Thursday, July 22, 2010

मुरली और अमेरिका की फिरकी से हारा भारत!

होम मिनिस्ट्री क्या कांग्रेस या सरकार की शान नहीं? चिदंबरम ने कछुआ चाल वाली मिनिस्ट्री को खरगोश बना दिया। फिर भी दिग्विजय सिंह हों या एसएम कृष्णा, ऐसे उपहास क्यों बना रहे। जैसे होम मिनिस्ट्री कोई मिनिस्ट्री नहीं, अलबत्ता समूचे गांव की भौजाई हो। यों दिग्विजय के बयान के बाद कांग्रेस ने अपने बड़बोले नेताओं की नकेल फिर कसी। पर मनमोहन राज में बयान बहादुरों की कमी नहीं। गुरुवार को होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने भी नाम लिए बिना चुनौती दे डाली। अगर उनसे बेहतर होम मिनिस्ट्री संभाल सकते, तो बन जाएं मंत्री। पर अब विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के निशाने से कैसे निपटेंगे चिदंबरम। भारत-पाक की 15 जुलाई की वार्ता नाकाम हुई। अगले दिन पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कैसे भारत और कृष्णा को पानी पी-पीकर कोसा, सबने देखा। अपने कृष्णा इस्लामाबाद से जैसे ही दिल्ली उतरे। तो कुरैशी के बयानों का जवाब दिया। होम सैक्रेट्री जीके पिल्लई के बयान की तुलना हाफिज सईद से किए जाने को गलत ठहराया। वार्ता की रात दोनों विदेश मंत्री जब साझा प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे। तो कुरैशी ने कृष्णा की मौजूदगी में भारत के होम सैक्रेट्री के बयान की तुलना आतंकी हाफिज से की थी। पर कृष्णा ने तब चुप्पी साध ली। फिर दिल्ली हवाई अड्डे पर सफाई दी, वहीं जवाब देकर माहौल खराब नहीं करना चाहते थे। यानी कृष्णा ने पिल्लई के बयान को गैरवाजिब नहीं ठहराया। पर जैसे ही अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में काबुल गए। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन से मुलाकात हुई। फिर कृष्णा तो कृष्णा, मनमोहन भी कुरैशी की भाषा बोलने लगे। अब कृष्णा भी विदेश मंत्री स्तर की बातचीत का जायका खराब करने का दोष होम सैक्रेट्री के सिर मढ़ रहे। तो मनमोहन सिंह ने भी पिल्लई को फटकार लगाई। पिल्लई के बयान को कृष्णा-मनमोहन वार्ता के माहौल को बिगाडऩे वाला मान रहे। कृष्णा ने तो यहां तक कह दिया- अगर वह होम सैक्रेट्री होते, तो डेविड हेडली के खुलासे पर बयान नहीं देते। अब कोई पूछे, डेविड हेडली से पूछताछ किसलिए की? क्या हेडली का खुलासा देश के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखना चाहती सरकार? क्या हेडली का बयान केबिनेट मीटिंग में होने वाली बहस जैसा, जिसका खुलासा नहीं किया जा सकता? आखिर अमेरिका या पाकिस्तान को खुलासे पर एतराज क्यों? क्या भारत की अवाम को सच्चाई जानने का हक नहीं? अमेरिका का क्या, 9/11 के बाद उसके घर में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ। सो उसने आतंकी डेविड हेडली से समझौता कर लिया। पर भारत ने कई आतंकी हमले झेले। सो आतंक फैलाने वालों को बेनकाब करना भारत सरकार की जिम्मेदारी। क्या 26/11 के बाद अमेरिकी एफबीआई ने कसाब से पूछताछ नहीं की? अमेरिका के टाइम्स स्क्वायर में बिना फटा बम मिला। तो एफबीआई सीधे फैजल के पाकिस्तानी घर पहुंच गई। पर मुंबई के हमलावर पाकिस्तान में खुले आम घूम रहे। आईएसआई और हुक्मरान पूरी सरपरस्ती दे रहे। सो अपने होम सैक्रेट्री के बयान में कुछ गलत नहीं। ना ही गलत समय पर दिया गया बयान। अलबत्ता आतंकवाद के मुद्दे पर वार्ता को केंद्रित करने के लिए हेडली के खुलासे का सार्वजनिक होना जरूरी था। अगर पाकिस्तान ईमानदार होता, तो हेडली के खुलासे के मुताबिक जांच का भरोसा दिलाता। पर आईएसआई के खिलाफ आरोप कबूलने की हिम्मत पाकिस्तान के किसी भी हुक्मरान में नहीं। सो कुरैशी की बौखलाहट उनके हर बयान में दिख रही। अमेरिका भी अपना दोमुंहापन दिखा रहा। एक तरफ पाकिस्तान को धमकी, अगर अमेरिका में कोई आतंकी हमला हुआ, तो पाक को विनाशकारी परिणाम भुगतने होंगे। पर दूसरी तरफ भारत के मामले में पाकिस्तान को शह दे रहा। तभी तो कुरैशी ने वार्ता के बाद तेवर दिखाए, अगले दिन नरमी। अब फिर तेवर दिखाने लगे। पर मनमोहन सरकार और कृष्णा की यह कैसी कूटनीति? सचमुच अमेरिकी दबाव में कूटनीति की इंतिहा हो गई। अमेरिकी प्रवक्ता पीजे क्राउले ने हेडली के बयान के सार्वजनिक होने पर चिंता तक जता दी। आखिर कब तक अमेरिका के आगे दुम हिलाती रहेगी सरकार? क्या भारत का कोई अपना आत्म सम्मान नहीं? होम सैक्रेट्री पिल्लई ने कोई अपनी मर्जी से बयान नहीं दिया होगा। सरकार ने पूरी रणनीति बनाई होगी। पर अमेरिका ने झिडक़ी लगाई। तो सारा ठीकरा पिल्लई पर फोड़ दिया। याद है ना, कैसे अमेरिका ने अपनी जांच एजेंसी को बैरंग लौटाया था। हेडली से पूछताछ तो दूर, चेहरा तक नहीं देखने दिया था। पर भारत में मनमोहन को विपक्ष ने चौतरफा घेरा। तो मनमोहन ने ओबामा से बात की। पर नवंबर 2009 में एफबीआई के जरिए छनकर आए हेडली के बयान जब मीडिया में जारी हो गए। तो अमेरिका की नीति देखिए, भारत एजेंसी को हेडली से पूछताछ की रपट शेयर करने से भी इनकार कर दिया था। अब पूछताछ कर ली, तो अमेरिका ने शर्तों का पुलंदा थमा दिया। सो अब तय करना होगा, भारत की विदेश नीति अमेरिका बनाएगा या खुद भारत। याद है ना, शर्म अल शेख में मनमोहन पाक से बातचीत को राजी हुए। तो संसद में यह कहकर बचाव किया, आतंकवाद पर कार्रवाई के बिना सार्थक बातचीत संभव नहीं। पर पाक तो आतंक पर बातचीत ही नहीं करना चाहता। सो कृष्णा के बयान से तो यही लग रहा, जीती बाजी हार गया भारत। उधर श्रीलंका के गाले मैदान पर मुरली की फिरकी ने भारत की टीम को चित किया। तो कूटनीति में अमेरिका की फिरकी ने पाक के आगे भी भारत को झुका दिया। 'एसएमके' यानी शाह महमूद कुरैशी और एसएम कृष्णा की भाषा एक हो गई।
---------
22/07/2010