Thursday, August 12, 2010

राजीव बचाओ मुहिम में एंडरसन कथा का द एंड

लोकसभा से राज्यसभा तक पहुंचते-पहुंचते अपनी व्यवस्था की तेरहवीं हो गई। अर्जुन सिंह ने ऐसा अग्नेयास्त्र छोड़ा, सात दिसंबर 1984 के सारे रिकार्ड स्वाहा हो गए। अब सरकार के पास कोई रिकार्ड नहीं। माननीय वॉरेन एंडरसन को किस माननीय के फोन से भगाया गया। यह सवाल सिर्फ सवाल ही रहेगा। जवाब चाहिए, तो स्वर्ग का पासपोर्ट लेना होगा। गुरुवार को पी. चिदंबरम ने भोपाल त्रासदी पर राज्यसभा में बहस का जवाब दिया। तो सचमुच कांग्रेसी गुरु घंटाल निकले। जहां-जहां कांग्रेस फंसती दिखे, रिकार्ड ही नहीं मिलेगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के मामले में यही हो चुका। यानी न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी फार्मूले से कांग्रेस ने त्रासदी पर फैला राजनीतिक कचरा निपटा लिया। चिदंबरम ने कह दिया- सात दिसंबर 1984 को गृह मंत्रालय से किसने चीफ सैक्रेट्री ब्रह्म स्वरूप को हिदायत दी, इसका कोई रिकार्ड नहीं। यानी अर्जुन ने राजीव को क्लीन चिट दी। गृह मंत्रालय पर ठीकरा फोड़ा। तो चिदंबरम ने रिकार्ड न होने की दुहाई दी। अब आप ऐसी व्यवस्था को क्या कहेंगे? सो सीताराम येचुरी ने सही बोला। बोले- औपनिवेशिक काल के सारे दस्तावेज हमारे पास हैं, पर सात दिसंबर 1984 के नहीं। यह अपने आप में हास्यास्पद। पर चिदंबरम ने साफ कह दिया- वक्त के साथ यादें कमजोर पड़ जाती हैं। पच्चीस साल बाद यह पूछा जा रहा, जब अधिकांश लोग गुजर चुके। अगर पचास साल बाद पूछते, तो सब गुजर चुके होते। सो अब उस वक्त के व्यक्ति ने जो कहा, वही मानना होगा। यानी अर्जुन ने जो कहा, उसे ही कांग्रेस ने ढाल बना लिया। पर अर्जुन की पोल शिवराज ने खोल दी। अर्जुन ने सरकारी दामाद की तरह एंडरसन की रिहाई से खुद को अनजान बताया था। पर शिवराज ने खुलासा किया- सात दिसंबर 1984 को सीएम अर्जुन के आर्डर से स्टेट का विमान एंडरसन को लेकर दिल्ली गया। यह बात लॉगबुक में दर्ज। शिवराज ने एक और बात कही, जो सोलह आने सही। अगर यही सच था, तो अर्जुन दो महीने चुप क्यों रहे? यानी मतलब साफ, कांग्रेस ने स्क्रिप्ट तैयार करने में वक्त लगा दिया। तो अर्जुन को भी स्टेज पर आने में वक्त लगा। अब आप ही देखो, मध्य प्रदेश में अभी बीजेपी की सरकार। तो तमाम सरकारी रिकार्ड मिल गए। केंद्र में कांग्रेस की रहनुमाई वाली यूपीए सरकार, तो यहां कोई रिकार्ड ही नहीं। यानी सत्ता सिर्फ पुरुष को स्त्री और स्त्री को पुरुष नहीं बना सकती। अलबत्ता सारे कर्मकांड बखूबी कर सकती। वैसे झूठ के पांव नहीं होते। पर सत्ताधीश चाहे, तो जयपुरिया पांव लगाकर चला दे। गुरुवार को राज्यसभा में पी. चिदंबरम ने यही किया। अगर एक लाइन में कहें, तो अब एंडरसन कथा का द एंड हो गया। वैसे भी इंदिरा के बाद की