिए। जिन ने आम आदमी को पांच साल में दिन फिराने का हथियार दे रखा। पर लोकतंत्र के इस हथियार में भी नेताओं ने भ्रष्टïाचार का घुन घुसेड़ रखा। सो चुनावी माहौल में दारू से लेकर पैसा बंटने की खबरें आम हो जातीं। अगर नेताओं की नजर में वोट बिकाऊ न होते। तो सोचिए, पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों पर सत्ताधारी ऐसी हेकड़ी दिखाते? बजट पास हुआ नहीं, जनता की जेब से पैसे झपटने शुरू कर दिए। क्या आम आदमी इसी बजट का इंतजार कर रहा था? माना, सरकार ने भविष्य को ध्यान में रखा। तो क्या देश के भविष्य निर्माण में आम आदमी का कोई महत्व नहीं? क्या जिनकी आमदनी महीने में पचास हजार से ऊपर, सिर्फ वही देश के भविष्य निर्माता? आप ही सोचिए, पचास हजार कमाने वालों को टेक्स में थोड़ी छूट न मिलती। वही रकम आम आदमी के फायदे में इस्तेमाल हो जाती। तो क्या देश पीछे चला जाता? क्या महंगाई टीम मनमोहन को नहीं दिख रही? आखिरकार पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमत का सबसे ज्यादा असर किस पर पड़ेगा? अब ऐसा तो होगा नहीं, पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ीं। तो पीएम मनमोहन के काफिले में से एक गाड़ी कम हो जाएगी। अगर सचमुच कुछ कम होगा, तो वह आम आदमी का पेट होगा। फिर भी आम आदमी के हित में कोई सहानुभूतिपूर्ण बयान नहीं। अलबत्ता पीएम ने उडऩखटोले में से ही देश को आकाशवाणी दी। पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतें वापस नहीं होंगी। भविष्य को देखकर फैसले लिए, वैसे भी सबको खुश करना संभव नहीं। यों बीजेपी ने पीएम की आकाशवाणी को अहंकारवाणी कहा। अब बुधवार को भी विपक्ष संसद चलने देगा, ऐसी उम्मीद नहीं दिख रही। होली की थकान के बावजूद आंध्र में टीडीपी सड़कों पर उतरी। केरल में लेफ्ट का यूनियन और दिल्ली में बीजेपी। पर सिर्फ विपक्ष ही नहीं, होली से पहले यूपीए के घटक करुणानिधि और ममता अपने तेवर दिखा चुके। अब अगर ममता-करुणा को छोड़ दें। तो भी समूचे विपक्ष की एकजुटता सरकार की नाक में दम कर चुकी। पर कांग्रेस ने रार ठान ली, कम से कम विपक्ष के आगे घुटने नहीं टेकेंगे। सो प्रणव मुखर्जी बजट पेश करने के बाद कीमत वापसी पर कभी हां, कभी ना की मुद्रा में। पर सऊदी अरब से लौटते हुए पीएम ने आकाशवाणी सुनाई। तो कुछ समय के लिए कीमत वापस न लेने की गांठ और मजबूती से बांध ली। पर विपक्ष का महाजोट कांग्रेस की चूलें हिला चुका। बीजेपी ने तो कट मोशन लाने का एलान कर दिया। यानी भले महंगाई पर कामरोको प्रस्ताव के तहत बहस को सरकार राजी नहीं हुई। पर कट मोशन को कैसे टालेगी? अगर समूचा विपक्ष अड़ गया, तो सदन में वोटिंग अनिवार्य। ऐसे में मुश्किल होगी, तो सरकार के करुणा और ममता की। विपक्षी महाजोट भी कितने पानी में, यह साबित हो जाएगा। पर विपक्षी तेवर देख कांग्रेस सोचने को मजबूर। सो पीएम आकाशवाणी कर जैसे ही धरती पर उतरे। सात रेसकोर्स रोड में दरबार सज गया। कांग्रेस कोर कमेटी ने सोनिया गांधी की रहनुमाई में खूब मत्थापच्ची की। पर सिर दर्द एक हो, तो इलाज हो। मनमोहन केबिनेट के बवाली मंत्री कहिए या विदेश राज्यमंत्री। शशि थरूर फिर बयान बहादुरी की जंग में अव्वल निकले। पर कांग्रेस की कोर कमेटी थरूर के बारे में कुछ भी फैसला करे। आम आदमी को कोई सरोकार नहीं। आम आदमी तो यही पूछ रहा, महंगाई आसमान से कब जमीं पर आएगी। अब महंगाई का तो पता नहीं, पर कांग्रेस ने विपक्ष की धार भौंथरी करने की बिसात बिछा दी। अभी कीमत में कुछ कटौती की, तो क्रेडिट विपक्ष को जाएगा। पर चूल्हा-चौका अपना, तो खाना विपक्ष कैसे पकाए। सो कोर कमेटी ने तय किया, फिलहाल कीमत वापस नहीं लेंगे। इससे पीएम की बात रह जाएगी। पर बुधवार को प्रणव दादा बजट पर कांग्रेसी सांसदों से मिलेंगे। गुरुवार को कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग होगी। तो सोनिया गांधी की जनहित वाणी निकलेगी। फिर कहा जाएगा, कांग्रेसी सांसदों की भावना का ध्यान रख सोनिया गांधी ने सरकार से पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाने की अपील की। ऐसा नहीं हुआ, तो दस जनपथ से साउथ ब्लॉक एक चि_ïी जरूर पहुंचेगी। फिर पूरा रोलबैक तो नहीं, डीजल में बड़ी कटौती कर जनमुखी चेहरा दिखाएगी। कांग्रेस में यह परंपरा कोई नई नहीं। हर बार जनहितैशी फैसले का क्रेडिट दस जनपथ को दिया जाता। देखी कांग्रेस की रणनीति। इसे कहते हैं, 'व्हाट एन आइडिया सोनिया जी।' वाकई कांग्रेस की रणनीति आम आदमी समझ जाए। तो वह आम क्यों कहलाए। साठ साल से आम आदमी को इसी सियासत ने तो खास न होने दिया।
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02/03/2010
Tuesday, March 2, 2010
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