Monday, November 22, 2010

अब बने जेपीसी और जाएं येदुरप्पा, तो ही संसद में शांति

कहते हैं आदतें बदली जा सकतीं, पर लत नहीं छूट सकती। शायद कांग्रेस को जूते और प्याज खाने की लत पड़ चुकी। सो न सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां असर कर रहीं, न नैतिकता झकझोर पा रही। अभी टू-जी स्पेक्ट्रम का पेच सुलझा नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी पी.जे. थॉमस की नियुक्ति पर सवाल उठा दिए। मनमोहन सरकार ने विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की आपत्ति को ताक पर रखकर थॉमस के लिए वीटो लगा दिया। तब कांग्रेस ने बीजेपी को खूब खरी-खोटी सुनाई थीं। अब सुप्रीम कोर्ट ने हू-ब-हू वही कहा, जो विपक्ष की नेता ने कहा था। थॉमस के खिलाफ पॉम आयल घोटाले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी। पर तब होम मिनिस्टर चिदंबरम ने भी थॉमस को क्लीन चिट दी थी। अब चीफ जस्टिस एस.एच. कपाडिय़ा की रहनुमाई वाली बैंच ने सीधा पूछ लिया- एक अभियुक्त सतर्कता आयुक्त कैसे हो सकता? बैंच ने माना, आपराधिक मुकदमा झेल रहा व्यक्ति अगर सीवीसी होगा, तो हर कदम पर सवाल उठेंगे। जब वह खुद आपराधिक मामले में अभियुक्त होगा, तो दूसरे की फाइल कैसे बढ़ाएगा? कोर्ट ने केंद्र सरकार को याद दिलाया, सीबीआई भी सीवीसी को रिपोर्ट करती। पर अटार्नी जनरल ने अपने आका की बेशर्मी भरी भाषा का इस्तेमाल किया। दलील दी, अगर नियुक्ति के मूल मानदंड के मुताबिक सवाल उठने लगे। तो संवैधानिक पद पर किसी की भी नियुक्ति नहीं हो पाएगी। क्योंकि किसी की भी नियुक्ति को चुनौती दी जा सकती है। यों अटार्नी जनरल तो महज सरकारी मुलाजिम। पर कांग्रेस ने टू-जी की तर्ज पर सीवीसी के मामले में भी कह दिया- शर्मिंदगी जैसी कोई बात नहीं। यों कांग्रेस की दलील भी सही। जब शर्म को कोई स्पेक्ट्रम बनाकर बेच खाए, तो शर्मिंदगी कैसी। गवर्नरों का मामला हो या मुख्य चुनाव आयुक्त का। कांग्रेस ने कभी लोक-लाज की परवाह नहीं की। विपक्ष ने एड़ी-चोटी एक कर ली। पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला का क्या बिगड़ा? बूटा सिंह, सिब्ते रजी, एससी जमीर जैसे जेहादी गवर्नरों ने कैसी संवैधानिक निष्ठा दिखाई, किसी से छुपी नहीं। पर सवाल कांग्रेस से, क्या संवैधानिक पदों पर बूटाओं, चावलाओं से दूर नजर क्यों नहीं दौड़ा पाती? ताकि विपक्ष की हर धार भोंथरी हो सके। याद करिए, वाजपेयी राज में हुए राष्ट्रपति चुनाव का वक्त। कैसे वाजपेयी ने गुजरात दंगों की स्याह हटाने के लिए राष्ट्रपति पद पर एपीजे अब्दुल कलाम का नाम प्रस्तावित किया। कैसे कलाम के नाम पर ऐतिहासिक राजनीतिक एकता बन गई। पर कांग्रेस कभी बूटाओं, चावलाओं से ऊपर नहीं उठती। लोकतंत्र की मर्यादा की फिक्र होती। तो इमरजेंसी के बाद बने शाह कमीशन ने चावला का जो इतिहास लिखा। उसके बाद किसी राजनीतिक दल से ऐसी जिद की उम्मीद नहीं। पर कांग्रेस ने मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालस्वामी की सिफारिश के बावजूद चावला को बरकरार रखा। कांग्रेस की ऐसी राजनीतिक धौंस की कहानी अनेक। पर पाप का घड़ा कभी न कभी तो फूटता ही है। सो स्पेक्ट्रम, आदर्श, कॉमनवेल्थ और अब सीवीसी का मामला। कांग्रेस पर एक साथ लाठियां बरस रहीं। सो बेचारी कांग्रेस किस-किस का जवाब दे। संसद की कार्यवाही तो तीसरे हफ्ते भी लकवाग्रस्त। पर भ्रष्टाचार के भूचाल को थामने के लिए कांग्रेस जेपीसी तक को राजी नहीं। जब कांग्रेस खुद को ईमानदार मान रही। तो कोई और जांच हो या जेपीसी, परहेज क्यों? पर सोमवार को भी संसद के गतिरोध पर कोई फैसला नहीं हो सका। अलबत्ता पिछले मंगलवार और अब सोमवार को हुई सर्वदलीय मीटिंग के बीच कांग्रेस बुरी तरह घिर गई। सोमवार को विपक्ष के साथ-साथ लेफ्ट और सरकार की सहयोगी तृणमूल ने भी जेपीसी की मांग कर दी। पर प्रणव दा ने पीएसी के साथ बहुउद्देश्यीय जांच एजेंसी का प्रस्ताव रखा। सो नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। सुषमा स्वराज ने रिलायंस से जुड़ी नीरा राडिया के टेप को आधार बनाकर दो-टूक कह दिया- अब जेपीसी के बिना कुछ भी संभव नहीं। उन ने कहा- ताजा खुलासे से अब ऐसा लग रहा, लोकतंत्र के चारों स्तंभ लडख़ड़ा गए। मीडिया और कारॅपोरेट जगत की सांठगांठ से मंत्री बनाने और विभाग देने की बात का खुलासा हो रहा। यानी अब सरकार का जेपीसी से बचकर भागना मुमकिन नहीं। पर चेहरा बचाने को अब बीजेपी से गुहार लगा रही। बीजेपी ने कर्नाटक के सीएम येदुरप्पा को विदा करने का मन बना लिया। पर येदुरप्पा की बगावत से परेशान। फिर भी बीजेपी नेताओं को उम्मीद, मान-मनोव्वल कर येदुरप्पा को हटाएंगे। ताकि संसद में बीजेपी निशाने पर न आ जाए। सरकार ने जेपीसी का इशारा विपक्ष को कर दिया। पर येदुरप्पा की वजह से मुश्किलें होंगी। सो माना जा रहा, मंगलवार को पहले बीजेपी की ओर से येदुरप्पा के इस्तीफे का एलान होगा। फिर सरकार जेपीसी को हरी झंडी दिखाएगी। सो कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन ने सोमवार को साफ कहा- हमारी नजर कर्नाटक पर। यानी मंगलवार को संसद का गतिरोध टूटने और सब कुछ मंगलमय होने की उम्मीद। सरकार के पास अब कोई विकल्प भी नहीं। मंगलवार को ही पीएम के हलफनामे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई। सो कोर्ट का रुख सत्र का भविष्य तय करेगा। फिलहाल सोमवार को पीएम मनमोहन और सीएम येदुरप्पा पुट्टापार्थी जाकर सत्य साईंबाबा का आशीर्वाद ले आए। मनमोहन के इस्तीफे की तो कोई बात नहीं। येदुरप्पा मुद्दे पर बीजेपी में राजस्थान दोहरा रहा।
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22/11/2010