Thursday, August 5, 2010

‘शेरू’ आखिर रंगा सियार ही निकला

मणिशंकर अय्यर के भाग्य से कॉमनवेल्थ का छीका टूट ही गया। यों कॉमनवेल्थ के नाम पर मची राष्ट्रीय लूट का खुलासा शरद यादव दो साल से करते आ रहे। पर लोकतंत्र के चारों स्तंभों ने अनसुना कर दिया। अब मणि के बोल से ही सही, परतें उधड़ रहीं। तो सुनने वाले दांतों तले उंगली नहीं, पूरा हाथ दबा रहे। सचमुच जिस फ्रिज की कीमत आठ-दस हजार हो, उसका किराया कोई 45 हजार दे। तो ऐसे आयोजक को मोहम्मद बिन तुगलक ही कहेंगे। छतरी बढिय़ा से बढिय़ा 4100 रुपए की। पर कॉमनवेल्थ आयोजकों ने साढ़ छह हजार के किराए पर ली। ऐसा कोई सामान नहीं, जो दुगुने से पांच गुने अधिक दाम पर नहीं लिया गया हो। लूट मचाने का इससे नायाब फार्मूला क्या होगा। कुछ महीने के लिए अपना सामान किराए पर दो, फिर माल भी अपना और धन भी अपनी जेब में। सो करोड़ों खर्च कर दुरुस्त हुआ स्टेडियम पानी-पानी हो रहा। समूची दिल्ली खुदी हुई दिख रही। अब मौसम विभाग ने अक्टूबर के पहले हफ्ते में बारिश की आशंका जता दी। सो बेचारे शीला-कलमाड़ी की मुसीबत और बढ़ गई। अभी तो देश की जनता के सामने कलई खुल रही, तब विदेशी मेहमानों को क्या मुंह दिखाएंगे। अब तो चुटकी लेने वाले भी खूब हो गए। शीला-कलमाड़ी को सुझाव मिल रहा, जब दिवालिया कंपनियों से समझौता कर सकते हो। तो अक्टूबर में बारिश न हो, इसके लिए इंद्र से 'एमओयू' दस्तखत कर लो। इसी बहाने इंद्र के घर तक जाने का यात्रा भत्ता भी अच्छा-खासा बन जाएगा। और किसी को यह घोटाला मालूम ही नहीं पड़ेगा। किसे मालूम इंद्र कहां रहते हैं और उन तक पहुंचने का क्या रास्ता। अपने मीडिया वाले तो कम से कम नहीं पहुंचेंगे। वैसे भी कॉमनवेल्थ गेम पर जितनी हाय-तौबा मच रही, अभी उतना भ्रष्टाचार तो हुआ भी नहीं। पता नहीं आयोजकों को डाइटिंग किसने सिखा दी। अगर पूरे खेल के आयोजन पर 37,000 करोड़ का खर्चा माना जाए। तो दस से पंद्रह फीसदी का हिस्सा तो ईमानदारी का बनता। पर अभी महज दो हजार करोड़ के ही आरोप लग रहे। यानी 1700 करोड़ कम। यह तो 'भ्रष्टाचार' का अपमान है। याद करिए अपने राजीव गांधी ने क्या कहा था। एक रुपया अपने पड़ाव तक पहुंचते-पहुंचते महज 15 पैसे रह जाता। यानी जब 80-85 फीसदी पैसा खाकर कोई डकार न ले, तब उसे भ्रष्टाचार कहते हैं। पर अपने कॉमनवेल्थ आयोजन से जुड़े लोगों का लीवर कमजोर हो चुका। सो 15 फीसदी भी नहीं डकार पाए, पर देश में हो-हल्ला मच गया। बात संसद तक पहुंच गई। तो तैयारियों का हाल देख कांग्रेस खुलकर नहीं रो पा रही। ना ही कलमाडिय़ों का साथ दे रही। पर अब जैसे भी हो, जनता की लूट पर कॉमनवेल्थ गेम कराना मजबूरी। सो राज्यसभा में गुरुवार को खेल मंत्री एम.