Wednesday, December 23, 2009

जीता त्रिगुट, हार गया बीजेपी हाईकमान

इंडिया गेट से
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जीता त्रिगुट, हार गया
बीजेपी हाईकमान
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 संतोष कुमार
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         झारखंड में भी बीजेपी की बत्ती गुल हो गई। यों कामयाब कांग्रेस भी नहीं हुई। अलबत्ता विधानसभा फिर लंगड़ी हो गई। पर शिबू सोरेन की किस्मत जरूर खुल गई। सत्ता की चाबी लेकर बिकवाली को बाजार में खड़े हो गए। अब लुटी-पिटी बीजेपी के पास देने को तो कुछ नहीं। सो कांग्रेस फिर कोयला मंत्रालय देकर पटाने की कोशिश में। पर शिबू हैं कि मानते नहीं। शिबू को तो सीएम की कुर्सी चाहिए। पर कांग्रेस एकला नहीं, अलबत्ता बीजेपी से निकले बाबूलाल मरांडी के साथ गठबंधन। दोनों मिलकर बड़े गठबंधन के तौर पर उभरे। सो मरांडी अपना दावा यों ही नहीं छोड़ेंगे। अब सरकार किसी की भी बने, झारखंड फिर अस्थिरता के गर्त में। यों बुधवार को केंद्र सरकार ने आंध्र को अस्थिरता के दौर से बाहर निकालने की कोशिश की। तेलंगाना की तलवार आम सहमति की म्यान में डाल दी। पी. चिदंबरम ने तेलंगाना के गठन की कवायद का एलान किया था। सो आंध्र में भड़की आग को थामने के लिए सरकार ने चिदंबरम से ही ताजा बयान दिलवाया। चिदंबरम ने दस दिसंबर को तेलंगाना वाला बयान दिया था। आग भड़की, तो सरकार ने कदम खींच लिए। सो 15 दिसंबर को यहीं पर लिखा था- 'आम सहमति की म्यान में तेलंगाना की तलवार।'  पर कोई पूछे, सिर्फ दो लाइन के एलान में दस दिन क्यों लगाए? आंध्र में हिंसा से रोजाना सौ करोड़ का नुकसान हो रहा। खुद सीएम रोसैया ने इश्तिहार जारी कर लोगों से अपील की। पर शायद चिदंबरम काम के बोझ तले दबे होंगे। सो आंध्र को हिंसा की आग में जलने दिया। तभी तो बुधवार को चिदंबरम ने काम के बोझ का रोना रोया। अब ऐसा भी क्या, जो देश का होम मिनिस्टर सुरक्षा को भगवान भरोसे बताए। चिदंबरम ने 26/11 के बाद हमला न होने का क्रेडिट लक को दिया। अलग से आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय बनाने की पैरवी की। यों ऐसा ही मंत्रालय पाकिस्तान में भी। पर पाक के हालात बताने की जरूरत नहीं। सो अगर इच्छाशक्ति हो और कोई जिम्मेदारी को बोझ न समझे। तो मंत्रालय बंटे या न बंटे, देश की सुरक्षा की जा सकती। सो अब बात बीजेपी की। कांग्रेस बुधवार को आंध्र का बवाल थामने में जुटी रही। तो बीजेपी राजस्थान को सुलझाने में मशगूल। दोपहर ढाई बजे से मीटिंगों का दौर शुरू हुआ। तो रात के नौ बजे तक मीटिंग-मीटिंग का खेल होता रहा। वसु, माथुर, रामदास का त्रिगुट किस तरह रण के मूड में। यह तो आपको पिछले गुरुवार यहीं पर बता चुके। सो दिल्ली पहुंचते ही त्रिगुट का रामदास के घर जमावड़ा हुआ। ठीक ढाई बजे तिकड़ी ष्ठरु९ष्ट ङ्ख ३५९७ नंबर की कार में एकसाथ बीजेपी हैड क्वार्टर पहुंची। नितिन गडकरी पहले ही रामलाल के साथ बैठे थे। सो पहले राउंड की मीटिंग घंटे भर चली। बीच में वेंकैया और विनय कटियार आए-गए। फिर माथुर कटियार के पास चले गए। तो रामदास रामलाल के पास। वसुंधरा गडकरी से ही अकेले बतियाती रहीं। फिर तिकड़ी कटियार के कमरे में इक_ïी हुई। तो इधर दूसरा गुट चौकड़ी बनाकर गडकरी के कमरे में घुसा। अरुण चतुर्वेदी, गुलाब चंद कटारिया, वासुदेव देवनानी और फूलचंद भिंडा बैक डोर से मीटिंग के लिए पहुंचे। तो 20 मिनट में पहला राउंड निपटा। दूसरे राउंड से पहले गडकरी पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग में चले गए। फिर मीटिंगों का दौर चलता रहा। कभी चतुर्वेदी एंड कंपनी गडकरी के कमरे में। तो त्रिगुट वेंकैया के कमरे में। विनय कटियार पर्यवेक्षक के नाते कभी इधर तो कभी उधर होते रहे। बाल आप्टे भी गडकरी के साथ मीटिंग में शामिल हुए। तो आखिरी दौर की मीटिंग में अरुण जेतली भी आ गए। यानी राजस्थान संगठन चुनाव का पेच सुलझाने में दोपहर से रात हो गई। पर रार खत्म नहीं हुई। अब गडकरी को भी इल्म हो गया होगा, महाराष्टï्र और देश के किले में कितना फर्क। जब राजस्थान की चुनौती ने गडकरी के पसीने छुड़ा दिए। तो सोचो, खुदा न खास्ता कभी राजनाथ सिंह की तरह गडकरी को भी अरुण जेतली, सुषमा या नरेंद्र मोदी जैसे घाघ से चुनौती मिल गई। तब क्या होगा। यों अभी तक गडकरी को नरेंद्र मोदी की बधाई नहीं मिली। पर बात राजस्थान की। केंद्रीय चुनाव अधिकारी थावर चंद गहलोत से लेकर संगठन मंत्री रामलाल तक। चुनाव में धांधली की वसुंधरा खेमे की दलील से सहमत नहीं थे। सो गडकरी का सहमत न होना लाजिमी। पर स्थिति विस्फोटक होने लगी। वसुंधरा खेमे ने साफ कर दिया, संगठन चुनाव गुरुवार को हुए। तो नहीं माना जाएगा। जयपुर में 25 हजार वर्करों के जमावड़े की तैयारी थी। सो साख बचाने को गडकरी ने संगठन चुनाव टालना मुफीद समझा। अगर चुनाव न टलते, तो बीजेपी के अनुशासन के परखचे उड़ जाते। अब भले वसु, माथुर, रामदास के त्रिगुट को पूरी जीत नहीं मिली। पर दाव काम आ गया। त्रिगुट ने दलील दी, चतुर्वेदी से एतराज नहीं। प्रक्रिया से नाराजगी। आखिर पंचायत चुनाव के बहाने फरवरी के दूसरे हफ्ते तक चुनाव टलवा त्रिगुट ने आलाकमान को झुका दिया। किले के भीतर से हुए विद्रोह को गढ़ के रक्षक गडकरी संभाल नहीं पाए। पहली ही चुनौती में गडकरी के संगठन कौशल की पोल खुल गई। यों दोपहर से रात तक मीटिंग और सौदेबाजी का ऐसा दौर चला। देर रात खफा होकर कटियार मीटिंग से निकल गए। कह दिया- जो भी सूचना देनी है, फोन पर दे देना।
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23/11/2009