Friday, October 15, 2010

भुखमरी और कॉमनवेल्थ में भ्रष्टाचार का कॉकटेल

कॉमनवेल्थ के आयोजक सफलता की खुमारी में, तो देश की जनता विजयादशमी के जश्न में डूबी। सो रामायण के एक प्रसंग का जिक्र लाजिमी। जब भगवान राम लंका पर फतह कर अयोध्या लौटे। राज्याभिषेक हो गया। तब सिर्फ एक धोबी की टिप्पणी सुन राम ने अग्नि परीक्षा दे चुकी सीता को तज दिया था। पर कॉमनवेल्थ के आयोजकों पर न जाने कितने आरोप लग चुके। फिर भी किसी ठोस कार्रवाई की उम्मीद बेमानी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसलिए राम राज की कल्पना की थी। पर अपने राजनेताओं ने इसे रावण राज बना दिया। कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार से तो कलमाड़ी-शीला-जयपाल-गिल, सोनिया-पीएम-बीजेपी-लेफ्ट-सपा-बसपा-लालू भी इनकार नहीं करते। पर जब सभी अनियमितता कबूल रहे। तो सवाल, भ्रष्टाचारी कौन? किसने कॉमनवेल्थ के नाम पर वेल्थ की लूट मचाई और डकार तक नहीं ली? अभी तो कॉमनवेल्थ में करप्शन का पोथा खोलने वाले कांग्रेसी दुर्वासा यानी मणिशंकर अय्यर दिल्ली नहीं लौटे। सो अगर दस जनपथ ने ताला नहीं लगाया, तो जांच एजेंसियों से पहले अय्यर की जुबान खुलेगी। अब अय्यर जब बोलेंगे, तब बोलेंगे। फिलहाल अंतरिम रिपोर्ट देकर तैयारी में भ्रष्टाचार का इशारा कर चुकी सीएजी (कैग) खेल खत्म होते ही अंतिम रिपोर्ट में जुट गई। शुक्रवार को खेलगांव से लेकर कई स्टेडियमों का दौरा किया। पर सीएजी को अपनी रपट देने में करीब तीन महीने लगेंगे। सीएजी की अंतरिम रपट के बाद सीवीसी ने भी कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। तो पीएमओ ने दखल देकर मामला ठंडे बस्ते में डलवाया। सो सीवीसी ने अगले ही दिन कह दिया था- हमारी प्राथमिक रिपोर्ट के आधार पर कोई निष्कर्ष न निकाला जाए। अब सीवीसी की भूमिका क्या होगी, पता नहीं। सीवीसी के कमिश्नर पीजे थामस विपक्ष की मोर्चेबंदी के बाद भी पद हासिल करने में सफल हो चुके। यानी बीजेपी को चीफ विजिलेंस कमिश्नर थामस पर भरोसा नहीं। तो जरा सीएजी की कहानी भी बता दें। सत्तापक्ष को कभी भी सीएजी रास नहीं आई। जब शीला दीक्षित की सरकार ने दुगुनी कीमत पर लो-फ्लोर बसें खरीदीं। तो सीएजी ने अपनी रपट में सवाल उठाया था। पर तब शीला दीक्षित ने सीएजी को न सिर्फ खरी-खरी सुनाई थीं, अलबत्ता रपट को कूड़ेदान में डालने को कह दिया था। इतना ही नहीं, तब कांग्रेसी शीला ने सीएजी जैसी संस्था की जरूरत पर ही सवाल उठा दिए थे। कुछ कांग्रेसियों ने तो इस संस्था को स्क्रैप करने की मांग कर दी थी। अब उसी सीएजी के जरिए कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले की जांच हो रही। तो शीला या कलमाड़ी से ऐसी उम्मीद करें कि रपट को मानेंगे? यों सत्ता में बैठे लोगों के लिए घालमेल करना कोई बड़ी बात नहीं। सुप्रीम कोर्ट की सात मार्च 2007 को चारा घोटाले में की गई एक टिप्पणी आप खुद देख लें। सीबीआई की विशेष अदालत से घोटाले के आरोपी बृज भूषण प्रसाद को सजा हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए उनके वकील ने दलील दी- बृजभूषण तो सिर्फ बजट अकाउंट आफीसर थे। बस इतना सुनते ही जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने भडक़ते हुए कहा था- तुम्हें फंड का आडिट करना था, पर तुमने क्या किया? हर कोई इस मुल्क को लूट लेना चाहता है। पर भ्रष्टाचार के मामले में कभी बड़ी मछलियों को फंसते देखा आपने? सो कॉमनवेल्थ में भ्रष्टाचार का ठीकरा बड़े नेताओं पर फूटेगा, ऐसे आसार नहीं। नेताओं में तो सिर्फ वाहवाही लूटने की होड़ मचती। गलती की जिम्मेदारी कोई नहीं ओढ़ता। अब गुरुवार का ही किस्सा देखिए, गेम्स के समापन के जश्न में कैसे एक मासूम की चीख दब गई। नेहरू स्टेडियम के सामने की कालोनी में सात साल की बच्ची ममता बिजली के नंगे तार की चपेट में आ गई। पर सुरक्षा कर्मियों ने अस्पताल तक नहीं जाने दिया। आधे घंटे बाद पीसीआर की गाड़ी ममता को लेकर गई। पर तब तक मासूम ममता की मौत हो चुकी थी। अब श्रेय की होड़ में जुटे नेता बताएं, ममता की मौत का जिम्मेदार कौन? बिजली कंपनी और दिल्ली पुलिस ने तो पल्ला झाड़ लिया। पर यह शीला-कलमाड़ी का कैसा आयोजन, जो आम आदमी भले मर जाए, पर अस्पताल भी नहीं जा सकता? आयोजक ईमानदार होते, तो ममता के घर जाकर ढांढस बंधाते। पर श्रेय लूटने को बयानों का दौर चल रहा। शीला को-आर्डीनेशन की कमी बता रहीं। जब उनके जिम्मे काम आया, तो सब ठीक हो गया। ऐसा अपनी ही जुबान से बता रहीं। पर यह कैसी शेखी, एक तरफ भारत भुखमरी में चीन-पाक-श्रीलंका से भी आगे। शनिवार को वल्र्ड फूड डे, सो अंतराष्ट्रीय संस्था की रपट में यह खुलासा हुआ। विडंबना देखिए, अपने वित्त मंत्री एशिया के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री कहला रहे। पर आम आदमी को आखिर क्या मिला? सचमुच वेल्थ लुटाकर कॉमन हो गई भारत की जनता। आयोजन के राजा तो अब धन के मामले में महाराजा हो गए। आम आदमी को मिला, तो सिर्फ आभार। कांग्रेस ने शुक्रवार को शीला-कलमाड़ी-पीएम-उपराज्यपाल को श्रेय देने से इनकार कर दिया। मनीष तिवारी बोले- सफल गेम्स का श्रेय भारत की करोड़ों जनता और उनकी दुआओं को। यानी जनता को मिला सिर्फ श्रेय। कॉमनवेल्थ के नाम पर जेब भरने वाले तो अब कागज का पेट भरने में जुट गए। ताकि सीएजी, इनकम टेक्स और इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट के शिकंजे से बच जाएं।
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15/10/2010