Friday, January 29, 2010

जब हाथों में हो जाम, तो निधन पर शोक कैसा?

 संतोष कुमार
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           जब महंगाई काबू में नहीं। तो भला जुबान क्यों काबू में रहे। अब तो महंगाई भी परेशान हो चुकी होगी, कहां राजनीति में आकर फंस मरी। बेचारी महंगाई ने सौ मीटर के धावक उसैन बोल्ट का भी रिकार्ड तोड़ दिया। पर नेता महंगाई को आराम देने के बजाए राजनीति चमकाने में जुटे हुए। बीजेपी 18 जनवरी से महंगाई के खिलाफ आंदोलन कर रही। पर कहीं सड़कों पर वर्कर नहीं दिख रहे। कांग्रेस तो सिर्फ गाल बजाकर महंगाई रोकने का दावा कर रही। अब शुक्रवार को रिजर्व बैंक ने सीआरआर बढ़ा दिया। यानी अब बैंकों को आरबीआई के पास कैश का रिजर्व बढ़ाना होगा। पर बैंक अपनी तरलता कम क्यों होने दें। सो बैंक लोन धारकों पर बोझ डाल अपने खजाने की भरपाई करेंगे। अब आप ही सोचो, महंगाई रोकने का यह कैसा तरीका। मार्केट से पैसा कम कर दो। लोग खरीदना कम कर देंगे। मांग घटेगी, तो पूर्ति के बराबर में आ जाएगी। यानी महंगाई के साथ सिर्फ खेल हो रहा। तभी तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी पीएम या पवार को चि_ïी नहीं लिख रहे। अलबत्ता सोनिया गांधी को चि_ïी लिखी। गुजरात के पाटन में मोदी ने बाकायदा गरीब मेला लगाया। तो गरीबों को चैक के जरिए राहत देने की कोशिश हुई। पर जब लिफाफा खुला। तो खोदा पहाड़, निकली चुहिया की कहावत से आगे निकल गई। कहावत में कम से कम चुहिया तो निकलती है। पर मोदी के हाथों से बंटे लिफाफे कोरे निकले। फिर भी राजनीति का मौका मोदी नहीं चूके। महंगाई पर सोनिया गांधी को लपेटा। बोले- 'महंगाई पर नियंत्रण को मैंने सोनिया गांधी को हिंदी में कई चि_िïयां लिखीं। पर न तो जवाब आया, न महंगाई रुकी। अब मैं क्या करूं। क्या इतालवी में चि_ïी लिखूं?' अब सोनिया गांधी के खिलाफ कोई ऐसी भाषा इस्तेमाल करे। तो परंपरा के मुताबिक कांग्रेस का आग-बबूला होना लाजिमी। वैसे भी किसी ऐरे-गैरे ने सोनिया पर निशाना नहीं साधा। अलबत्ता उस मोदी ने, जिनके और कांग्रेस के बीच सांप-नेवले का बैर। सो कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने झट मोदी पर हमला बोल दिया। कहा- 'मोदी सठिया गए हैं।'  यों मोदी अभी साठ साल के नहीं हुए। पर आका को खुश करने के चक्कर में भला कौन उम्र का हिसाब-किताब रखे। यों महंगाई के बहाने मोदी और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग का कोई पहला राउंड नहीं। मोदी के मुखारविंद से इटली की... और जर्सी बछड़ा जैसी भाषा निकल चुकी। गुजरात चुनाव में सोनिया गांधी की ओर से मोदी को मौत का सौदागर कहा गया। यानी अब जनता का भला हो, न हो। नेता अपना भला करने की ठान चुके। सो महंगाई पर कांग्रेस-मोदी की जुबानी जंग। तो उधर महाराष्टï्र में बाल ठाकरे मुकेश अंबानी पर उबल पड़े। अंबानी ने मुंबई को पूरे देश की बता दिया। तो ठाकरे ने शुक्रवार को सिर्फ अंबानी को नहीं, शाहरुख खान को भी लपेटा। धमकी दी, पाकिस्तानी खिलाडिय़ों को कोलकाता नाइट राइडर्स में शामिल किया। तो ईंट से ईंट बजा देंगे। लगता है, चचा-भतीजे ठाकरे के पास विध्वंस के सिवा कोई विचार ही नहीं। पर अपनी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी। इधर महाराष्टï्र में अपने-अपनों को पीट रहे। तो उधर ऑस्ट्रेलिया में हमले थम नहीं रहे। अब, जब सरकार कुछ नहीं कर पाई। तो शुक्रवार को एडवाइजरी जारी कर दी। फिलहाल कोई छात्र ऑस्ट्रेलिया न जाए। अब सरकार हो या विपक्ष, आंखों का पानी मर चुका। शुक्रवार को दो घटनाएं हुईं। एक बीजेपी, एक कांग्रेस में। सो दोनों का हाल देख आप खुद अंदाजा लगा लीजिए। बीजेपी दफ्तर से दिसंबर 2008 में ढाई करोड़ रुपए चोरी हो गए। तब प्राइवेट डिटेक्टिव का सहारा लेकर बीजेपी ने अंदरूनी पड़ताल की। अकाउंटेंट नलिन टंडन निकाले गए। पर अंदरूनी गुटबाजी तेज हो गई। कभी रामदास अग्रवाल को हटाने, तो कभी श्याम जाजू पर गाज गिराने की कोशिश हुई। अब साल भर बाद बीजेपी में निजाम बदला। तो नया किस्सा हुआ। श्याम जाजू का आंध्रा बैंक में अकाउंट। एक व्यक्ति गुरुवार को बैंक में खाते की पड़ताल करने पहुंच गया। पर मैनेजर को शक हुआ। तो जाजू तक बात पहुंची। उस व्यक्ति ने अपना नाम चंदन झा और साधना चैनल का रिपोर्टर बताया। पर साधना चैनल ने इससे इनकार किया। सो जाजू के गुर्गों के हाथ पिट अब वह व्यक्ति दिल्ली पुलिस की हिरासत में। यानी पिछले साल जिस बही-खाते की लड़ाई को बीजेपी ने छुपाने की कोशिश की। अबके सार्वजनिक हो गई। सो जब बीजेपी में अपने ही अपनों की जासूसी करा रहे। तो आपसी विश्वास कैसे बहाल होगा, यह तो गडकरी ही जानें। पर आप दूसरा किस्सा कांग्रेस का देखिए। अपने रामनिवास मिर्धा का शुक्रवार को निधन हो गया। गहलोत सरकार ने एक दिन का राजकीय शोक रखा। दिल्ली में सोनिया-मनमोहन ने श्रद्धांजलि दी। पर अपने राजस्थान से ही राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की कॉकटेल पार्टी में खूब जाम छलके। नए साल के जश्र का आयोजन मिर्धा के शोक पर भारी रहा। सिंघवी का न्योता था। सो मंत्री अंबिका सोनी, सचिन पायलट और सुबोध कांत सहाय भी पहुंचे। अब आप ही सोचिए, राजनीति में विश्वास की उम्मीद किससे। यों बीजेपी में भी ऐसा हो चुका। दत्तोपंत ठेंगड़ी का जिस दिन निधन हुआ। उस दिन मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने घर बर्थ डे पार्टी में खूब कॉकटेल की थी। पर जब नए साल की पार्टी के लिए 28 दिन रुका जा सकता। तो एक और दिन टालने में क्या जाता। राजस्थान कांग्रेस के बड़े नेता का निधन हो। और वहीं का कांग्रेसी सांसद ऐसी पार्टी जारी रखे। तो क्या संदेश जाएगा।
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29/01/2010