Monday, February 22, 2010

तो क्या हारेगा संसद और जीतेगी महंगाई?

 संतोष कुमार
-----------
   जन, गण, मन और महामहिम के अभिभाषण से नए साल का पहला सत्र शुरू हो गया। अभिभाषण भले राष्टï्रपति के नाम से होता। पर सही मायने में यह केबिनेट का ही दस्तावेज। सो अभिभाषण को लेकर वही पुराना राग। सत्ताधारी दल सरकार की वाहवाही कर रहे। तो विपक्षी दल नाम के अनुरूप। बीजेपी में किसी ने सरकारी इश्तिहार कहा। तो किसी ने पुरानी बोतल में पुरानी शराब। पर कांग्रेस ने उपलब्धियों और भविष्य की सोच का दस्तावेज बताया। अब भविष्य का दस्तावेज आम आदमी को हड़काने वाला हो। तो फिर यह दस्तावेज कांग्रेस को ही मुबारक। आखिर महंगाई पर कितने बहाने बनाएगी सरकार। कभी बीजिंग ओलंपिक, कभी महामंदी, कभी एनडीए राज पर दोषारोपण, तो कभी आम आदमी के खाने की आदत में बदलाव बहाने बने। मौसम की तो पूछो ही मत। जब-जब मौसम बदला, शरद पवार ने सुर्रा छोड़ महंगाई बढ़वा दी। जो चीज महंगी न होनी थी, पवार के बयान से रातों-रात महंगी हो गई। महंगाई के हर आंकड़े के साथ सरकार ने अपने माथे की लकीरें भी दिखाईं। पर महंगाई न रुकनी थी, न रुकी। दस दिन में महंगाई रोकने के दावे तो कबके फुस्स हो गए। अब दो महीने का वक्त लिया। तो वक्त से पहले नया बहाना ढूंढ लिया। राष्टï्रपति अभिभाषण में सरकार की दलील वाकई शर्मनाक। जरा और भी गौर फरमाइए। सरकार ने किसानों को उपज मूल्य ज्यादा दिया। इसलिए महंगाई बढ़ी। सरकार ने सोशल सैक्टर में ज्यादा धन लगाया। इसलिए महंगाई बढ़ी। सरकार ने नरेगा जैसी योजनाओं में लोगों को काम दिया। सो सौ रुपए से कम दिहाड़ी पाने वाले ज्यादा अमीर हो गए। क्रय शक्ति अचानक बढ़ गई। सो मांग बढ़ी, आपूर्ति घट गई। अब सरकार की इस दलील को क्या कहेंगे आप। अपनी नजर में यही, सरकार आम आदमी को अब सिर्फ चिढ़ा ही नहीं रही। अलबत्ता अहसानफरामोश भी बता रही। अभिभाषण में कहा- 'महंगाई सर्वांगीण विकास की स्कीमों में कार्यान्वयन की झलक है।' दलील ऐसी, मानो आम आदमी की गैरत को दुत्कारते हुए यही कह रही- 'तुम्हें इतना कुछ दिया। आमदनी बढ़ा दी, विकास दर बढ़ा दी, फिर भी थोड़ी सी महंगाई बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। शर्म आनी चाहिए।'  अब सरकार आम आदमी के हित में ऐसी दलील दे। तो संसद में बहसबाजी बेमायने ही समझो। यानी सरकार भी अपनी मजबूरी समझ चुकी। सो विपक्ष के तीखे तेवर देख सहम गई। बीजेपी सबसे पहले महंगाई पर बहस चाहती। ताकि इंदौर से जो संकल्प लेकर लौटी, उसे पूरा कर सके। सो बीजेपी ने ठान लिया। बहस होगी, तो कामरोको प्रस्ताव के तहत। कामरोको प्रस्ताव के तहत आखिर में वोटिंग का प्रावधान। सो सरकार को डर, महंगाई पर विपक्ष के साथ कुछ घटक दलों ने भी जुगलबंदी कर ली। तो भरी संसद में मुंह काला होगा, इस्तीफे का नैतिक दबाव भी। वैसे भी विपक्ष की बदली सूरत और सीरत सरकार की नींद उड़ा चुकीं। बीजेपी की कमान अब पूरी तरह से युवा नेतृत्व के हाथ। सो युवा अब बड़ी जिम्मेदारी और बड़े ओहदे के साथ भविष्य की लड़ाई लड़ेंगे। आडवाणी तो युवा खासतौर से नितिन गडकरी के इतने मुरीद हो चुके। इंदौर में मंच पर तारीफ कर नहीं थके। सो अब सोमवार को ब्लॉग पर गडकरीनामा लिख दिया। मंगलवार को पहली बार गडकरी संसदीय दल की मीटिंग में शिरकत करेंगे। तो वहां भी इंदौर जैसा जोश भरने की कोशिश होगी। यानी कुल मिलाकर महंगाई से ज्यादा विपक्ष की बदली सूरत-सीरत सरकार को चौकन्नी कर रही। तभी तो दिखाने को परंपरा तोड़ धन्यवाद प्रस्ताव से पहले सरकार बहस को राजी हो गई। पर कोमरोको प्रस्ताव का जोखिम उठाने से कतरा रही। यों महंगाई इतनी बेलगाम हो चुकी। कामरोको आए या दामरोको, आम आदमी को राहत मिलती नहीं दिख रही। वैसे भी पिछले कुछ सालों से संसद के हर सत्र में महंगाई पर चर्चा धार्मिक अनुष्ठïान बन चुकी। सत्र से पहले राजनीतिक दल महंगाई पर कुर्ता फाड़ते। पर सदन में बहस होती, तो महज मु_ïीभर सांसद हाजिरी बजाने को रह जाते। सो सरकार भी आनन-फानन में बहस पूरी करा लेती। पर विपक्ष अबके खम ठोककर यही कह रहा। अगर 21 अप्रैल से पहले महंगाई पर नकेल न कसी। तो मनमोहन को गद्दी से उतार कर ही दम लेंगे। अब बीजेपी जनता में खोया अपना भरोसा कितना लौटा पाई। यह तो 21 अप्रैल को ही दिखेगा, जब महंगाई के खिलाफ संसद पर हल्ला बोल होगा। पर अब तो मनमोहन सरकार के सहयोगी ही नहीं, कांग्रेसी भी महंगाई को बला मान रहे। सोमवार को मीडिया ने संसद के अहाते में कुछ नेताओं से सवाल पूछे। क्या देश को महंगाई मंत्री चाहिए? तो विपक्ष का जवाब छोडि़ए। कांग्रेसी लालसिंह हों या जगदंबिका पाल या मंत्री सलमान खुर्शीद। जवाब का अंदाज अलग, पर मान लिया, महंगाई बड़ी बलवान। पर अपनी सरकार तो कबकी हार मान चुकी। अभिभाषण की दलीलें भी यही साफ कर रहीं, महंगाई काबू से बाहर जा चुकी। अब एकमात्र उम्मीद देश की संसद से। पर अपनी संसद सत्ता की कटपुतली हो चुकी। सो मंगलवार को महंगाई और अपनी संसद के बीच महामुकाबला होगा। तो उम्मीद यही, जीतेगी महंगाई, हारेगा संसद। अब ऐसा हुआ, तो संसद से भी राहत की उम्मीद खो चुका आम आदमी क्या स्वर्ग की बाट जोहेगा? गौरव दिखाने को संसद में जन, गण, मन तो हुआ। पर आम आदमी का जन, गण, मन कब? क्या आम आदमी स्वर्ग से ही राहत की उम्मीद करे?
----------
22/02/2010