Wednesday, August 25, 2010

तो कांग्रेस-बीजेपी और ‘मंशा’ अमेरिका की

तेरी-मेरी यारी और संसद हमारी। कांग्रेस-बीजेपी ने मिलकर एटमी जनदायित्व बिल लोकसभा से निपटवा लिया। बुधवार को लेफ्ट तो बुद्धू ही बना रहा। बाकी कांग्रेस ने बीजेपी संग टांका भिड़ा बराक ओबामा का गिफ्ट तैयार कर लिया। लोकसभा में बिल पेश होने से पहले ही सरकार और विपक्ष की गुटरगूं हो चुकी थी। सो दोपहर बाद पीएमओ में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने 18 संशोधनों के साथ बिल पेश कर दिया। फिर देर शाम बिल पास भी हो गया। जब पक्ष-विपक्ष में हो ऐसी यारी, तो फिर संसद का रंगमंच भर होना लाजिमी। वैसे भी मौजूदा सत्र में स्वांग रचने वाली संसद का नजारा भी दिख चुका। सचमुच स्वांग रचने में नेताओं की कोई सानी नहीं। अब एटमी जनदायित्व बिल का ही पूरा किस्सा लो। तो कैसे बजट सत्र में विपक्ष ने इसी बिल पर सरकार की बोलती बंद कर दी थी। पर मानसून सत्र में ऐसा क्या बरसाया सरकार ने, बीजेपी बाग-ओ-बाग हो गई। जिन लालू-मुलायम-लेफ्ट-शरद-शिवसेना को भरोसे में लेकर बीजेपी ने बजट सत्र में बिल रुकवा दिया। अबके किसी को पूछा तक नहीं। सो बिल के लिए डील की आशंका यों ही नहीं। याद करिए मानसून सत्र से ठीक तीन दिन पहले 23 जुलाई की तारीख। गुजरात के तबके गृह राज्यमंत्री अमित शाह के खिलाफ सीबीआई ने सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी थी। तो नरेंद्र मोदी ने आला नेताओं को फोन खडक़ा आर-पार का मंत्र थमाया। सो बीजेपी की चतुर चौकड़ी आडवाणी-गडकरी-सुषमा-जेतली ने पीएम मनमोहन के घर का जायकेदार लंच ठुकरा दिया था। सीबीआई के बेजा इस्तेमाल का आरोप लगा संसद में हंगामे की तैयारी कर ली थी। पर महंगाई का मुद्दा संसद में विपक्षी एकता का आधार बना। तो बीजेपी ने सीबीआई पर बहस की मांग अगले हफ्ते के एजंडे में डाली। पर बुधवार को इधर बीजेपी के समर्थन से एटमी जनदायित्व बिल पास हुआ। उधर बीजेपी सीबीआई पर बहस की जिद छोड़ गई। अब आप क्या कहेंगे? पीएम का लंच ठुकराना, फिर उसी मुद्दे पर बहस की जिद छोड़ देना क्या किसी सौदेबाजी की शंका नहीं? अब भले बीजेपी सौदेबाजी से इनकार करे या सवाल पूछने पर भडक़ उठे। पर सरकार ने एटमी बिल की खातिर बीजेपी को पटा इतना मैसेज तो जरूर दे दिया। जैसे सीबीआई के आगे लालू-मुलायम-माया-अजित। कुछ वैसी ही अब बीजेपी भी। अगर ऐसा नहीं, तो जिस सीबीआई के मुद्दे पर राष्ट्रपति भवन तक मार्च हुआ। देश भर में सीबीआई के मुख्यालयों पर प्रदर्शन हुए। उसी सीबीआई के बेजा इस्तेमाल पर बहस की जिद बीजेपी ने कैसे छोड़ दी? अब सुषमा कह रहीं- संसद के सत्र में सरकार के कई बिल पास होने, सो वक्त नहीं। क्या विपक्ष से कोई ऐसी दलील की उम्मीद करेगा? क्या यह विपक्ष का