Thursday, May 13, 2010

अब तो नेता खुद ही एक-दूसरे को जानवर मानने लगे

अपने शहरी विकास मंत्रालय ने सोमवार को साफ-सुथरे शहरों की रपट जारी की थी। तो चंडीगढ़ अव्वल आया। तब किसी ने सोचा भी न होगा, एक दिन बाद ही चंडीगढ़ राजनीतिक गंदगी के लिए सुर्खियों में आएगा। पर संयोग कहें या कुछ और, बुधवार को बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने चंडीगढ़ को इसका हिस्सा बना दिया। चंडीगढ़ में गडकरी की पहली रैली थी। पर जोश में ऐसा होश खोया, लालू-मुलायम जैसे क्षेत्रीय दिग्गजों को कुत्ता बता गए। सोनिया गांधी का तलवा चाटने वाला कह दिया। सो राजनीतिक भूचाल मचा। तो गडकरी ने जो उगला था, फौरन निगल लिया। विरोधियों की धार तेज न हो, सो हाजमा ठीक करने को माफी भी मांग ली। पर गडकरी की दलील देखो, लालू-मुलायम को कुत्ता नहीं कहा। अलबत्ता मुहावरे का इस्तेमाल किया। पर गडकरी ने भाषाई मर्यादा तोड़ी भी, तो लालू-मुलायम जैसों के खिलाफ। सो लालू ने फौरन जवाब दिया- ऐसा मुहावरा संघ की डिक्शनरी में होता होगा। उन ने गडकरी को संस्कारों का ऐसा सबक सिखाने का खम ठोका, जिससे गडकरी कभी ऐसी भाषा का इस्तेमाल न कर सकें। अब सोचो, लालू-मुलायम संस्कार सिखाएंगे, तो गडकरी का क्या होगा? पर मुलायमवादी कोर्ट में घसीटने की तैयारी कर रहे। कांग्रेस ने तो गडकरी की राजनीतिक हैसियत पर ही सवाल उठा दिए। शकील अहमद और मनीष तिवारी बोले- गडकरी अपने पद के लिए फिट नहीं। खुद भी ऐसा मान चुके, सो ताजा टिप्पणी उनकी संकीर्ण मानसिकता की परिचायक। यानी राजनीति में मौके के हिसाब से नैतिकता और मर्यादा तय होने लगीं। गडकरी की टिप्पणी को लालू ने लोकतंत्र को कलंकित करने वाला बताया। तो कोई पूछे, चौबीस अगस्त 2006 को लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर लोकसभा में लालू-प्रभुनाथ ने किसका नाम रोशन किया था? मां-बहन की गाली से लेकर किसी राहगीर को दोनों एक-दूसरे का बहनोई बता रहे थे। सदन में जमकर हाथापाई हुई थी। लोकसभा का हालिया किस्सा ही देख लो। बीजेपी के अनंत कुमार ने लालू को गद्दार कह दिया। पर खुद माफी मांगने को तैयार नहीं हुए। सो सुषमा स्वराज ने सदन में माफी मांगी। तृणमूल के सुदीप बंदोपाध्याय ने माकपाई वासुदेव आचार्य पर अभद्र टिप्पणी कर दी। तो विपक्षी खेमे के सभी नेता सदन में नैतिकता झाडऩे लगे। पर भाषाई मर्यादा बेलगाम होने के किस्से यहीं खत्म नहीं। जब एनडीए सत्ता में था, 2004 में चुनावी शंखनाद हुआ। तो प्रमोद महाजन ने सोनिया गांधी की तुलना मोनिका लेविंस्की से की थी। नरेंद्र मोदी ने राहुल को जर्सी बछड़ा, तो सोनिया को इटली की.... कह दिया था। सो तब कांग्रेस नैतिकता का पाठ पढ़ा रही थी। यों तब वाजपेयी राज था, सो वाजपेयी ने अपने नेताओं को फटकार लगाने में तनिक भी देर नहीं की थी। फिर गुजरात चुनाव में मर्यादा की हदें खूब लांघी गईं। सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा। दिग्विजय सिंह ने हिंदू आतंकवाद का जुमला दिया। तो जवाब में मोदी ने भी कांग्रेसियों को सोहराबुद्दीन जैसों का पनाहगार बता दिया। अब बुधवार को सिर्फ गडकरी ने नहीं, मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने लोकलाज की परवाह नहीं की। यों गडकरी की भावना सोलह आने सही। लालू-मुलायम ने निजी स्वार्थ की खातिर जिस तरह गिरगिट की तरह रंग बदले। उसे जनता की राजनीति तो नहीं कह सकते। एटमी डील हो या महंगाई पर कटौती प्रस्ताव, लालू-मुलायम सुर बदल सत्ता की गोद में जाकर बैठ गए। अब लालू-मुलायम की राजनीति सीमित दायरे में। वन मैन आर्मी वाली पार्टी का वैसे भी कब, क्या स्टैंड होगा, मालूम नहीं। पर गडकरी से ऐसी जुबान की उम्मीद नहीं थी। सो बाद में उन ने माफी मांग ली। पर मध्य प्रदेश में कांग्रेसी एमएलए मर्यादा का क, ख, ग भी भूल गए। स्वर्णिम मध्य प्रदेश के नाम पर विधानसभा का विशेष सत्र चल रहा। पर कांग्रेसी सत्र का बॉयकाट कर रहे। विधानसभा की सीढ़ी पर धरना दे रहे। बुधवार को बीजेपी की एमएलए ललिता यादव थोड़ी देर से विधानसभा पहुंचीं। तो एक कांग्रेसी एमएलए ने चुटकी ली, इतनी लेट हो गईं, कैसे स्वर्णिम मध्य प्रदेश बनेगा। बीच में दूसरे ने टिप्पणी कर दी, ब्यूटी पार्लर में देर हो गई होगी। तीसरे ने जो कहा, उसे लिख नहीं सकते। सो बात विधानसभा स्पीकर ईश्वर दास रोहाणी तक पहुंची। सदन में ललिता रोईं। तो चैंबर में स्पीकर भी फूट-फूट कर रोए। फिर भी कांग्रेस ने गुरुवार को मध्य प्रदेश की घटना पर चुप्पी साधी। पर गडकरी को नैतिकता सिखा रही। आखिर यह राजनीति की कैसी मर्यादा? एक वक्त था, जब नेहरू अपने विरोधियों के खिलाफ चुनाव में या तो उम्मीदवार नहीं देते थे या कमजोर उम्मीदवार उतारते थे। वाजपेयी तक मर्यादा विरोधी और शत्रु में फर्क रहा। पर अब राजनीति निजी रंजिश वाली हो चुकी। राजनीतिक दलों की विचारधारा मर चुकी। सो सिर्फ वोट के लिए सारे तिकड़म हो रहे। तभी तो अनंत कुमार हों या लालू-मुलायम-सुदीप-मणिशंकर जैसे दिग्गज नेता। जिनका राजनीतिक कैरियर दो-तीन दशक पुराना हो चुका। पर स्तर गिर चुका। अब तो बड़े मियां ही सुभान अल्लाह। सोचो, छोटे मियां क्या करेंगे। कलराज मिश्र ने सही फरमाया, नेता संयम में रहकर भाषा का प्रयोग करें, क्योंकि नेता जनता से जुड़ा होता है और जनता पर नेता की बात का फर्क पड़ता है। सो बेहतर होगा, अब नेता जनता को दोष न दें। अब तो खुद नेता ही एक-दूसरे को जानवर बता रहे। तो सोचो, राजनीति का स्तर क्या रह गया।
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13/05/2010