Wednesday, December 30, 2009

तो साल 2009: कांग्रेस ने सिर्फ दर्द दिया, दवा नहीं

इंडिया गेट से
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तो साल 2009: कांग्रेस ने
सिर्फ दर्द दिया, दवा नहीं
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 संतोष कुमार
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       तो सफरनामा- 2009 में आज बात कांग्रेस की। शुरुआती दिन 26/11 की कालिमा में ही गुजरे। पर अरसे बाद देश में जागरूकता दिखी। जब जनता ने आतंकवाद को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनने दिया। अलबत्ता ऐसी लहर चली। कांग्रेस हो या बीजेपी, मुंह छुपाती दिखीं। पर सेमीफाइनल में बीजेपी का राजस्थान किला ढहना। कांग्रेस की उम्मीद बढ़ा गया। सो आतंकवाद के मसले पर स्ट्रेटजिक बैटिंग की। पाक से युद्ध जैसा माहौल बना वैश्विक कूटनीति पर फोकस किया। ताकि चुनावी जीत का आधार बुना जा सके। सो राजस्थान की जीत का क्रेडिट राहुल गांधी को गया। तो फोटोजनिक फेस वाले राहुल पर भी धुन सवार हुई। सो फौरन कांग्रेस का चापलूस तंत्र एक्टिव हो गया। मनमोहन 2009 की शुरुआत में ही अस्वस्थ हो गए। गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल न हो सके। सोनिया ने मनमोहन का आधा काम प्रणव दा को दिया। तो आधा ए.के. एंटनी को। गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले एम्स में मनमोहन की हर्ट सर्जरी हुई। लगा, मनमोहन की पारी खत्म। सो राहुल बाबा को साउथ ब्लॉक भेजने की मांग शुरू हो गई। पर सोनिया गांधी ने चतुराई दिखाई। मैनीफेस्टो एलान के दिन 24 मार्च को मनमोहन को ही पीएम प्रोजैक्ट कर दिया। गांधी-नेहरू खानदान से इतर पहली बार कांग्रेस ने पीएम प्रोजैक्ट किया। सो मनमोहन के हौसले भी बुलंद। पर सोनिया ने राहुल को प्रोजैक्ट न कर 2014 की नींव रखी। सो 2009 का चुनाव लैब टेस्ट के आधार पर हुआ। राहुल ने शॉर्ट टर्म और लाँग टर्म स्ट्रेटजी बनाई। कांग्रेस ने यूपीए का नेशनल अलायंस नहीं बनाया। अलबत्ता राज्यों में तालमेल का फार्मूला रखा। तो लालू-पासवान तमतमा उठे। सो यूपीए बिखरने लगा। राहुल ने भी एकला मोर्चा संभाला। तो वोटरों में नई उम्मीद जगी। राहुल का दलितों के घर जाना तो विरोधियों को आज भी चुभ रहा। पर राहुल की मंजिल तय। सो राहुल तैयार स्क्रिप्ट से आगे बढ़ रहे। तभी तो कांग्रेस के युवा नेतृत्व में वंशवाद की झलक। पर राहुल का चेहरा सुर्खियां दिलाने लगा। तो कांग्रेस समस्याओं का चोला फेंक इतिहास से उपलब्धियों का झोला ले आई। आम चुनाव के लिए 'जय होÓ की धुन एक करोड़ में खरीद ली। भले खुद को गांधी की कांग्रेस बताने वाली मौजूदा कांग्रेस बापू के चश्मा, घड़ी, खड़ाऊं, चम्मच आदि नीलामी में खरीद नहीं पाई। वह तो शराब किंग विजय माल्या को थेंक्स। जिन ने भले शराब के पैसे से, पर बापू की अमानत तो बचा ली। पर कांग्रेस ने 'जय हो' गीत से फील गुड का अहसास कराया। यों कांग्रेसी रणनीतिकारों को बात जल्द