Tuesday, December 15, 2009

टुकड़ा-टुकड़ा राजनीति, चिथड़ा-चिथड़ा शांति-सौहाद्र्र

इंडिया गेट से
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टुकड़ा-टुकड़ा राजनीति, 
चिथड़ा-चिथड़ा शांति-सौहाद्र्र
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 संतोष कुमार
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             खरमास शुरू होते ही बीजेपी में बवंडर की तैयारी शुरू हो गई। नए अध्यक्ष की ताजपोशी अब शायद सूर्य के उत्तरायण होने के बाद हो। पर खरमास में अपने राजस्थान का बवेला जोर पकड़ेगा। संगठन चुनाव में गुट विशेष की मनमानी से त्रिगुट खफा। पर आलाकमान में मतभेद इस कदर। संगठन चुनाव रोकने का फैसला कर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। वसुंधरा, माथुर और रामदास की तिकड़ी आडवाणी, राजनाथ, जेतली, वेंकैया से मिल चुकी। पर राजनाथ मानने को तैयार नहीं। सो बुधवार को खरमास शुरू होगा। तो इधर रामदास के दिल्ली लौटते ही त्रिगुट का जमा-खर्च मंथन होगा। सो नए भूचाल की आशंका मानकर चलिए। भूचाल कैसा होगा, अपनी जानकारी में। पर आज खुलासा करना मुनासिब नहीं। सो बीजेपी और विवाद के नए चैप्टर का इंतजार करिए। वैसे भी संसद का सत्र उठान पर। सो सत्र के बाद करने को कुछ काम भी चाहिए। जैसे अंत्याक्षरी में कहते हैं ना- 'बैठे-बैठे क्या करोगे, करना है कुछ काम। शुरू करो...।' पर मंगलवार को आडवाणी ने अपने सांसदों की खूब पीठ ठोकी। सरकार को कुछ मुद्दों पर घेरने के लिए बधाई दी। बोले- 'हम विपक्ष का दायित्व निभाने में सफल रहे। सरकार ने विपक्ष की एकजुटता तोडऩे की कोशिश में लिब्राहन रपट लीक की। पर विपक्ष एकजुट रहा। लिब्राहन बहस में भी बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस निशाने पर रही।'  भले आडवाणी इसे एकजुटता कहें। पर यह सच्चाई नहीं। लिब्राहन बहस में मुलायम हों या माया के सिपहसालार। लेफ्ट हो या बीजेपी की सहयोगी जेडीयू। सबके अपने-अपने वोट बैंक। अब जब एनडीए ही एक सुर में न बोला। तो यह कैसी एकजुटता? पर शायद मौजूदा सत्र की आखिरी पार्लियामेंट्री पार्टी मीटिंग थी। सो हौसला अफजाई करना आडवाणी की मजबूरी। अब गुरुवार को कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग होगी। तो सोनिया गांधी भी विपक्ष को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अपनों की पीठ ठोकेंगी। सांप्रदायिकता और सेक्युलरिज्म की दुहाई तो राजनीतिक फैशन में। पर सबसे अहम होगा तेलंगाना का मुद्दा। तेलंगाना की हड्डïी कांग्रेस के गले में इस कदर फंस चुकी। मंगलवार को लोकसभा में भी फजीहत से दो-चार होना पड़ा। तेलुगुदेशम ने भी तेलंगाना पर यू-टर्न ले लिया। सो लोकसभा में यूनाइटेड आंध्र का नारा लगा खूब बवाल काटा। तो बवाल में कई कांग्रेसी सांसद भी साथ हो लिए। आंध्र में दिवंगत सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डïी के बेटे जगन मोहन भी वैल में कूद पड़े। साथ में चार कांग्रेसी केएस राव, श्रीनिवासुलू, बप्पी राजू और कृपा रानी भी। जगन मोहन ने आगे बढ़ टीडीपी के नारायण राव से हाथ भी मिलाया। अखंड आंध्र के कागज भी लहराए। सो तेलंगाना रीजन के दर्जन भर कांग्रेसी सांसद मुश्किल में पड़ गए। अनुशासन और मर्यादा का लिहाज कर ये सब भी अपनी सीटों पर खड़े हो गए। बाद में तेलंगाना रीजन के इन सांसदों ने जगन मोहन पर कार्रवाई की मांग की। अनुशासन समिति के मुखिया ए.के. एंटनी से मिलकर दरख्वास्त भी लगा दी। अब कांग्रेस जैसी मुश्किल में फंसी, जगन पर कार्रवाई संभव नहीं दिखती। वैसे भी वाईएसआर के बाद से जगन सीएम बनने की जुगत में एड़ी-चोटी लगा चुके। पर वाईएसआर ने अपने जमाने में जितना सोनिया का भरोसा जीता, दिल्ली में उतने ही विरोधी पैदा कर लिए। सो वाईएसआर के बाद विरोधियों ने जगन की मुहिम सिरे न चढऩे दी। अब जगन भी मौका नहीं चूक रहे। भले कांग्रेसी की फजीहत हो, पर पिता की तरह आंध्र की जनता का दिल जीतने में जुट गए। सो गुरुवार को सोनिया गांधी भी शायद बर्र के छत्ते में हाथ डालने से परहेज करें। आम सहमति के नाम पर पल्ला झाडऩे की कोशिश होगी। आंध्र में तेलंगाना के विरोध में भड़की आग को शांत करने के लिए मंगलवार को सीसीपीए हुई। राजनीतिक मामलों की केबिनेट कमेटी भी क्या करे। सो दो लाइन का प्रस्ताव पारित कर आंध्र की जनता से शांति और सौहाद्र्र की अपील की। पर तेलंगाना विरोधी अब बाकायदा भरोसा मांग रहे। आंध्र का बंटवारा नहीं होगा, इसका सरकारी एलान चाह रहे। पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। वैसे भी तेलंगाना की आग पर राजनीतिक दल अलग-अलग अंदाज में मजा ले रहे। टीडीपी जब एनडीए के साथ थी, तो तेलंगाना नहीं बनने दिया। अबके विधानसभा चुनाव हुए। तो तेलंगाना के समर्थन में खड़ी हो गई। पर अब मौका देख फिर पलटी मार ली। सिर्फ टीडीपी ही नहीं। लेफ्ट वाले तेलंगाना के पक्ष में खड़े। पर गोरखालैंड के लिए राजी नहीं। माया तो यूपी को तीन टुकड़ों में बांटना चाह रहीं। पर मुलायम अखंड यूपी का राग अलाप रहे। यों मुलायम भी तेलंगाना के पक्ष में। यानी सूबाई पार्टियां खुलकर राजनीतिक दोगलेपन का खेल खेल रहीं। सो राष्टï्रीय पार्टियां मुश्किल में। सीसीपीए की मीटिंग में पवार और ममता ने भी कांग्रेस को लपेटा। तेलंगाना पर हुए फैसले में सलाह-मशविरा नहीं करने से खफा। सो गरमा-गरमी के बीच ही प्रस्ताव तय हुआ। अब शांति कायम करने की कवायद होगी। पर तेलंगाना विवाद ने कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी को भी कनफ्यूज कर दिया। सो सूबाई पार्टियां अपने-अपने अंदाज में रोटियां सेक रहीं। भले टुकड़ों की राजनीति में देश के अमन-चैन के चिथड़े उड़ रहे हों।

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15/12/2009