Tuesday, January 18, 2011

ब्लैकमनी पर नेता नहीं, अब असांज से उम्मीद

मुझसे न पूछो, महंगाई कब कम होगी। यह कह आखिरकार शरद पवार ने सरेंडर कर दिया। मौका देख मनमोहन ने भी टेंडर जारी कर दिया। बुधवार शाम पांच बजे मनमोहन की दूसरी पारी का पहला फेरबदल होगा। वैसे भी प्याज के बाद टमाटर भी अपने लाल रंग पर इतराने लगा। सो बेफिक्र मनमोहन ने जनता को राहत देने के बजाए अपनों में रेवड़ी बांटने को तरजीह दी। पर मनमोहन सरकार झंझावात के जिस दौर से गुजर रही, केबिनेट में फेरबदल भी इम्तिहान से कम नहीं। देखने वाली बात होगी, मनमोहन साफ-सुथरी छवि वालों को मंत्री बना अपनी छवि सुधारते हैं या फिर वही मजबूरी। यों मंत्री बनाना या हटाना पीएम का विशेषाधिकार। पर अब तक छनकर जितने नाम आए, उनमें चौंकाने वाला नाम टीआर बालू का। डीएमके कोटे से राजा की विदाई के बाद एक मंत्रालय देना गठबंधन की जरूरत। पर इतनी भद्द पिटने के बाद भी बालू को केबिनेट में शामिल करना पड़ा। तो यूपीए-टू में मजबूत पीएम की छवि लेकर उभरे मनमोहन अबके निढाल नजर आएंगे। सनद रहे, सो याद दिलाते जाएं। जब मनमोहन की दूसरी पारी में केबिनेट लिस्ट बनी, तो उन ने डीएमके को राजा-बालू छोड़ किसी और का नाम भेजने को कहा। पीएमओ की ओर से बाकायदा खबरें बांची गईं- मनमोहन अबके सिर्फ साफ छवि वालों को तरजीह देंगे। पर गठबंधन की मजबूरी की वजह से दोनों की बात रह गई। करुणानिधि ने बालू को ड्रॉप कर राजा को मंत्री बनवा लिया। पर जिस तरह राजा के कारनामे ने मनमोहन सरकार के मुंह पर कालिख पोत दी। भ्रष्टाचार आज ऐसा मुद्दा बन चुका, मनमोहन की गाड़ी हिचकोले खा रही। फिर भी राजा की जगह बालू आए, तो समझो, अब मनमोहन का ब्रेक फेल हो चुका। बाकी मंत्रियों का इतिहास शपथ ग्रहण समारोह के बाद बताएंगे। पर चौदह उद्योगपतियों की ओर से लिखी गई चिट्ठी सरकार की पोल खोल रही। इनमें कई राजनेता भी। पर चिट्ठी का लब्बोलुवाब- पहले सरकार के कामकाज से संतुष्टि का अहसास होता था। पर अब ऐसी भावना नहीं दिख रही। भ्रष्टाचार और महंगाई पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत। वरना अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा। सो मंगलवार को बीजेपी ने चिट्ठी को जरिया बना सवाल उठाया। इनमें से कई लोग सरकारी पदों पर काम कर चुके। सो मनमोहन बताएं, इस पीड़ा की क्या वजह? पर पीड़ा की वजह कोई तब बताए, जब पीड़ा का अहसास हो। सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणियों के बावजूद सरकार ने सीवीसी पी.जे. थॉमस का बचाव किया। तो सरकार से क्या उम्मीद रखेंगे आप। सो बीजेपी ने मौजूं सवाल उठाया। बोली- यह कैसी सरकार, जो एक दागदार सीवीसी को बचा रही। और एक ईमानदार सीएजी को कटघरे में खड़ा कर रही। सचमुच सरकार ने नीति, नैतिकता, शर्म-हया, आम आदमी की चिंता वगैरह सब ताक पर रख दिया। तभी तो विदेशों में ब्लैक मनी जमा करने वालों का नाम सार्वजनिक नहीं कर रही। अपना सुप्रीम कोर्ट भी दो दिन पहले टिप्पणी कर चुका- नाम का खुलासा करने में क्यों हिचकिचा रही सरकार? अब विपक्ष ने भी मंगलवार को वही सवाल दोहराया। पर भले विपक्ष के सवाल सरकार को असर न करते हों। पर अमेरिका को नाकों चने चबवाने वाले जूलियन असांज के हाथ लगी सीडी ने होश उड़ा दिए। मनमोहन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने विदेशों में काला धन जमा करने वालों का नाम सार्वजनिक नहीं किया। अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट में दलील दी- हम सील बंद लिफाफे में आपको नाम दे सकते, पर सार्वजनिक नहीं कर सकते। आखिर यह सरकार की कैसी मजबूरी? पर दलील की हकीकत भी देख लो। जर्मनी से सरकार को 50 खाताधारियों के नाम मिले। पर सुप्रीम कोर्ट को बताए सिर्फ छब्बीस। अब देश की जनता को विकीलिक्स से उम्मीदें बंधीं। चार दशक से ब्लैकमनी का मामला उठ रहा। पर किसी सरकार ने ईमानदार पहल नहीं की। अनुमान को सच मानें, तो कुल जीडीपी का दुगुना ब्लैकमनी विदेशी बैंकों में जमा। स्विस बैंक के एक डायरेक्टर ने कुछ समय पहले खुलासा किया था। भारतीयों के 280 लाख करोड़ रुपए अकेले स्विस बैंक में जमा। जिससे तीस साल तक देश का टेक्सलैस बजट बन सकता। साठ करोड़ भारतीयों को रोजगार मिल सकते। देश के किसी गांव से राजधानी दिल्ली तक चार लेन की सडक़ें बनाई जा सकतीं। करीब 500 सामाजिक परियोजनाओं को हमेशा के लिए मुफ्त बिजली दी जा सकती। हर भारतीय को साठ साल तक दो हजार रुपए मासिक दिए जा सकते। ब्लैकमनी वापस आने के बाद भारत को न वल्र्ड बैंक न आईएमएफ के आगे झोली फैलाने की जरूरत। पर कौन करेगा ऐसी ईमानदार पहल? कोई साफ छवि का नेता नहीं दिख रहा। जिससे कोई उम्मीद रखी जाए। कांग्रेस की सरकार भ्रष्टाचार पर चौतरफा घिरी। मनमोहन उस आग में झुलस चुके। बोफोर्स पर आईटी ट्रिब्यूनल के फैसले ने सोनिया को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। विपक्ष तो अपनी ही विरासत से सवालों में। तभी तो आम आदमी के हित के नाम पर नेता ऐसे नाक-भौं सिकोड़ते, मानो आम आदमी के पसीने की दुर्गंध आ रही हो। सो अब विकीलिक्स ने उम्मीद की किरण दिखाई। अमेरिका के दबाव में भी नहीं झुकने वाला असांज ब्लैकमनी से कितना परदा उठा पाते, यह कौतूहल का विषय। तो क्या चार दशक में जो अपने नेता नहीं कर सके, असांज कर दिखाएगा? अगर कर दिया, तो क्या सरकार कार्रवाई करेगी?
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18/01/2011