Tuesday, January 12, 2010

तो गलत फिल्म के गाने से ही सुलझ गया बीजेपी का झगड़ा

इंडिया गेट से
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तो गलत फिल्म के गाने से ही
सुलझ गया बीजेपी का झगड़ा
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 संतोष कुमार
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            अलटा मार पलटा, शरद पवार पलट गए। केबिनेट कमेटी ऑन प्राइस की मीटिंग भी बुधवार के लिए टल गई। वैसे भी महंगाई रुकने वाली नहीं। सो मीटिंग आज हो या कल। मनमोहन को क्या फर्क पड़ता। चीनी रात भर में 44 से 48 रुपए किलो क्यों न हो जाए। मार्केटिंग का तो फंडा भी ऐसा ही। कीमतें बढ़ाकर सेल लगा दो। फिर 30-40 फीसदी छूट दे दो। शायद मनमोहन सरकार भी इसी फार्मूले की फिराक में। बढ़ी कीमतों में से दो-चार रुपए कम करा देंगे। फिर कांग्रेसी ढोल-नगाड़े ले 24 अकबर रोड पर धप-धप बजाएंगे। यही कांग्रेसी कल्चर बन चुकी। पर कल्चर के मामले में तो बीजेपी की सानी ही नहीं। अब नितिन गडकरी के हाथ कमान। सो गडकरी रोज नए फंडे गढ़ रहे। अब मंगलवार को रीजनल मीडिया के कुछ पत्रकारों से मिले। तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। यानी बिना फंड के फंडे चाहिए। तो गडकरी से मिलिए। महाराष्टï्र की राजनीति से मिले अनुभव के बेस पर ही बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टी चलाने की सोच रहे। सो पहले तो अपने धंधे गिनाए। राजनीति का समाजकरण और राष्टï्रकरण फार्मूला बताया। फिर बीजेपी का भावी एजंडा। गडकरी बीजेपी को फिर राजनीतिक शिखर पर लाने की संघ योजना से आए। सो बोले- 'बीजेपी के वोट बैंक में और दस फीसदी का इजाफा करना ही मेरा लक्ष्य।'  सो बीजेपी का नया फंडा, अपना कामगार संगठन होगा। अब तक भारतीय मजदूर संघ ही बीजेपी का श्रमिक संगठन रहा। पर अब बीजेपी को खुद के श्रमिक संगठन की कमी महसूस हो रही। सो नितिन गडकरी ने वामपंथी राह पर चलने की योजना बना ली। भले अपने गढ़ में वामपंथी खुद हांफ रहे। पर बीजेपी को वामपंथी राह ही तारणहार नजर आ रही। गडकरी की दलील, कांग्रेस की इंटक जैसी संस्था बीजेपी के पास नहीं। सो अब एससी-एसटी, महिलाओं और असंगठित कामगारों के लिए अपना संगठन बनाएगी। ताकि शहरों में खत्म हो रहे जनाधार को बढ़ा सके। यों सनद रहे, सो बता दें। जब 2004 में बीजेपी सत्ता से बाहर हुई। फिर एक बार दिल्ली में वर्किंग कमेटी हुई। तो अटल बिहारी वाजपेयी ने पार्लियामेंट एनेक्सी में नेताओं को मंत्र दिया था। कैसे वर्करों का दिल जीता जाए। सीखना हो, तो सीपीएम के गढ़ बंगाल जाओ। तब राजस्थान में वसुंधरा राजे सीएम थीं। उन ने तो फौरन दो सरकारी नुमाइंदे एसएन गुप्त और ओम बिड़ला कोलकाता भेज दिए। भले 2008 के चुनाव में बीजेपी हार गई। अब एक और चौंकाने