सरेंडर नहीं? बिल पास होने को संसद का सत्र बढ़ रहा। फिर भी बीजेपी सीबीआई पर बहस नहीं मांग रही। पर जब अमेरिका की खातिर विपक्ष समर्थन दे रहा हो, तो सरकार के हौसले बुलंद क्यों न हों। सो हील-हुज्जत के बाद बिल पेश हुआ। तो सरकार ने बीजेपी की तमाम शर्तें मान लीं। पर लेफ्ट को ठेंगा दिखा दिया। यों लेफ्ट की मांग अमेरिका को किसी भी सूरत में मंजूर नहीं होतीं। सो बीजेपी से समझौता सरकार को मुफीद रहा। अब लोकसभा में बिल पास हो गया। राज्यसभा से पास होकर राष्ट्रपति की मंजूरी मिलेगी। फिर कानून बन जाएगा। पर कानून क्या सचमुच जनता को राहत दिलाएगा? अगर इरादे नेक हों, तो कानून के बिना भी जनता का हित संभव। पर जब इरादे नेक न हों, तो कानून कुछ नहीं कर सकता। वैसे भी आम धारणा यही, कानून सिर्फ गरीबों के लिए होता, बड़े लोगों के लिए नहीं। सो एटमी जनदायित्व बिल की खातिर मनमोहन के सिपहसालारों ने जितने खेल किए, उससे तो नीयत ही साफ नहीं दिखती। पहले बिल में 500 करोड़ की बात हुई। फिर 1500 करोड़ की सीमा तय हुई। फिर भी विदेशी कंपनियों को बचाने के लिए नौकरशाही का सुझाया ‘एंड’ शब्द जोड़ दिया। विपक्ष ने एतराज किया, तो एंड हटाकर ‘इंटेंट’ यानी मंशा शब्द जोड़ दिया। अब मंशा शब्द भी हट चुका। पर जरा सोचिए, जिस बिल को सरकार ने पेश किया, उसमें खुद 18 संशोधन लेकर आई। सो भले एटमी जनदायित्व बिल अब कुछ दिनों में कानून बन जाएगा। नवंबर में भारत दौरे पर आ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को तोहफा मिल जाएगा। पर सचमुच कभी कोई एटमी हादसा हुआ, तो आप देख लेना, विदेशी कंपनियां उसी तरह सस्ते में छूट जाएंगी, जैसे वॉरेन एंडरसन छूट गया। हम और आप यानी आम जनता तो सिर्फ आंसू बहाएगी, जैसा भोपाल त्रासदी पर बहा रही। अगर सरकार की मंशा जनता के हित की होती, तो कभी बिल पर शब्दों का ‘कॉमनवेल्थ’ नहीं होता। पता नहीं अपने नेताओं को क्या हो गया। जो शपथ तो देशहित की लेते, पर विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए कभी विपक्ष से डील तो कभी शब्दों का खेल करते। सो अगर एटमी जनदायित्व बिल का सरकारी भाषा में मतलब निकालें, तो रेलवे के प्लेटफार्म पर लिखा होता है ना- यात्री अपने सामान की रक्षा खुद करें। उसी तरह जनदायित्व का मतलब जनता के लिए दायित्व नहीं, अलबत्ता जनता का ही दायित्व। अगर कुछ हुआ, तो भुगतेगी जनता, सरकारें तो आती-जाती रहतीं। तभी तो पीएम ने भी दिलासा दी, अमेरिकी दबाव में कुछ नहीं कर रहे। सबका ख्याल रखा। बीजेपी के जसवंत ने सदन में सरकार पर अमेरिकी पिछलग्गू बनने का आरोप लगाया। बिल पर जल्दबाजी को ओबामा की अगवानी बताया। पर आखिर में कांग्रेस-बीजेपी साथ-साथ।
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25/08/2010