Monday, December 20, 2010

जनता की छोड़ो, आओ भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार खेलें

कांग्रेस की तीन दिनी महाकथा का समापन हो गया। अब इसे महाधिवेशन कहिए या कार्नीवल। कांग्रेस की यही खूबी, जो भी हो, डंके की चोट पर करती। चाहे वह पाप हो या पुण्य का काम। सो भ्रष्टाचार के साये में कांग्रेस ने मंथन तो किया। पर बीजेपी को खरी-खरी सुना ही कर्तव्य की इतिश्री कर ली। अब कोई विपक्षी दल ऐसा मंथन करे, तो सत्ता से दूरी का दर्द समझा जा सकता। पर जब सत्ता में बैठी कांग्रेस ऐसा कर रही, तो भ्रष्टाचार का भला क्या बिगड़ेगा? बीजेपी ने अगर पाप किया, या कर रही। तो आज वही गठरी सिर पर ढोने को मजबूर। पर कांग्रेस उस पाप से अपना पाप नहीं छुपा सकती। कर्नाटक पर भले बीजेपी दोहरापन दिखा रही। पर क्या विपक्ष के रवैये से देश में कांग्रेस को लूट का लाइसेंस मिल गया? कांग्रेस को स्पेक्ट्रम, आदर्श और कॉमनवेल्थ घोटाले पर जवाब देना था। पर कांग्रेस ने शायद इन घोटालों की मजबूत जड़ें देख लीं। सो अब जब कांग्रेस को कोई सुगम राह नहीं दिख रही। तो आक्रमण ही बेहतर बचाव का मंत्र अपना लिया। संसद का सत्र लोकतंत्र में काला इतिहास बना गया। तो अब कांग्रेसी जेपीसी को ही कमतर बताने में जुट गए। सोनिया-राहुल-पीएम और गाल बजाने वाले दिग्विजय ने एक सुर में पीएसी को बेहतर बताया। मंगलवार को मनमोहन ने तुरुप का पत्ता फेंका। बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी की रहनुमाई वाली पीएसी के सामने पेश होने का ऑफर कर दिया। बोले- सीएजी रपट के बाद मंत्री को हटाया। सीबीआई, ईडी, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच, सुप्रीम कोर्ट की मॉनीटरिंग और पीएसी की जांच चल रही। पीएसी के पास वह सारी शक्तियां, जो जेपीसी को दी जा सकतीं। सो जेपीसी का कोई मतलब नहीं। पर बीजेपी ने संसद ठप किया, जबकि मेरे पास छुपाने को कुछ नहीं। अब कोई पूछे- छुपाने को कुछ नहीं, तो जेपीसी क्यों नहीं? जब आप आधा दर्जन एजेंसियों से जांच कराने को राजी। तो जेपीसी से भागने का कुछ तो मतलब होगा। बीजेपी के अरुण जेतली ने तो फौरन सवाल उठाया- चुप्पी तोडऩे के लिए पीएम का स्वागत। पर शासनकर्ता जांच के लिए खुद मंच का चयन नहीं कर सकता। अगर पीएम गलत नहीं, तो सीमित अधिकार वाली पीएसी से जांच पर जोर क्यों दे रहे? उन ने आरोप मढ़ा- पीएम देश से बहुत सी बातें छुपा रहे। मसलन, तीन साल तक मनमोहन चुप क्यों रहे? कैग रपट से पहले तक राजा का बचाव क्यों करते रहे? सीवीसी पद पर दागी थॉमस के लिए वीटों क्यों किया? सिर्फ जेतली नहीं, वामपंथी सीताराम येचुरी ने भी पीएम को अपने दिन याद कराए। येचुरी बोले- एनडीए काल में मनमोहन ने जेपीसी के लिए तीन हफ्ते तक संसद का बॉयकाट किया था। सो दोहरे मापदंड न अपनाएं। यानी भ्रष्टाचार अब विशुद्ध