Tuesday, July 20, 2010

बिहार में दंगल, दिल्ली में वर्जिश

अपनी दिल्ली, राजस्थान में बदरा बरसे। तो बिहार में कुर्सियां बरसीं। नीतिश कुमार का पहला टर्म पूरा हो रहा। दूसरे टर्म से पहले सत्तापक्ष और विपक्ष ने विधानसभा को ही अखाड़ा बना लिया। नीतिश-बीजेपी सत्ता में वापसी की मुहिम में जुटे। तो पिछली बार जमीन सूंघ चुके लालू-पासवान वापसी की राह ढूंढ रहे। नीतिश सरकार ने भी आखिरी वक्त में विपक्ष को मुद्दा थमा दिया। जब सीएजी रपट में खुलासा हुआ, सरकार ने 11,412 करोड़ खर्च तो किए, पर कोई हिसाब नहीं। सो हाईकोर्ट ने ट्रेजरी घोटाले में सीबीआई जांच के आदेश दे दिए। अब नीतिश सरकार फटाफट खर्चे के बिल बनाने में जुटी। सो बिहार विधानसभा में मानसून सत्र के पहले दिन ही हंगामा मच गया। विपक्ष वैल में पहुंचा, तो सत्तापक्ष से मंत्री-विधायक भी धमके। सो जमकर हाथापाई हुई। जिसके हाथ में जो आया, एक-दूसरे को दे मारा। सो करीब दर्जन भर विधायक घायल हो गए। पर सीएम नीतिश मुस्करा कर चल दिए। सदन में सीएम, डिप्टी सीएम मौजूद हों और हंगामा इस कदर बढ़ जाए। तो नैतिकता की उम्मीद किससे करें। सो लालू-पासवान ने नीतिश पर हमला बोला। कहा- विपक्ष संवैधानिक हक के तहत सदन में विरोध कर रहा था। पर नीतिश की शह से सत्तापक्ष ने मारपीट की। यों सत्तापक्ष में बैठा नेता अपने चेले-चपाटों को कैसे शह देता, यह लालू से बेहतर कोई बता भी नहीं सकता। मनमोहन की पिछली पारी में लालू 24 सांसदों के साथ सबसे बड़े सहयोगी थे। सो रेल मंत्री रहते भी रुतबा पीएम-सीएम से कम नहीं था। घटना 24 अगस्त 2006 की, जब लोकसभा में तबके जदयू सांसद प्रभुनाथ सिंह और लालू की तू-तू, मैं-मैं हो गई। दोनों के बीच बहस गाली-गलौज तक पहुंच गई। तो लालू के इशारे पर उनसे साले साधु यादव सांसदों की बैठने वाली बैंच को लांघते हुए प्रभुनाथ को मारने पहुंच गए। पर बीच में सांसद बृजभूषण शरण सिंह खड़े हो गए। सो साधु अपनी हरकत को अंजाम नहीं दे पाए। पर लालू हाथ उठा-उठा कर उकसाते दिखे। मुंह से गालियों के फूल बरसाते रहे। सो बाद में माफी मांगनी पड़ी। अब राजनीतिक मतभेद मनभेद बन गए। सो संसद हो या विधानसभा, अपने चुने हुए प्रतिनिधियों की वर्जिश का अड्डा बन गए। जनता के बीच जाने से पहले नेतागण सदन में ही वार्म-अप करते, ताकि मैदान में फुर्ती रहे। सो यूपी, उड़ीसा, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसी कई विधानसभा यह ट्रेंड अपना चुकीं। हर बार राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी दलील होती। दोनों पक्ष एक-दूसरे को जमकर कोसते। पर अपने गिरेबां में झांकते तक नहीं। अब नीतिश सरकार खर्च का हिसाब क्यों नहीं दे पाई या सचमुच घोटाला हुआ, यह तो जांच में साफ होगा। पर इतना तो जरूर हुआ, नीतिश राज में