सरकारें अमेरिका के आगे दुमछल्ला बनकर ही रहीं। अगर अपनी सरकार में माद्दा होता, तो रासायनिक कचरा भोपाल में और मुख्य आरोपी एंडरसन अपने घर अमेरिका में मौज की जिंदगी नहीं काट रहा होता। बात बहुत पुरानी नहीं। मैक्सिको की खाड़ी में ब्रिटिश कंपनी बीपी का तेल फैल गया। तो अमेरिकी कानून के तहत तय साढ़े सात करोड़ डालर से इतर बीस अरब डालर का हर्जाना भरवाया। हर्जाना वसूलने के लिए ओबामा ने सबसे पहले बीपी के अध्यक्ष टोनी हेवर्ड को लंदन से वाशिंगटन बुलवाया, संसदीय कमेटी के सामने पेश किया। और आखिर में ब्रिटिश कंपनी को झुकना पड़ा। हर्जाना भी भरा और कचरा भी वही उठाएगी। क्या अपने मनमोहन सिंह से ऐसे माद्दे की उम्मीद करें? उम्मीद करना शायद बेमानी होगा। राज्यसभा में सीताराम येचुरी ने अमेरिकी दबाव का सवाल उठाया। तो चिदंबरम ने क्या कहा, जरा सुनिए। बोले- चूक हमसे हुई, सो अमेरिका को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। हमें अपनी भूल-चूक दूसरे पर नहीं डालनी चाहिए। अब हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। पर कांग्रेस की पुख्ता रणनीति भी देख लो। कबूला, भोपाल की त्रासदी मानव निर्मित थी। प्रशासनिक-न्यायिक नाकामी को भी माना। राजनीतिक व्यवस्था के नकारेपन को भी। न्यायपालिका के सुपुर्द कर 26 साल तक खामोश बैठी फाइल घुमाऊ कार्यपालिका को कोसा। माना, सात जून के फैसले के बाद व्यवस्था की नींद टूटी। फिर राहत-पुनर्वास की बात, एंडरसन के प्रत्यर्पण की झूठी दिलासा। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई क्यूरेटिव पिटीशन। पर कुल मिलाकर चिदंबरम भी राजीव बचाओ मुहिम में जुटे दिखे। कांग्रेस ने राजीव गांधी को अर्जुन से क्लीन चिट दिलवा दी। गृह मंत्रालय में रिकार्ड नहीं। सो विपक्ष को माकूल जवाब कैसे दिया जाता, यह भी चिदंबरम ने कर दिखाया। अरुण जेतली ने घेरने की कोशिश की। तो चिदंबरम बोले- यह सवाल 2001 में क्यों नहीं उठाया? तब तो आपके होम मिनिस्टर थे। रिकार्ड देखकर पता लगा लेते। चिदंबरम ने बिना लाग-लपेट कहा- विपक्ष के नेता की नीयत में खोट। उनकी मंशा राजीव गांधी को कटघरे में खड़ा करने की। पर राजीव गांधी ने कुछ नहीं किया। फिर उन ने अर्जुन उवाच दोहरा दिया। पर विपक्ष ने फिर घेरने की कोशिश की। तो कांग्रेसी राजीव शुक्ल बोले- कंधार प्रकरण में आडवाणी को जानकारी नहीं थी, यह मान रहे। तो यह क्यों नहीं मानते कि एंडरसन के बारे में राजीव को जानकारी नहीं थी। अब आप इसे क्या कहेंगे? राजीव शुक्ल ने राजीव गांधी का बचाव किया या यह बताया, जैसे आडवाणी ने गुमराह किया, वैसे ही अर्जुन भी कर रहे। मतलब तो यही निकल रहा। सचमुच भोपाल गैस त्रासदी की पूरी बहस राजीव को फंसाने और बचाने में ही निपट गई।
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12/08/2010