Friday, January 1, 2010

कांग्रेस मार रही खर्राटे, बीजेपी करेगी पहरेदारी

इंडिया गेट से
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कांग्रेस मार रही खर्राटे,
बीजेपी करेगी पहरेदारी
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 संतोष कुमार
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       नया साल आया, तो नई शुरुआत भी होगी। सो बीजेपी ने संकल्प लिया। अब संकल्प नया या पुराना, आगे बात करेंगे। पर बीजेपी वॉचडॉग की भूमिका निभाएगी। यों आडवाणी मनमोहन की दूसरी पारी में अपने सांसदों की सक्रियता पर खूब पीठ ठोक चुके। सो अबकी भूमिका में नया अंदाज क्या होगा, मालूम नहीं। पर बीजेपी दस का दम दिखाएगी। नए साल में सरकार पर निगाह रखने को दस मुद्दे तय हो गए। सो आप भी मुद्दे देख लो। पहला- महंगाई, जो कांग्रेस राज में खूब तेजी से बढ़ी। पर सरकार रोकने में नाकाम। संसद में बहस हुई। तो गिन-गिनाकर बहस के वक्त सदन में 17 सांसद दिखे। यानी विपक्ष हो या सत्तापक्ष। जनता के मुद्दों में किसका कितना इंटरेस्ट, आप सबको बखूबी मालूम। दूसरा- आतंकवाद और नक्सलवाद। तीसरा- पाकिस्तान से संबंध की नीति। चौथा- रंगनाथ मिश्र रपट। जिस पर सरकार ढाई साल बाद भी एटीआर पेश करने की हिमाकत नहीं दिखा सकी। पर खुद एनडीए में रंगनाथ रपट पर एक राय नहीं। सो बीजेपी अपने एजंडे पर खेलेगी। यानी बीजेपी की दलील, अगर रपट पर अमल हुआ। तो एससी, एसटी, ओबीसी के आरक्षण अधिकार कम होंगे। पांचवां- महिला आरक्षण बिल। जिस पर संसद का बहुमत तो साथ, पर आम सहमति नहीं। सो गेंद सरकार के पाले में। पर बीजेपी भला अकेली कांग्रेस को क्रेडिट क्यों लेने दे। सो गाहे-ब-गाहे मुद्दा उठाएगी। छठा- सिख विरोधी दंगों के आरोपियों पर कार्रवाई। बीते साल के आखिरी दिन सरकार ने सज्जन कुमार के खिलाफ केस चलाने की हरी झंडी दे दी। पर जगदीश टाइटलर की तकदीर का फैसला नहीं। वैसे भी टाइटलर अब बिहार कांग्रेस के प्रभारी। जहां राहुल गांधी का फार्मूला लागू होने वाला। इसी साल बिहार विधानसभा का चुनाव होगा। तो नीतिश की अग्रि परीक्षा होगी। दूसरी तरफ लालू-पासवान की जमीन के लिए जद्दोजहद। पर यूपी में कांग्रेस का जीर्णोद्धार कर चुके राहुल अब बिहार का रुख करेंगे। यों बिहार में बीजेपी की राह भी आसान नहीं। जब उड़ीसा में बीजू जनता दल से बीजेपी का गठजोड़ टूटा। तो खुद बीजेपी के नेताओं ने यही हश्र बिहार में होने का अंदेशा जताया। सो सीटों का तालमेल नीतिश और बीजेपी का रिश्ता तय करेगा। सातवां- कश्मीर की स्वायत्तता की फिर से उठ रही मांग। यों स्वायत्तता की मांग कोई नई बात नहीं। नेशनल कांफ्रेंस ने 1996 के विधानसभा चुनाव में स्वायत्तता को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया। दो तिहाई बहुमत से सत्ता में आई। तो इस मसले पर डा. कर्ण सिंह की रहनुमाई में कमेटी बना दी। बाद में कमेटी की सिफारिशों पर राज्य विधानसभा ने स्वायत्तता प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। पर एनडीए की सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस की सरकार होने के बाद भी केंद्र सरकार ने चार जुलाई 2000 को स्वायत्तता प्रस्ताव नामंजूर कर दिया। प्रस्ताव को देश की एकता के खिलाफ बताया गया। अब फिर जम्मू-कश्मीर में एनसी की सरकार। अबके भी फारुक अब्दुल्ला केंद्र सरकार में साझीदार। आठवां- किसान समस्या। नौवां- तेलंगाना। जिसकी आग नहीं बुझ रही। और आखिरी- सरकार के कामकाज के तौर-तरीकों पर निगरानी। ताकि कहीं चूक हो, तो सरकार को बेनकाब कर सकें। यों बीजेपी ने जिम्मेदार विपक्ष के नाते संसद में इन मुद्दों पर सरकार को सुझाव देने का भी एलान किया। अब आपने दस का दम देख लिया होगा। सो सोचो, ऐसे कौन से मुद्दे, जिन पर बीजेपी ने बीते साल सवाल नहीं उठाए? कुल मिलाकर बीजेपी में नएपन की उमंग। सो साफ-सफाई कर पुराने मुद्दे को ही नए साल का संकल्प बना लिया। पर बीजेपी खुद के झगड़ों से कितना दूर रह पाएगी। नितिन गडकरी ने चापलूसी और गुलदस्ते पर पाबंदी लगाई। पर नंबर बढ़ाने वाले कहां मानते। तभी तो साहिब सिंह के बेटे प्रवेश वर्मा ने गडकरी को चांदी का मुकुट पहना दिया। गडकरी ने खुशी-खुशी पहन भी लिया। अब खुद गडकरी ने नई बात कह दी। यों मीडिया से दूरी बनाने की बात कर रहे थे। पर दिल्ली में नए-नए। सो पहचान बढ़ाने में जुटे। एक टीवी इंटरव्यू में खुलासा कर दिया। आडवाणी तो नरेंद्र मोदी को अध्यक्ष बनाना चाह रहे थे। पर मोदी ने दिल्ली आने से इनकार कर दिया। अब गडकरी उवाच आडवाणी की सत्ता को चुनौती या कुछ और। यह तो गडकरी और मोहन भागवत ही जानें। पर असली खेल तब शुरू होगा। जब गडकरी अपनी नई टीम का एलान कर देंगे। तभी मालूम पड़ेगा, बीजेपी मनमोहन सरकार को दस का दम दिखाएगी। या अपने झगड़ों में दम तोड़ेगी। पर नया अध्यक्ष, नया साल। सो बीजेपी नई-नई दिख रही। अब नए साल के संकल्प पर वाकई बीजेपी आगे बढ़े। तो वॉचडॉग कहलाए। अपने लेफ्ट वालों के पास अब कुछ बचा नहीं। सो कोई संकल्प नहीं लिया। पर पीएम को चि_ïी लिख दी। ताकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी को देश प्रेम दिवस घोषित किया जा सके। अब कोई पूछे, जब मनमोहन सरकार को पिछले टर्म में लेफ्टिए उंगली पर नचा रहे थे। तब ऐसा क्यों नहीं कराया? अब बंगाल में डूब रहे। तो नदी किनारे लोटा लेकर नहा रहे। पर कांग्रेस को देखिए। नया साल था। तो सोनिया गांधी सपरिवार लक्षद्वीप में छुट्टïी मना रहीं। सो संकल्प कौन लेगा। वैसे भी कांग्रेस का सितारा खुद-ब-खुद बुलंद हो रहा। तो नए संकल्प की क्या जरूरत। यानी न्यू ईयर रिजोल्यूशन- कांग्रेस मार रही खर्राटे, बीजेपी करेगी पहरेदारी।
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01/01/2010