वाली बात। खुद नितिन गडकरी सीपीआई महासचिव एबी वर्धन के अंडर में लेबरों की यूनियनबाजी कर चुके। एक बार तो गडकरी कांग्रेस के श्रमिक संगठन इंटक के अध्यक्ष भी चुन लिए गए थे। यह खुलासा कोई अपनी ओर से नहीं। खुद गडकरी ने ही किया। भारतीय मजदूर संघ वाले दत्तोपंत ठेंगड़ी भी वर्धन की एटक में काम कर चुके। सो गडकरी फार्मूला संघ की ही देन। पर गडकरी की मानें, तो संघ कभी बीजेपी में सीधे दखल नहीं देता। चलो, सीधे न सही, पीछे से ही। पर दखल देता है, ऐसा तो मान ही लिया। गडकरी ने बीजेपी के कांग्रेसीकरण से इनकार किया। पर यहां भी कबूला, अभी भी कई मायनों में पार्टी विद डिफरेंस। यानी कहीं न कहीं थोड़ी-बहुत गिरावट तो मान ली। अब गडकरी बीजेपी को राजनीतिक कम, सामाजिक-आर्थिक संगठन की तरह ज्यादा चलाना चाह रहे। सो विपक्ष की जगह विजिलेंस शब्द की मांग कर दी। अब जहां-जहां राज्यों में पार्टी विपक्ष की भूमिका में। वहां के नेताओं की मीटिंग लेंगे। ताकि बेहतर विपक्ष की भूमिका निभा सकें। उन ने तेलंगाना पर सरकार को कोसा। तो विदर्भ पर शिवसेना से इतर भुवनेश्वर वर्किंग कमेटी का प्रस्ताव दोहरा दिया। अब इंदौर में वर्किंग कमेटी होगी। तो नेताओं को टेंट में ही रहना होगा। होटल का खर्चा बीजेपी नहीं उठाएगी। भले टेंट का खर्चा होटल से ज्यादा क्यों न हो। पर यही नहीं, अब पदाधिकारियों पर भी नकेल होगी। जैसे संघ के पदाधिकारी ज्यादातर प्रवास में ही वक्त गुजारते। बीजेपी पर भी वही फार्मूला लागू होगा। सो गडकरी ने कह दिया- 'दिल्ली-मुंबई में बैठकर काम नहीं होगा। पदाधिकारियों को गांव-गांव प्रवास करना होगा। मैंने स्टेट थीम बना ली है।'  पर सवाल बीजेपी के कुछ संकटों पर हुए। तो गडकरी ने राजस्थान, पंजाब का उदाहरण दिया। बोले- 'आज सुबह राजस्थान से मुझे फोन आया। आप लोग तो छापते ही नहीं। अब राजस्थान में समूची बीजेपी एकजुटता से पंचायत चुनाव में जुटी हुई।'  पर राजस्थान का झगड़ा सुलझाने का फार्मूला पूछा। तो गदगद होकर बोले- 'मैंने सबको नया दौर का गाना सुनाया। आपको भी सुनाता हूं।... छोड़ो कल की बातें। कल की बात पुरानी...।'  पिछले पखवाड़े भर में सभी वरिष्ठï नेताओं के सहयोग और राजस्थान सुलझाने की खुशी चेहरे पर दिखी। पर जरा एक दिलचस्प पहलू देखिए। वसुंधरा गुट हो या चतुर्वेदी खेमा। नितिन गडकरी के गलत फिल्मी गाने से ही सारा झगड़ा-झंझट भूल गए। यों छोड़ो कल की बातें... गाना फिल्म नया दौर का नहीं। अलबत्ता फिल्म 'हम हिंदुस्तानी'  का गाना। पर शायद गडकरी नए अध्यक्ष। सो राजस्थान के भाजपाइयों को इशारा, अब नया दौर आ गया। गडकरी गलत फिल्म का नाम 20-22 दिनों से सुना रहे। पर देखिए, फिल्मों के शौकीन आडवाणी भी गलती सुधारने में मदद नहीं कर रहे।
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12/01/2010