Friday, July 30, 2010

महंगाई की मझधार में संसद का मानसून सत्र!

संसद लाचार दिख रही। सो कवि सुदामा पांडे धूमिल की कुछ पंक्तियां याद आ रहीं। उन ने लिखा- मुझसे कहा गया कि संसद देश की धडक़न को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है। जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है, लेकिन क्या यह सच है? पर हकीकत में हफ्ते भर से संसद में क्या हो रहा। सरकार ने गांठ बांध रखी, तो विपक्ष ने रार। यों सरकार ने एक चाल जरूर चली। स्पीकर-चेयरमैन की ओर से कॉमन प्रस्ताव का सुर्रा छेड़ा। महंगाई पर आसंदी से चिंता जता बहस हो जाए। ताकि नियम का फच्चर खत्म हो। पर यह फार्मूला सत्र से पहले खुद मीरा कुमार दे चुकीं। विपक्ष ने तभी प्रस्ताव ठुकरा दिया था। विपक्ष महंगाई को सरकार की नाकामी साबित करना चाह रहा। पर सरकार किसी प्रस्ताव में यह स्वीकार करने को राजी नहीं। सो बीजेपी ने शुक्रवार को कॉमन प्रस्ताव की बात खारिज कर दी। चुनौती दी- अगर सरकार खुद को बहुमत में मानती है, तो बहस की मंजूरी देकर विपक्ष के प्रस्ताव को निरस्त करे। अब अगर कॉमन प्रस्ताव की बात सच मानी जाए, तो क्या संसद के नियम सिर्फ खास लोगों के लिए? अगर संसद सचमुच जनता की धडक़न को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण, तो महंगाई पर नियमों का बंधन क्यों? एटमी डील की खातिर मनमोहन तो सरकार की बलि चढ़ाने को तैयार थे। पर महंगाई से त्रस्त जनता के लिए परहेज क्यों? जनता का दर्द विशेष नियम के जरिए जाहिर करने में क्या एतराज? सचमुच अपना लोकतंत्र भले विस्तृत हो चुका हो। मतदाताओं में जागरूकता भी आ चुकी हो। पर नेताओं के मायाजाल तक जनता अभी नहीं पहुंच पाई। तभी तो सोनिया गांधी और सोमनाथ जैसे दिग्गजों की कुर्सी लाभ के पद से खिसकने लगी, तो इसी संसद को मनमोहन सरकार ने नया कानून बनाने के लिए मजबूर कर दिया। बाकायदा बिल लाया गया। आनन-फानन में दोनों सदनों से पारित करा राष्ट्रपति को भेज दिया। बिल बनाते वक्त सभी दलों को संदेशा भिजवा दिया- आपके जितने भी सांसद लाभ के जिन-जिन पदों पर बैठे, उसकी लिस्ट दे दीजिए। सो कुछ ने लिस्ट थमाई, पर तब बीजेपी ने नैतिकता दिखाई। कानून भी ऐसा बना, जो बना 2007 में, पर 1950 से लागू हो गया। ताकि कोर्ट कोई अड़चन न डाल सके। ऐसा सिर्फ सोनिया और सोमनाथ जैसों के लिए ही संभव। आम आदमी की खातिर न कामरोको मंजूर, न नियम 184 के तहत चर्चा। अलबत्ता खम ठोककर कह दिया- अगर 193 के तहत चर्चा चाहिए, तो लो, वरना फूटो। यानी सरकार की ओर से दो ही फार्मूले। या तो विपक्ष 193 की चर्चा मान ले, या चेयर से कॉमन प्रस्ताव के तहत। पर बीजेपी की मजबूरी, अबके लालू-मुलायम जैसे नेता नियम 184 पर अड़े हुए। अब अगर बीजेपी ने सरकार से अंदरखाने समझौता किया, तो लालू-मुलायम को मौका मिल जाएगा। अब तक बीजेपी लालू-मुलायम पर सीबीआई के डर से तलवे चाटने का आरोप लगाती रही। सो बीजेपी चाहे भी, तो ऐसा नहीं कर सकती। शुक्रवार को एनडीए ने फिर रणनीति बनाई, तो सोमवार के लिए नोटिस स्पीकर को भिजवा दिया। एसएस आहलूवालिया ने एलान कर दिया- नियम 184 के तहत बहस नहीं मानी, तो संसद नहीं चलने देंगे। पर सरकार भी झुकने को तैयार नहीं। यों सरकार के तेवर से तो इतना साफ हो चुका, महंगाई पर चाहे जिस नियम के तहत चर्चा करा लो। महंगाई का बाल बी बांका न होगा। शुक्रवार को कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का बयान सचमुच आम आदमी के जख्म पर नमक लगाने वाला रहा। बोले- सरकार के रचनात्मक कदमों से महंगाई दर कम हो रही। यह खबर सभी अखबारों में छपी। सो विपक्ष अगर पढऩे की कृपा करे, तो देश और संसद पर कृपा हो जाएगी। पर मनीष तिवारी यह भूल रहे, देश के अखबारों में ही आम आदमी का दर्द कई बार छलका। क्या कांग्रेस या मनमोहन ने सुध ली। अगर सुध ली, तो नतीजा क्या निकला? आज भले महंगाई दर कम हो रही, पर महंगाई कम नहीं हुई। सो संसद में बना गतिरोध अब दूसरे हफ्ते में प्रवेश कर रहा। दोनों पक्षों के तेवर अब भी जस के तस। यों गतिरोध तोडऩे की जिम्मेदारी सत्तापक्ष की। पर हंगामे में जब खुद संसदीय कार्यमंत्री पार्टी बन जाएं, तो भला गतिरोध कहां टूटने वाला। सो फ्लोर मैनेजमेंट में सरकार फिर नकारा साबित हो रही। शुक्रवार को एक वरिष्ठ मंत्री और एक सोनिया के बेहद करीबी नेता ने साफ कर दिया। वोटिंग वाले नियम के तहत बहस कतई मंजूर नहीं करेंगे। अगर अबके मंजूर कर लिया, तो विपक्ष इसे परंपरा बना लेगा और हर छोटे से छोटे मुद्दे पर वोटिंग की मांग करेगा। अगर सचमुच विपक्ष को सरकार की विफलता नजर आ रही, तो सीधे अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए, सरकार सामना करने को तैयार। इतना ही नहीं, मंत्री ने यह भी पूछा, क्या बहस होने से महंगाई कम हो जाएगी? अब हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। नियम तो सिर्फ बहाना, महंगाई को तो है बढ़ते ही जाना। यानी सरकार का इरादा साफ। हफ्ते भर का हंगामा बहुत हो चुका। अब विपक्ष सदन चलने दे, वरना हंगामे में ही सारे बिल पास करा सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करा लेंगे। यानी महंगाई के मझधार में मानसून सत्र। वैसे भी मौजूदा सत्र में सरकार के पास जितना काम नहीं, उससे अधिक घिरने वाले मुद्दे। कॉमन वैल्थ का घोटाला, सीबीआई का इस्तेमाल, भोपाल गैस त्रासदी, भारत-पाक वार्ता और अब तेलंगाना की आग भी भडक़ेगी। शुक्रवार को तेलंगाना की बारह सीटों के नतीजे आए, तो कांग्रेस का अध्यक्ष भी चुनाव हार गया।
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30/07/2010