Thursday, April 8, 2010

ये लो महंगाई पर अब कमेटी-कमेटी का खेल

महंगाई पर मत्थापच्ची करने फिर बैठी सरकार। छह फरवरी को सीएम कांफ्रेंस में चतुराई दिखा पीएम ने कोर कमेटी बना ली थी। दस राज्यों के सीएम और खुद पीएम-प्रणव-पवार-मोंटेक मेंबर हो गए। एक्सपर्ट के नाते पीएम के आर्थिक सलाहकार सी. रंगराजन भी शामिल किए गए। यानी महंगाई भगाने नहीं, अलबत्ता जिम्मेदारी से भागने का पूरा बंदोबस्त तभी हो गया। सो दस राज्यों में चार विपक्षी एनडीए शासित बिहार, पंजाब, छत्तीसगढ़, गुजरात। तो पांच यूपीए शासित आंध्र, असम, महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु और एक वामपंथियों का बंगाल। मकसद साफ था, अब विपक्ष सिर्फ केंद्र पर ठीकरा न फोड़ सके। यों राजनेताओं का जो भी मकसद हो। आम आदमी को तो महंगाई की आदत पड़ चुकी। सो पीएम-सीएम खामखाह दिमाग पर बोझ ले रहे। जेब पर महंगाई का बोझ तो आम आदमी उठा ही रहा। फिर देश की और भी कई समस्याएं। वैसे भी एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर राजकाज चलाना आसान नहीं होता। सो सत्तानशीं दिमागदारों को सलाह, बेवजह स्ट्रेस न लें। आखिर उम्र भी कोई चीज होती। सो पहले अपनी सेहत का ख्याल रखें। आम आदमी का क्या, वह तो जैसा पैदा हुआ, वैसा ही मर जाएगा। पर नेतागण तो देश की महान विभूतियां। कितनी भट्ठियों में तपकर आज सेवाभाव से देश का भला कर रहे। सो हे नेताओं, कुछ विश्राम भी कर लें। ताकि आगे भी इसी तल्लीनता के साथ सेवारत रह सकें। देश के पीएम मनमोहन ने तो छह फरवरी को ही कह दिया था। महंगाई का बुरा दौर अब खत्म हो चुका और जल्द ही कीमतें नीचे की ओर आएंगी। भले तबसे अब तक में दूध-सब्जी, पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस आदि की कीमतें बढ़ गईं। पर आम आदमी को कौन समझाए। देश हित में भी नेताओं को कुछ फैसले लेने पड़ते हैं। अपने नेता कितने दबाव में काम करते हैं, कौन समझेगा। आम आदमी पर थोड़ी सी बोझ क्या बढ़ी, हो-हल्ला करने लगे। भइया नेता लोग जमीन से उठकर आए। सो जमीनी हकीकत समझने के लिए गांवों में जाने की जरुरत नहीं पड़ती। एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर ही काम हो जाए। तो कमर को तकलीफ क्यों देवें नेताजी। वैसे भी जब किसी का जीवन स्तर ऊपर उठता है। तो वह पीछे मुडक़र नहीं देखता। फिर भी यह नेताओं की मेहरबानी समझिए। गुरुवार को सात रेस कोर्स पर पीएम-सीएम की कोर कमेटी ने घंटों सिर खपाया। नेताओं की इस कड़ी मिहनत की तो तारीफ होनी चाहिए। पर नहीं हो रही, सो अपनी तो यही सलाह। अभी क्यों महंगाई पर मत्थापच्ची कर रहे। अभी न तो कोई चुनाव और न ही कोई किर्गिजस्तान जैसा जन विद्रोह। सो जैसे पहली पारी के आखिरी बजट में मनमोहन सरकार ने किसानों की कर्ज माफी और छठा वेतन आयोग लागू करने के चक्कर में खजाना लुटाया। अबके भी जब चुनावी शंखनाद हो, तब कुछ ऐसा ही करतब दिखा दे। अपनी जनता का क्या, वह तो क्षणिक मात्र को नाराज होती। सो फिर चुनावी महीनों तक के लिए झोली भर दो। ईवीएम में वोट ले लो और कर लो सत्ता मुट्ठी में। अब सत्ताधारियों के पास चुनावी जीत का लाजवाब मंत्र। तो विपक्ष के आंदोलनों से डरने की क्या जरुरत। गुरुवार को वामदलों ने महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन और जेल भरो आंदोलन किया। तो बीजेपी ने 21 अप्रैल की रैली की योजना बनाई। नितिन गडकरी की टीम की पहली मीटिंग हुई। तो महंगाई पर यूपीए सरकार को झुकाने का खम ठोका। पर आंदोलन की हवा कैसे निकल रही, आप खुद देख लो। इंदौर अधिवेशन के मंच से गडकरी ने 10 लाख की भीड़ जुटा संसद घेरने का एलान किया था। पर गुरुवार को अनंत कुमार आंकड़ा बताने के बजाए कहां से कितनी ट्रेन आएंगी, यही बताते रहे। अब ट्रेन एकला बीजेपी वर्करों के लिए तो आएगी नहीं। वैसे भी ट्रेनें चलाने का काम रेल मंत्रालय का। पर फिलहाल बीजेपी ट्रेनें गिन रही। मध्यप्रदेश से कहीं भीड़ कम न हो जाए। सो प्रदेश अध्यक्ष के चयन का मामला रैली तक टाल दिया। वैसे भी मध्यप्रदेश में उमा भारती को लेकर बीजेपी संकट में। शिवराज तो उमा की वापसी के खिलाफ धमकी पर उतर आए। राजस्थान, बिहार, दिल्ली जैसे राज्यों में अंदरुनी सिर-फुटव्वल संगठन चुनाव नहीं होने दे रहा। पर गुरुवार को टीम गडकरी की पहली मीटिंग हुई। तो गडकरी ने रोडमैप बताया। नेताओं को महीने में आठ दिन प्रवास करने, संगठनात्मक-राजनीतिक-चुनावी योजना तैयार करने और बूथ कमेटियों दुरुस्त करने का मंत्र दिया। हर साल दस हजार लोगों को विचारधारा के हिसाब से प्रशिक्षण देने की भी योजना बनी। गडकरी ने हर स्तर के नेताओं को जमीन से जुडऩे की हिदायत भी दी। अब गडकरी की बीजेपी में कितनी चल रही, यह तो चार महीने में ही साफ हो चुका। सो हे सत्ताधारियों, क्यों व्यर्थ विपक्ष से डरते हो। विपक्षी बीजेपी वाले तो आपस में ही एक-दूसरे से डरे हुए। सो 21 अप्रैल के आंदोलन की चिंता छोड़ दो। तुम तो एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर देश के भविष्य की तस्वीर बनाओ। जैसे गुरुवार को सात रेस कोर्स में बनाई गई। पीएम-सीएम की कोर कमेटी ने महंगाई पर मंथन के बाद अलग-अलग तीन कमेटियां बना दीं। अब आप ही देखो, मंथन करने बैठे कुल जमा पंद्रह लोग। पर निपटें कैसे, पल्ले नहीं पड़ा। सो 15 मेंबरों में ही तीन कमेटी बन गई। अब पीएम-सीएम की कोर कमेटी दो महीने बाद रपट के साथ मिलेगी। तब तक संसद में वित्त विधेयक पारित हो चुका होगा। अब छह फरवरी की मीटिंग के दो महीने बाद मीटिंग हुई। तो महंगाई बढ़ चुकी। अब फिर दो महीने बाद क्या होगा, यह कौन जाने।
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08/04/2010