रूप से राजनीति के मैदान का फुटबाल बन गया। तू चोर, तो मैं भी चोर की लड़ाई शुरू हो गई। विपक्ष ने संसद के बाद सडक़ पर बिगुल फूंका। तो कांग्रेस महाधिवेशन से सोनिया ने भी हुंकार भरी। जैसे विपक्ष मैदान में, वैसे हम भी कूदेंगे। बाकायदा विपक्ष की रैलियों के जवाब में विधानसभा वार रैली का एलान कर दिया। सोनिया ने अपने समापन भाषण में दो-टूक कहा- हमारा रिकार्ड एनडीए से बेहतर। पी. चिदंबरम ने तो भविष्यवाणी कर दी- अगले एक दशक तक बीजेपी सत्ता में नहीं आने वाली। उन ने विपक्ष को बतलाया, हम शासन करना जानते हैं। ऐसा ही गुरूर कांग्रेस ने बोफोर्स के वक्त भी दिखलाया था। अबके तो 206 सांसद को ही तीन चौथाई बहुमत मानकर फूल रही। पर सवाल- एनडीए से तुलना करना ही शासन? या कांग्रेस सिर्फ शासन करना ही जानती, सुशासन देना नहीं? आखिर यह कैसा मंथन, जब भ्रष्टाचार अपने चरम पर। तो कांग्रेस अपना दामन साफ दिखाने के बजाए बीजेपी के दामन में झांक रही। आतंकवाद के मुद्दे पर तो सख्त कार्रवाई के बजाए मजहबी चासनी लगाई जा रही। अयोध्या फैसले और बिहार की हार के बाद कांग्रेस की तय रणनीति के तहत दिग्विजय सिंह ने मुस्लिम वोट के ध्रुवीकरण की कमान थाम ली। सो अब बीजेपी भी मान रही, दिग्विजय का यह हथकंडा कांग्रेस-बीजेपी दोनों के लिए फायदेमंद। यानी वोट बैंक का चश्मा पहन दोनों खेल रहे। पर महाधिवेशन से आम आदमी को क्या मिला? पीएम ने महंगाई की बात की। तो इस बात की खुशी जताई कि महंगाई दर कम हो रही और मार्च तक साढ़े पांच फीसदी पर ले आएंगे। पर मंगलवार को ही एक खबर सुनने को मिली- चंडीगढ़ में एक व्यक्ति को जब प्याज की कीमत 65 रुपए बताई गई। तो हार्ट अटैक हो गया। मनमोहन राज में महंगाई दर भले ऊपर-नीचे होती रही। पर महंगाई हमेशा बढ़ती रही। चिदंबरम ने एनडीए का मखौल उड़ाया। विकास दर की ढपली बजाई। पर देश की जनता देख रही, किसका कितना विकास हुआ। भ्रष्टाचार के आरोपों को महाधिवेशन के मंच से निराधार बताया गया। तो सवाल- किस आधार पर राजा का इस्तीफा लिया? सीबीआई, ईडी, पाटिल कमेटी, शुंगलू कमेटी, सुप्रीम कोर्ट की मॉनीटरिंग, इनकम टेक्स और सीएजी क्या लकीर पीट रहीं? यानी कुल मिलाकर कांग्रेस महाधिवेशन में भ्रष्टाचार पर भजन तो हुआ। पर भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई से अधिक बीजेपी को कोसा। भ्रष्टाचार का पर्दाफाश तो नहीं, पर विपक्ष के आरोपों का पर्दाफाश करने का खम ठोक दिया। अब विपक्ष और कांग्रेस दोनों जनजागरण अभियान चलाएंगी। कोई भी भ्रष्टाचार पर उदाहरण पेश करने को तैयार नहीं। अलबत्ता भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार खेल रहीं। ताकि जनता इसी उधेड़बुन में उलझ जाए कि भ्रष्टाचार के इस खेल में कौन सांपनाथ, कौन नागनाथ।
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20/12/2010