Friday, August 6, 2010

कॉमनवेल्थ से कश्मीर तक कराह रही सरकार

कॉमनवेल्थ का पॉलिटीकल रिहर्सल जमकर हो रहा। शुक्रवार को लोकसभा में घोटाले का घंटा बजा। तो सरकार समझ गई, कलमाडिय़ों का बचाव किया, तो बेभाव की पड़ेगी। सो कांग्रेस और सरकारी खेमे से यही गुहार हो रही, पहले गेम्स निपट जाने दो। फिर कलमाडिय़ों से निपट लेंगे। पर विपक्ष सुनहरा मौका हाथ से क्यों जाने देगा। सो ठान लिया, अब खेल के गड़बड़झाले पर जवाब तो पीएम से ही चाहिए। दलील भी सही, गड़बड़झाले के तार खेल मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, ऑर्गनाइजिंग कमेटी, दिल्ली सरकार तक जुड़े। सो एक मंत्री समुचित जवाब नहीं दे सकता। अब अगले हफ्ते बहस होगी, तो घोटाले की कई परतें खुलेंगी। पर शुक्रवार को लोकसभा में जयपाल रेड्डी को विपक्ष ने बोलने नहीं दिया। सो रेड्डी ने बाहर आकर कह दिया- गड़बडिय़ों की जांच सीबीआई से भी कराने को तैयार। पर कॉमनवेल्थ गेम्स के खर्चों का आंकड़ा सही नहीं। सच माइने में 11500 करोड़ खर्च हुए। यानी रेड्डी का आंकड़ा सही मानें, तो घोटाला करने वालों ने भ्रष्टाचार का पूरा सम्मान रखा। किसी भी योजना में अगर 15-20 फीसदी तक भ्रष्टाचार न हो, तो वह योजना सफल नहीं मानी जा सकती। आखिर योजना से जुड़े लोग सरकारी मेहनताने पर कितना काम करेंगे। पर कॉमनवेल्थ गेम्स का भ्रष्टाचार कुछ-कुछ आईपीएल के खेल जैसा ही। याद है ना, पिछले सत्र में आईपीएल के मामले ने क्या-क्या गुल खिलाए थे। सुनंदा के चक्कर में थरूर नपे। होशियारी दिखाकर ललित मोदी खुद बुद्धू बन गए। तब प्रणव दा से लेकर ईडी, सीबीडीटी सबने ताबड़तोड़ जांच शुरू कर दी। ऐसा लगा, अब चार-छह दिन में भ्रष्टाचार की पूरी कलई खुल जाएगी। पर हुआ क्या? आप राज्यसभा में गुरुवार को दिए खेल राज्यमंत्री का जवाब सुन लीजिए। आईपीएल की जांच पर सवाल था। तो सरकारी जवाब आया- मंत्रालय आईपीएल के साथ डील नहीं करता और राष्ट्रीय टीम आईपीएल टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं लेती। फिर भी वित्त मंत्रालय ने आयकर नियमों की अवहेलना के कुछ मामलों की जांच शुरू की। पर जांच में समय लगेगा। अब हू-ब-हू वैसा ही शोर कॉमनवेल्थ का मचा। सरकार उसी तरह सच सामने लाने के दावे कर रही। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पद से हटाए गए दरबारी और महेंद्रू को नोटिस भेज दिया। सीबीडीटी ने भी जांच में दखल दिया। विपक्ष पिछली बार की तरह अबके भी वही जेपीसी की मांग कर रहा। सो सरकार घिर गई। आईपीएल में तो कारपोरेट घराने का पैसा। पर यहां आम आदमी की गाढ़ी कमाई। सो कहीं ऐसा न हो, हायतौबा के चक्कर में कॉमनवेल्थ भी आईपीएल की तरह कहीं और हो जाए। आईपीएल-टू आखिरी वक्त में दक्षिण अफ्रीका में हुआ था। अगर ऐसा हुआ, तो भारत किस विकास दर का मुंह दिखाएगा? अब सवाल, मनमोहन सरकार आखिरी वक्त में ही क्यों जागती? गेम्स की तैयारियां सात साल से चल रहीं। पर जब भ्रष्टाचार की कलई खुली, तो मनमोहन ने मोर्चा संभाल लिया। कॉमनवेल्थ हो या कश्मीर, सरकार के पास कोई रोडमैप नहीं दिख रहा। अब कश्मीर की हिंसा काबू से बाहर हो चुकी। तो मनमोहन सोमवार को सर्वदलीय मीटिंग करेंगे। पर एजंडा क्या होगा? सरकार का फर्ज यही, एक रोडमैप लेकर आगे बढ़े और बाकी दलों से विचार करे। पर मनमोहन खाली हाथ आएंगे, तो बैठक से कोई झोली भरकर नहीं लौटेंगे। जब कश्मीर की आग बुझाने की पहल करनी थी, तब उमर अब्दुल्ला के भरोसे सब-कुछ छोड़ दिया। उमर के अक्खड़पन ने चिंगारी को शोला बना दिया। जब फाइरिंग की पहली घटना में एक मौत हुई, तो जनाब उमर छुट्टियां मना रहे थे। फिर हिंसा का दौर बढ़ता गया। पर युवा मुख्यमंत्री की अकड़ देखिए, कभी मौका-मुआइना नहीं किया। ऐसे में आवाम का दिल कैसे जीत पाएंगे? होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने शुक्रवार को राज्यसभा में दिल-दिमाग जीतने का मंत्र दिया। पर उमर से कैसी उम्मीद? लोकसभा के 38 युवा सांसदों ने कश्मीरी युवाओं से शांति की अपील की। तो यह एक अच्छी पहल जरूर। पर सवाल, राहुल बाबा की टीम के युवा जनता से कितने जुड़े हुए? राहुल की टीम के जितने भी युवा मंत्री मनमोहन केबिनेट में, उनमें से कितने अपने क्षेत्र तक की जनता का दिल जीत पा रहे? कश्मीर में अलगाववादियों को आवाम ने पिछले दो चुनाव में सबक सिखा दिया था। कई अलगाववादी नेता चुनाव हार गए। अगर उमर और केंद्र सरकार सजग होतीं, तो अलगाववादियों को दुबारा पनपने का मौका नहीं मिलता। पर युवा मन अहंकार में डूब गया। सो पाकिस्तान ने अपना नापाक चेहरा फिर दिखाया। बम, गोले-बारूद की जगह पत्थरबाजी का ट्रैंड शुरू कर दिया। ताकि दुनिया को दिखे, कश्मीरी आवाम की भावना कैसी। दुनिया में भारत की कश्मीर नीति को फौजी हुकूमत बताने की कोशिश में जुटा पाक। सचमुच जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार की नीति साफ नहीं। अमरनाथ श्राइन बोर्ड जमीन विवाद में जम्मू ठप हुआ था। अब घाटी अलगाववाद की आग में झुलस रही। पर फिर वही सर्वदलीय मीटिंग। वही संसदीय टीम भेजने की मांग। सो कॉमनवेल्थ से कश्मीर तक कराह रही सरकार।
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06/08/2010