एस. गिल ने लाचारी दिखाई। बोले- अब बारात घर आने को तैयार, सो स्वागत करना ही होगा। जलसा पूरा करना होगा। पर बाद में सच सामने लाएंगे। फिलहाल जब कुछ तैयार ही नहीं हुआ, तो जांच किसकी कराएं। अब सोचो, गेम्स के बाद जांच होंगी, तो समूचे दस्तावेज दुरुस्त हो चुके होंगे। सो फिलहाल हल्ला शांत करने को दो-चार की बलि ले ली। आयोजन समिति से कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना का इस्तीफा हो गया। खन्ना के बेटे की कंपनी को भी ठेका मिला था। कलमाड़ी के करीबी टीएस दरबारी, संजय महेंद्रू हटाए गए। हैड एकाउंटेंट जयचंद भी नपे। अब एके मट्टू नए कोषाध्यक्ष होंगे। पर सुरेश कलमाड़ी को हटाने की मुहिम उचित नहीं। वैसे भी यह कैसा फार्मूला, खाने-पीने वाले तोंद निकाल कर आराम करने चले जाएं। और जिम्मेदारी संभालने वाला नया व्यक्ति सिर्फ काम करे, खाने-पीने को कुछ न मिले। वैसे भी जांच में होगा क्या। इराक तेल दलाली के मामले में वोल्कर रपट के बाद नटवर सिंह एंड फेमिली कांग्रेस से नप गई। पर जांच का निचोड़ क्या निकला। किसी पर कार्रवाई हुई। यहां भी वही हाल, दो-चार निलंबन हुए। गेम्स के बाद कुछेक और हो जाएंगे। फिर समय के साथ सारा खाया-पीया हजम हो जाएगा। पर बात गेम्स की तैयारी की। जब खेल मंत्री संसद में लाचारी दिखा रहे। तो सोचो, कैसे होगा राष्ट्रमंडल खेल? कैसे बचेगी राष्ट्र की इज्जत? सचमुच अब तो एक ही फार्मूला, जैसे आठ अक्टूबर 2009 को कॉमनवेल्थ गेम्स फैडरेशन के अध्यक्ष के साथ 71 देशों के डेलीगेट्स ने तैयारियों का मौका-मुआइना किया। तो समूची दिल्ली सील कर दी गई थी। ट्रेफिक की बदहाली विदेशी मेहमान न देख सकें, सो पहले ही लोगों को एडवाइजरी दी जा चुकी थी। तब यहीं पर लिखा था- अभी ऐसा हाल, तो 2010 में क्या होगा। सचमुच अब एक ही तरीका, सरकार उम्दा बाड़ तैयार करे। जब तक गेम्स हों, सभी दिल्ली वालों को बाड़ में ठूंस दो। दिल्ली से लगने वाले सभी बार्डर सील कर दो। समूचे खेल का लाइव टेलीकास्ट कराओ। और अपनी इज्जत बचाओ। सात साल में गेम्स की तैयारी का राजधानी में यह हाल। तो मनमोहन किस विकास दर का ढिंढोरा पीट रहे? अब कॉमनवेल्थ गेम्स के भ्रष्टाचार की जांच ईडी करे, या 'डीडी' (देवी-देवता)। पर होना-जाना कुछ नहीं। तभी तो जब सीवीसी ने खामियां उजागर कीं, सीबीआई से केस दर्ज करने को कहा। तो खेल में पीएम भी कूद गए। सो अगले ही दिन सीवीसी का बयान जारी हो गया- हमारी रपट अभी आरंभिक। सो निष्कर्ष न निकाला जाए। अब सोचो, जब सीवीसी का यह हाल। तो सीबीआई का क्या होगा? बेजा इस्तेमाल का आरोप यों ही नहीं लगता। पर बात गेम्स की, तो कॉमनवेल्थ गेम्स का 'शेरू' आखिर रंगा सियार ही निकला। बारिश होते ही भेद खुल गया। 'शेरू' यानी गेम्स का शुभंकर।
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05/08/2010