Friday, January 21, 2011

‘जिम्मेदारी’ तो नहीं, नेता सिर्फ ‘जिमदारी’ समझते

इसे कहते हैं, अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कैग की रपट को कपिल सिब्बल जमकर कोस रहे थे। कैग के खिलाफ सिब्बल की चार्जशीट कांग्रेस को भी भा गई थी। सो संगठन और सरकार की जुगलबंदी कैग को झुठलाने में जुटी रहीं। पर शुक्र है, शुक्रवार को सिब्बल की शामत आ गई। सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल को कड़ी फटकार लगाई। तो संसद की पीएसी ने भी सवाल उठाए। बीजेपी को हमलावर होने का फिर मौका मिल गया। तो कांग्रेस की बोलती बंद हो गई। सिब्बल की तो सिट्टी-पिट्टी गुम। सो दिन भर सुप्रीम कोर्ट और पीएसी की नसीहत पर मंथन करने के बाद मीडिया से मुखातिब हुए। तो आवाज से हेकड़ी नदारद थी। बोले- हमने अपनी बात जनता के सामने रखी थी। किसी भी संवैधानिक संस्था का निरादर नहीं किया, न किसी के काम में दखल दिया। बतौर टेलीकॉम मंत्री मुझे मेरी जिम्मेदारी का अहसास। मुझे वकील की जिम्मेदारी भी पता। सो मैं संस्था के निरादर की बात सोच भी नहीं सकता। सिब्बल वाणी सुन एक और कहावत याद आई। चौबेजी चले थे छब्बे बनने, दुबे बनकर लौट आए। पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी में वही आशंका, जो सिब्बल की सात जनवरी की प्रेस कांफ्रेंस के बाद हमने भी जताई थी। जस्टिस जे.एस. सिंघवी और ए.के. गांगुली की बैंच ने सिब्बल की टिप्पणी पर कहा- यह दुर्भाग्यपूर्ण है। मंत्री को जिम्मेदारी का कुछ अहसास होना चाहिए। ताकि उनके बयानों से जांच पर कोई फर्क न पड़े। बैंच ने बाकायदा सीबीआई को हिदायत दी- किसी के भी बयानों से प्रभावित हुए बिना घोटाले की जांच करे। अब कोर्ट सीबीआई को भले लाख हिदायत दे, पर सीबीआई तो सरकार का जिन्न। आका जो हुक्म देता, उसे हर कीमत पर पूरा करता। सो सीबीआई की बात तो होती रहेगी। फिलहाल बात सिब्बल की। जिन ने बतौर टेलीकॉम मंत्री समूचे घोटाले पर परदा डालने की कोशिश की। जब सिब्बल ने सात जनवरी को कैग रपट को झुठलाया, तो मंत्री कम वकील अधिक दिखे। स्पेक्ट्रम घोटाले के आंकड़े पर भारी-भरकम प्रजेंटेशन के साथ खूब दलीलें दीं। और आखिर में जनता को समझाने की कोशिश की, स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ ही नहीं। तब सिब्बल सुप्रीम कोर्ट की कई तल्ख टिप्पणियों को नजरअंदाज कर चुके थे। कोर्ट ने एक बार कहा था- इस घोटाले में जितना दिख रहा, मामला उससे कहीं आगे है। पर पेशे से वकील सिब्बल ने कह दिया- जितना कहा जा रहा, उससे कई गुना कम क्या, कुछ नजर ही नहीं आ रहा। सचमुच सिब्बल ने आंकड़ों का ऐसा जाल बुना था, घोटालों को एक नील 76 खरब के बजाए, सीधा निल (शून्य) बता दिया। सो सिब्बल के अनाड़ीपन पर अब पीएसी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने स्पीकर को चिट्ठी लिख दी। मीरा कुमार को लिखी चिट्ठी में उन ने कई गंभीर सवाल उठाए। क्या संसद में रपट पेश हो जाने के बाद विभागीय मंत्री को टिप्पणी करने का हक है? जबकि मंत्रालय को अपना पक्ष रखने के लिए पूरा वक्त दिया गया। क्या कैग के खिलाफ बयान देने से पहले सिब्बल ने पीएम के संज्ञान में या अनुमति ली थी? अगर इसका जवाब हां है, तो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी वाली सीबीआई जांच, पीएसी और कैग का कोई मतलब नहीं। इससे लोकतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जोशी ने स्पीकर से अनुरोध किया कि मंत्रियों को ऐसी बयानबाजी से रोका जाए। वरना मंत्री और संवैधानिक संस्थाओं में टकराव पैदा हो सकता है। पर क्या इतनी फजीहत के बाद सिब्बल, सरकार और कांग्रेस जिम्मेदारी समझेंगे? सुप्रीम कोर्ट ने जिम्मेदारी की बात की। पर बिहार के कुछ गांवों में जिमदारी शब्द का प्रचलन। जिसका मतलब बपौती से। सो सरकार अपनी जिम्मेदारी क्या समझेगी, यह तो वही जाने। पर इसमें कोई शक नहीं, सत्ता को नेतागण अपनी जिमदारी (बपौती) ही समझते। सो सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद सरकार को शर्मिंदगी महसूस हो रही होगी, ऐसा नहीं लगता। जब सुप्रीम कोर्ट ने सीधे पीएम और पीएमओ पर सवाल उठाए। अल्टीमेटम देकर पीएमओ से हलफनामा लिया। सरकार और कांग्रेस को तब शर्म नहीं आई, तो भला अब कैसी उम्मीद? संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब कोर्ट ने सीधे पीएम पर टिप्पणी की। पर समूची कांग्रेस पीएम के बचाव में उतरी। राहुल गांधी ने पीएम से मुलाकात कर यहां तक कह दिया- कोर्ट की टिप्पणी से शर्मिंदगी वाली कोई बात नहीं। सो मौजूदा सरकार को तो जूते और प्याज खाने की आदत हो चुकी। वैसे भी कोर्ट की कितनी परवाह, यह तो ब्लैकमनी के मामले में भी साफ। स्पेक्ट्रम घोटाले में कोर्ट सख्त न होता, तो सरकार बैक फुट पर न होती। समझौतों की दलील देकर काले धन के चोरों का नाम लेने से परहेज। पर अबू सलेम के मामले में भी तो समझौता। तो क्या न्यायपालिका भी कार्यपालिका के समझौते के दायरे में होंगी? ट्रायल कोर्ट ने तो शुरुआत में ही कह दिया था- कोर्ट अपना काम करेगा, सरकार के समझौते से मतलब नहीं। अब शुक्रवार को सिब्बल पर कोर्ट की फटकार से कांग्रेस को सांप सूंघ गया। तो अभिषेक मनु सिंघवी बोले- मामला कोर्ट में, सो टिप्पणी नहीं करेंगे। फिर सवालों की बौछार हुई। तो बोले- मंत्री से पूछिए। पर क्या कांग्रेस अपना कहा भूल गई? आठ जनवरी को इसी मंच से कांग्रेस ने कैग को खरी-खरी सुना सिब्बल की सराहना की थी। पर अब भ्रष्टाचार से लडऩे का महज संदेश देने में जुटे मनमोहन। शुक्रवार को इधर सुप्रीम कोर्ट ने फटकारा। उधर जीओएम की मीटिंग शुरू हो गई।
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21/01/2011