बिहार का कायापलट हो रहा। अगर रुपए खर्च नहीं होंगे, तो कायापलट कैसे संभव। अब हिसाब-किताब किसने नहीं रखा, यह तो बाद की बात। पर लालू-राबड़ी राज में पैसे खर्च ही नहीं हुए थे। कुछ फंड वापस केंद्र को चला जाता था, तो कुछ लालूवादी डकार जाते थे। पर साढ़े चार साल तक नीतिश के खिलाफ विपक्ष को ढूंढे कोई मुद्दा नहीं मिला। सो चुनावी साल में लालू-पासवान को तो समझो सीएजी ने मुंह मांगी मुराद थमा दी। यों सीएजी बनी ही मीन-मेख निकालने को। अगर काम कुछ भी न हो और कागजी पेट भर दो, तो सीएजी को एतराज नहीं होगा। यही हुआ था, जब सीएजी ने दिल्ली की शीला सरकार पर सवाल उठाए। लो फ्लोर बसों की खरीद के मामले में सीएजी ने रपट में कहा था कि अधिक कीमत पर बस खरीदी गई। पर तब शीला ने सीएजी को खरी-खरी सुनाने में देर नहीं की। सीएजी की रपट को कूड़ेदान में डालने को कह दिया। सीएजी जैसी संस्था की जरूरत पर ही सवाल उठा दिए। यानी कुल मिलाकर सीएजी कभी सत्तापक्ष को नहीं भाया। अलबत्ता विपक्ष के लिए हर रपट वरदान बन जाती। पर सीएजी और नीतिश के विवाद में आम आदमी का मुद्दा तो छूट गया। लालू-पासवान ने महंगाई पर मोर्चा निकाला। तो केंद्र को कम, नीतिश को खूब कोसा। पर अब बाकी मुद्दे गौण हो गए। सो बिहार के बाद अब दिल्ली में भी तैयारी हो रही। विपक्ष ने भारत बंद कर महंगाई पर तेवर दिखाए थे। तो अब सरकार ने विपक्षी एकता में सेंध लगाने को वही पुराना फार्मूला तय कर लिया। संसद का मानसून सत्र सोमवार से शुरू होगा। तो विपक्ष के तेवर देख सरकार मुद्दों की प्राथमिकता तय करेगी। पर इतना तय हो गया, विपक्षी एकता तोडऩे को हिंदू आतंकवाद और महिला आरक्षण बिल का सुर्रा छोड़ेगी सरकार। लेफ्ट तो वैसे भी ममता की बढ़ती राजनीतिक बेल से परेशान। सो बीजेपी के साथ दिखकर अपना और बंटाधार नहीं करेगी। लालू-पासवान भी बिहार चुनाव को देख बीजेपी संग बांसुरी नहीं बजाएंगे। रही बात मुलायम की। तो हिंदू आतंकवाद और महिला आरक्षण ही तोडऩे को काफी। अगर कांग्रेस सचमुच अपनी रणनीति में कामयाब हुई। बीजेपी-लेफ्ट के सहयोग से जबरन महिला बिल पास कराने की ठानी। तो कहीं ऐसा न हो, सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बिहार में भी गठबंधन टूट जाए। याद है ना, इसी सदन में शरद यादव ने एलान किया था- अगर महिला आरक्षण बिल पास हुआ, तो सुकरात की तरह जहर पी लेंगे। अब बिल पास हो या नहीं हो, पर विपक्षी एकता टूटनी तय। बिहार विधानसभा जैसी तस्वीर दिल्ली में दोहराए। तो हैरानी नहीं। सांसदों के वेतन-भत्ते बढऩे भी तय। पर महंगाई का बाल बांका नहीं होगा। यों केबिनेट सैक्रेट्री केएम चंद्रशेखर ने भरोसा दिलाया, दिसंबर तक महंगाई दर पांच-छह फीसदी पर आ जाएगी।
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20/07/2010