समझ आ गई। महंगाई और मंदी बेलगाम घोड़े की तरह बढ़ती गई। तो कांग्रेस ने 'जय हो'  की पैरोडी वापस ले ली। फिर चुनावी समर के बीच जूता प्रकरण। सिख विरोधी दंगों के आरोपियों सज्जन, टाइटलर को टिकट मिला। तो सिख समुदाय का घाव हरा हो गया। ऊपर से मनमोहन की मातहत सीबीआई ने कोर्ट में केस बंद करने की रपट दे दी। सो सरकार की लीपापोती देख जरनैल सिंह का पत्रकार मन मजहबी हो गया। भले नैतिक रूप से जरनैल का पी. चिदंबरम पर जूता फेंकना गलत। पर एक समाज का दर्द था। सो सात अप्रैल को जूता उछला। दो दिन के भीतर सज्जन, टाइटलर का टिकट कट गया। पर सीबीआई के बेजा इस्तेमाल की कहानी सिर्फ यही नहीं। बोफोर्स दलाली का मामला भी सीबीआई ने बंद करने की ठानी। क्वात्रोची को क्लीन चिट देने की रपट कोर्ट में। भले बवाल मचा। पर कांग्रेस ने राजनीति की ठसक नहीं छोड़ी। चुनाव आयुक्त नवीन चावला को हटाने की सिफारिश गोपाल स्वामी ने की। पर कांग्रेस ने चावला को हटाना तो दूर, सीईसी बना दिया। फिर भी विपक्ष लड़ाई को अंजाम तक नहीं पहुंचा सका। अलबत्ता बीजेपी आपस में इस कदर लड़ी-मरी। जनता का भरोसा सत्ता से ज्यादा विपक्ष से उठ गया। सो महंगाई, महामंदी जैसी विकराल समस्या के बावजूद कांग्रेस जीती। तो सत्ता के नशे में मगरूर। जनता का दुख-दर्द भुला दिया। सो हर जीत के साथ जनता की जेब पर डाका। आम चुनाव के बाद मीरा कुमार को पहली महिला स्पीकर बनाना। फिर सौ दिनी योजना की होड़ में बंटाधार की नीति। सो मनमोहन के सौ दिन छोडि़ए, 222 दिन बीत गए। पर महंगाई न थमी, न थमने वाली। सो सत्ता के नशे में चूर कांग्रेस ने पहले सत्र में ही कई गलतियां कीं। शर्म-अल-शेख का साझा बयान। सी.पी. जोशी का सदन में फंसना। जजों की संपत्ति वाला बिल वापस लेने की नौबत। स्वाइन फ्लू की मार और सरकार की नाकामी। पर जब जनता की समस्या कांग्रेस के बूते से बाहर हो गई। तो ध्यान बंटाने को सादगी का खेल। कैसे मनमोहन के मंत्री कृष्णा, थरूर का फाइव स्टार में मौज उड़ाना। राहुल का ट्रेन से जाना। सोनिया का 'कैटल क्लास'  में सफर। चीन की धौंस-पट्टïी पर मनमोहन का गांधारी बनना। आतंकी डेविड हैडली के मामले में अमेरिका का दोगलापन। पर मनमोहन अभी भी अमेरिका के बेस्ट स्टूडेंट बनने में लगे। अब साल के अंत में एन.डी. तिवारी का सेक्स स्कैंडल वाला दाग। लिब्राहन और रंगनाथ मिश्र रपट की आंच तो बाद में। तेलंगाना की आग बुझ नहीं रही। आंध्र में वाई.एस.आर. की हादसे में मौत से कांग्रेस को भारी क्षति। सो अब आंध्र संभाले न संभल रहा। चिदंबरम ने अगले साल पांच जनवरी को फिर मीटिंग बुला ली। सो अब कोई पूछे, कहां है करिश्माई चेहरा? यानी कुल मिलाकर 2009 में कांग्रेस की नहीं, परिस्थितियों की जीत हुई। तीसरे मोर्चे ने आधार खोया। बीजेपी खुद में उलझी। सो मजबूर जनता ने कांग्रेस से ही अर्जी लगाई- 'तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना।'
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30/12/2009