Tuesday, November 30, 2010

संसद ठप हो या सडक़ें जाम, भुगतेगी जनता ही

‘मुझसे कहा गया कि संसद देश की धडक़न को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है। जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है। लेकिन क्या यह सच है?’ संसद का ताजा हाल देख प्रख्यात कवि सुदामा पांडे धूमिल की ये पंक्तियां बिलकुल सटीक। शीत सत्र की शुरुआत नौ नवंबर को हुई। पर भ्रष्टाचार का जिन्न न सिर्फ सरकारी खजाने को, अलबत्ता संसद सत्र का पूरा महीना निगल गया। अब दिसंबर में छुट्टियों समेत तेरह दिन बचे। पर वक्त से पहले सत्र की तेरहवीं मानकर चलिए। गतिरोध तोडऩे को तीसरी मीटिंग भी नाकाम रही। या यों कहें, मीटिंग जहां से शुरू हुई, वहीं आकर खत्म हो गई। सरकार की ओर से प्रणव मुखर्जी तीन दफा प्रयास कर चुके। पहली मीटिंग रस्म अदायगी। दूसरी मेंं पीएसी के साथ बहुआयामी जांच एजेंसी का प्रस्ताव। तो तीसरी बार फोन पर सुषमा-आडवाणी को सुप्रीम कोर्ट की मॉनीटरिंग में सीबीआई जांच का प्रस्ताव रखा। पर विपक्ष ने सरकार के कामचलाऊ प्रस्तावों को सुनते ही नकार दिया। सो अब मंगलवार को स्पीकर मीरा कुमार ने पहल की। पर मीटिंग में कोई नया प्रस्ताव नहीं। अलबत्ता सरकार ने एक बार फिर अपने पुराने नुस्खे ही परोस दिए। तो विपक्ष ने भी अपनी वही धुन सुना दी। जिस पर सरकार थिरकने को राजी नहीं। यानी बैताल वापस पेड़ पर लटक गया। अब इतना बड़ा घोटाला, जिसमें न सिर्फ करने वाला, अलबत्ता गिनती भी हांफने लगे। और सरकार जेपीसी न बनाने की जिद ठान ले। तो क्या संसद को देश की धडक़न को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण मानेंगे? क्या जनता को जनता के नैतिक विचारों का समर्पण कहेंगे? जब समूचा विपक्ष विचारधारा की राजनीति से परे हट एक सुर में जेपीसी की मांग कर रहा। तो सत्तापक्ष को इतना गुरेज क्यों? क्या भ्रष्टाचार कांग्रेस या सरकार के लिए कोई बड़ी बात नहीं? ग्लोबल करप्शन इंडैक्स में भारत 84वें से 87वें स्थान पर पहुंच गया। तो सवाल, क्या जब तक नेता देश को न बेच दें, तब तक भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं? आखिर कांग्रेस और सरकार को कब बात समझ आएगी? सुप्रीम कोर्ट लगातार टिप्पणियां कर रहा। पर सरकार को शर्म है कि आती नहीं। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को महाघोटाला, सीबीआई को फटकार, पीएमओ से सवाल जैसी बातें हो चुकीं। अब तो मंगलवार को सीवीसी पी.जे. थॉमस की नियुक्ति पर भी आईना दिखा दिया। थॉमस पूर्व संचार मंत्री ए. राजा के साथ सैक्रेट्री रह चुके। केरल के पॉम ऑयल घोटाले में चार्जशीट। सो नियुक्ति संबंधी पैनल में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने थॉमस का विरोध किया था। पर पैनल के दो अन्य मेंबर पीएम और होम मिनिस्टर ने सत्ता की धौंस दिखाई। बहुमत से थॉमस को सीवीसी की कमान थमा दी। पर अब सुप्रीम कोर्ट ने लताड़ा, तो खुद की सांस थमी हुई। थॉमस को थेंक यू कहने का इशारा भी हो गया। थॉमस ने होम मिनिस्टर चिदंबरम से मुलाकात की। तो अब थॉमस का इस्तीफा महज औपचारिकता। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दो-टूक कहा- सीबीआई कुल मिलाकर सीवीसी की निगरानी में काम करती। ऐसे में थॉमस के लिए स्पेक्ट्रम घोटाले की निष्पक्ष तरीके से जांच की निगरानी करना मुश्किल होगा। क्योंकि जब थॉमस टेलीकॉम सैक्रेट्री थे, तब उन ने स्पेक्ट्रम आवंटन के उस फैसले को सही ठहराया था। जिसकी आज कोर्ट और सीबीआई समीक्षा कर रही। अब ऐसी कठोर टिप्पणी के बाद फौरन थॉमस का इस्तीफा नहीं हुआ। तो यह कांग्रेस राज में ही संभव। बूटा सिंह के बिहार विधानसभा भंग करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक ठहराया था। फिर भी कांग्रेस ने फौरन बूटा को रवाना नहीं किया। तभी तो मंगलवार को वनवास से लौटे कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कानूनी तुर्रा दिखाया। बोले- थॉमस इस्तीफा देंगे या नहीं, यह पता नहीं। लेकिन वह पद की सभी योग्यताएं पूरी करते हैं और सीवीसी की जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन कर सकते हैं। अब कांग्रेस की इस दलील को सच मानेंगे या सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को? पर सवाल, जेपीसी से कन्नी क्यों काट रही कांग्रेस? सर्वदलीय मीटिंग में सरकार की ओर से फारुख अब्दुल्ला ने दलील दी- पिछली चार जेपीसी का कोई नतीजा नहीं निकला। सो इस मांग का कोई औचित्य नहीं। पर विपक्ष की नेता सुषमा ने दलील दी- अगर सरकार की यही सोच, तो क्यों न रूल बुक से जेपीसी निकाल दे। ताकि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। मीटिंग में स्पीकर ने सिर्फ प्रश्नकाल चलने देने की भी अपील की। पर विपक्ष ने दो-टूक कह दिया- प्रश्नकाल ही नहीं, सारा काम होगा, पर पहले जेपीसी। फिर भी सरकार ने मीटिंग में जेपीसी से इनकार कर दिया। अब सरकार के पास दो ही विकल्प- या तो जेपीसी माने, वरना हंगामे में ही जरूरी विधायी कामकाज निपटा सत्रावसान करे। सत्ताधारी खेमे से विपक्ष पर संसद न चलने देने का ठीकरा फोडऩे की मुहिम पहले ही शुरू हो चुकी। सो अब एनडीए ने संसद से सडक़ तक की रणनीति बना ली। दिल्ली या मुंबई में भ्रष्टाचार पर विराट रैली कर सरकार को बेनकाब करने का फैसला किया। पर एनडीए के साथ समूचा विपक्ष एक मंच पर आए, इसका बीड़ा शरद यादव को सौंप दिया। यों इसी बीजेपी ने महंगाई पर संसद की विपक्षी एकता को सडक़ पर दिखाने से इनकार कर दिया था। पर अब बोफोर्स दोहराने और तख्ता पलट का मंसूबा पाल समूचे विपक्ष को मंच पर लाना चाह रही। पर इस राजनीति में कहीं स्पेक्ट्रम का भ्रष्टाचार भी बोफोर्स जैसी जांच बनकर न रह जाए। वैसे भी जेपीसी से संसद ठप हो या रैली से सडक़ें जाम, नुकसान तो आम जनता ही झेलेगी।
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30/11/2010