Monday, October 18, 2010

कॉमनवेल्थ से बिहार तक अब दे दना-दन

कर्नाटक का किस्सा तो क्लीयर नहीं हुआ। पर कॉमनवेल्थ में करप्शन की जांच को कमेटियां बन गईं। सीएजी विनोद राय ने तीन महीने में रपट सौंपने का एलान कर दिया। प्रधानमंत्री की ओर से बनाई वी.के. शुंगलू कमेटी से इतर सीएजी ने जांच के लिए अपनी कुल 24 टीम गठित कीं। जिनमें 15 टीम दिल्ली सरकार के विभागों में पड़ताल करेंगी। चार टीमें आयोजन समिति की, तो चार टीमें सीपीडब्ल्यूडी की। एक टीम सभी 23 टीमों की मानीटरिंग करेगी, ताकि जांच का काम जल्द पूरा हो सके। यानी जांच में जबर्दस्त तेजी दिखाई जा रही। पर क्या सचमुच करप्शन की कलई खुलेगी, या सिर्फ मनोवैज्ञानिक तेजी? घोटालों या करप्शन के मामले में जांच तो हमेशा तेजी से शुरू हुई। पर कितने मामले अंजाम तक पहुंचे? वह भी जब, ऐसे मामलों में कोई बड़ी राजनीतिक पार्टी और राजनेता फंसा हो। तो जांच वैसे भी कछुआ चाल अपना लेती। इराक तेल दलाली के मामले में यूएन की वोल्कर रपट ने भारत से दो नामों का खुलासा किया था। पहला- नटवर सिंह, दूसरा- कांग्रेस पार्टी। यानी अनाज के बदले तेल घोटाले में बड़े लोग फंसने लगे। तो कांग्रेस ने तयशुदा फार्मूले के तहत नटवर सिंह को बलि का बकरा बना दिया। फिर जस्टिस आर.एस. पाठक की रहनुमाई में जांच कमेटी बनी। आखिर नटवर को किस तरह मनमोहन केबिनेट और फिर कांग्रेस से बाहर का दरवाजा दिखाया गया, दोहराने की जरूरत नहीं। पर वोल्कर रपट में तो कांग्रेस का भी नाम था। अब सीएजी की ही बात लो। सीएजी जैसी संस्था पर खुद कांग्रेसी सीएम शीला सवाल उठा चुकीं। ऐसी संस्था को ही बेमानी बता चुकीं। तो आप खुद सोचो, सीएजी की रपट से क्या हो जाएगा? मान लो, सीएजी ने भ्रष्टाचार की पूरी कलई खोल दी, तो क्या होगा। यही ना, संसद के बजट सत्र में दो-चार दिन विपक्ष के हंगामे से दोनों सदन ठप होंगे। फिर दिखलाने को मामला सीबीआई को सौंप दिया जाएगा। इसके बावजूद हायतौबा मचती रही, तो बलि का बकरा कलमाड़ी तैयार। पर कलमाड़ी ने तो विजयादशमी पर ही खम ठोक दिया। चेतावनी दे दी- मुझे कॉमनवेल्थ का रावण बनाने की कोशिश न की जाए। कलमाड़ी खुल्लमखुल्ला बोले- आयोजन समिति के हर फैसले में पीएम के तैनात अधिकारी भी शामिल। अब कलमाड़ी उवाच का मतलब जो न समझे, वह सबसे बड़ा अनाड़ी। पर कलमाड़ी अब यहीं तक खामोश नहीं रहने वाले। दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित ने पॉलिटीकल मैनेजर की तरह कॉमनवेल्थ की सफलता की वाहवाही मैनेज कर ली। चैनलों पर इंटरव्यू में ऐसा साबित करने लगीं। मानो, उन ने बेड़ा पार न लगाया होता, तो कॉमनवेल्थ का बेड़ गर्क हो जाता। तभी तो शीला के मैनेजमेंट से दिल्ली के उपराज्यपाल उखड़ गए। उन ने पीएम को चिट्ठी लिखकर शीला की शिकायत कर दी। पर जब कॉमनवेल्थ के करप्शन की जांच की कार्रवाई शुरू हुई। तो शीला ने सीधे कलमाड़ी पर उंगली उठा दी। ताकि सारा फोकस आयोजन समिति में हुए घपले पर हो जाए। सो वक्त की नजाकत भांप कलमाड़ी पहले चुप रहे। पर शीला वार जारी रहा, तो उन ने पलटवार किया। शीला को अपने गिरेबां में झांकने की नसीहत दी। कलमाड़ी ने दो-टूक कह दिया- आयोजन समिति को तो सिर्फ 1620 करोड़ मिले, शीला सरकार को 16000 करोड़ मिले थे। सो पहले शीला अपने भ्रष्टाचार को देखें। अब सवाल, जब पीएम जांच कराने ही जा रहे थे। तो शीला ने कलमाड़ी पर उंगली क्यों उठाई? अपना दामन साफ दिखाने के लिए कलमाड़ी पर कीचड़ क्यों उछाला? शीला संवैधानिक पद पर बैठी हुईं। सो उनके आरोप जांच की दिशा मोडऩे में अहम हो सकते। पर जांच तो कॉमनवेल्थ की तैयारियों में हुए समूचे भ्रष्टाचार की होनी। अब अगर शीला सरकार के दामन पर कोई दाग नहीं, तो खुद के दामन को साफ दिखाने के लिए किसी और पर कीचड़ उछालने की क्या जरूरत? ऐसा तो लोग तभी करते, जब खुद के मन में कोई चोर हो। शीला के कॉमनवेल्थ से पहले वाले बयान याद करिए। तब उन ने सारा दारोमदार भगवान पर छोड़ दिया था। पर जब खेल सफल हो गया। तो खुद को ही भगवान साबित करने में जुटीं। सो रंगारंग के बाद अब दे दना-दन शुरू हो गया। कॉमनवेल्थ में किसने नहीं खाया? सो कांग्रेस ने अब हमेशा की तरह बीच का रास्ता अपनाया। जांच की रफ्तार बढ़ेगी, दो-चार दिन नए खुलासे और सुर्खियां बनेंगी। फिर धीरे-धीरे मामला ठंडे बस्ते में। सो शीला-कलमाड़ी को संयम में रहने की नसीहत दी। जांच रपट तक आरोप-प्रत्यारोप न करने की हिदायत दी। अब देखिए, अपनी जनता की याददाश्त को नेता कैसे कमजोर समझते। तभी तो सिर्फ चुनावी साल में ही आम जनता के लिए खजाना लुटाया जाता। बाकी तीन-चार साल में अपना खजाना भरने में लगे रहते नेता। अब राजनीति की मौकापरस्ती देखिए। बिहार चुनाव की बिसात बिछी, तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। पहले राहुल गांधी, फिर पीएम मनमोहन और सोमवार को सोनिया गांधी। तीनों ने नीतिश कुमार को नकारा बताया। केंद्र का पैसा डकारने का आरोप लगाया। पर जनता की याददाश्त को कैसे कमजोर समझते नेता। बानगी देखिए, पांच मई 2009 को लोकसभा चुनाव के आखिरी राउंड से पहले राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस की। तो नीतिश कुमार को बेहतरीन काम करने वाला सीएम बताया। नरेगा में भी उम्दा प्रदर्शन करने वाला बताया। तो जवाब में तब नीतिश ने भी राहुल को थैंक यू कहा। पर महज एक साल में क्या हो गया? यानी नीतिश पर हमला हो या कॉमनवेल्थ की जांच, झूठा ही सही, पर मान लो।
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18/10/2010