Tuesday, November 2, 2010

तो भ्रष्टाचार पर चुप्पी भी कांग्रेसी ‘आदर्श’

तो कांग्रेस की एक दिनी चौपाल आधे दिन में ही निपट गई। एआईसीसी मेंबरों का चुनाव न होना था, न हुआ। अलबत्ता परंपरा के मुताबिक सोनिया गांधी को ही मनोनयन का हक मिल गया। सो सोनिया बोलीं, मनोनयन की डगर इतनी आसान नहीं। सो कुछ लोगों को घाटा उठाने को तैयार रहना होगा। पर लगे हाथ उन ने यह भी कह दिया, धीरज रखने से कांग्रेस में कभी-न-कभी नंबर आ ही जाता है। यों यह कितना सच, आप प्रणव दा से ही पूछ लो। अब सोनिया गांधी सीडब्लूसी का एलान चाहे जब करें। पर अधिवेशन में राहुल गांधी का जादू खूब चला। कांग्रेसियों ने तालकटोरा स्टेडियम को राहुलमय कर दिया। अब भले राहुल का बोलना एजंडे में नहीं था। पर राहुल बोलेंगे, ऐसा तय ही था। आप पुराना इतिहास पलट कर देख लें। पर हमेशा राहुल को वर्करों के अनुरोध पर बुलवाने की परंपरा। सो अबके भी राहुल ने उसी तरह माइक संभाला। पर फर्क, अब राहुल राजनीति के माहिर खिलाड़ी हो चुके। सो उन ने कांग्रेस को एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी और गरीबों का रहनुमा बताया। पिछले छह साल में राहुल ने जिस भरत की खोज की। उसकी कहानी सुन सभी कांग्रेसी गदगद दिखे। मां सोनिया का चेहरा तो गर्व से दमक उठा। राहुल ने दोहराया- ‘आज दो हिंदुस्तान। एक गरीब, तो दूसरा खुशहाल। अब दोनों हिंदुस्तान को जोडऩे की जरुरत और यह काम सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही कर सकती।’ यों राहुल की दो हिंदुस्तान वाली थ्योरी सोलह आने सही। पर कांग्रेस ही देश का गरीबों का उद्धार कर सकती, यह समझना मुश्किल। आजादी के 63 साल में करीब 50-55 साल कांग्रेस का ही राज रहा। चौथी लोकसभा तक तो करीब-करीब पूरे देश में कांग्रेस ही शासन में बनी रही। फिर राज्यों में थोड़ी-बहुत तस्वीर जरुर बदली। तो अब सवाल उठना लाजिमी, क्या देश से गरीबी दूर करने के लिए कांग्रेस को फिर से 50-55 साल चाहिए। खुद इंदिरा गांधी ने 1971 में गरीबी हटाओ का नारा देकर चुनावी जीत का डंका बजाया था। पर 40 साल बाद भी कांग्रेस वही चुनावी नारे दोहरा रही। तो इसके क्या मायने? अधिवेशन में राहुल के कसीदे सिर्फ मेंबरों ने ही नहीं, खुद सोनिया ने भी पढ़े। उन ने युवा कांग्रेस और एनएसयूआई में लोकतांत्रित तरीके से नेता चुनने को सराहा। राहुल का नाम लिए बिना बोलीं, युवाओं का रूझान तेजी से कांग्रेस की ओर हो रहा। पर जिस लोकतंत्र की दुहाई सोनिया ने दी। जरा उसका एक नमूना भी देख लें। यूपी में युवा कांग्रेस के चुनाव में महज एक वोट पाने वाले शैफ अली नकवी अब उपचुनाव में लखीमपुर सदर से कांग्रेस उम्मीदवार हो गए। नकवी के अब्बा जफर अली लखीमपुर से कांग्रेसी सांसद। सो राहुल गांधी की लोकतांत्रिक पहल की कलई तो ताजा उदाहरण ही खोल रहा। पर कांग्रेस की कथनी और करनी हमेशा से जुदा रही। तभी तो घोटालों नहीं, महाघोटालों के साए में कांग्रेस अधिवेशन हुआ। सोनिया-मनमोहन-राहुल-प्रणव ने भाषण तो खूब दिए। पर घोटालों-भ्रष्टाचार के आगे जुबां बंद ही रहे। अधिवेशन में कॉमनवेल्थ करप्शन के सिरमौर सुरेश कलमाड़ी और आदर्शवादी अशोक चव्हाण भी मौजूद थे। पर मंच से कोई संदेश नहीं आया। अपने मनमोहन तो सिर्फ सोनिया का गुणगान ही करते रह गए। यानी भ्रष्टाचार के मसले पर कांग्रेस ने अधिवेशन में ‘आदर्श’ चुप्पी साध ली। यों सोनिया ने अपने संबोधन में पर्यावरण पर राजीव गांधी के एक कथन को उद्धृत जरुर किया। जिसके मुताबिक, जब कभी पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, तब भारत के एक अंश का विनाश होता है। सो पर्यावरण का जिक्र आया, तो लगा, अब चव्हाण का आदर्श भी बताएंगी। अपने जयराम रमेश ने सोमवार को ही कह दिया था। आदर्श सोसायटी में पर्यावरण मानकों की अनदेखी हुई, सो कुछ फ्लोर ढहाए जा सकते। सचमुच आदर्श सोसायटी के कुछ फ्लोर नहीं, पूरी इमारत ढहा देनी चाहिए। कारगिल के वक्त सेनाध्यक्ष रहे वीपी मलिक ने तो इसे शर्म की इमारत करार दे यही सुझाव दिया। सेना अधिकारियों की मिलीभगत से मलिक बेहद व्यथित दिखे। पर क्या नेता ऐसा होने देंगे? शायद नहीं, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार तो राजनीति की जड़। सो कोई अपनी जड़े भला क्यों खोदेगा? आम आदमी की दुहाई तो सिर्फ वोट बटोरने का जरिया। सो सोनिया ने भ्रष्टाचार पर मौन साधा, तो महंगाई पर वही पहले जैसी चिंता। राज्यों के सिर ठीकरा फोड़ा। बोलीं- ‘कालाबाजारियों पर कार्रवाई करना राज्य की जिम्मेदारी।’ अब अगर सोनिया की दलील मान भी लें। तो सवाल, कांग्रेस शासित दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, असम, आंध्र जैसे राज्यों में महंगाई कम क्यों नहीं हो रहे? क्या वहां की सरकारें भी कालाबाजारियों से मिली हुई? यह सवाल खुद सोनिया के भाषण से उठ रहा। पर कांग्रेस हमेशा से अपनी ठसक भरी राजनीति के लिए जानी जाती। तभी तो सोनिया ने अयोध्या फैसले के मद्देनजर शांति समाधान की बात नहीं की। अलबत्ता बाबरी विध्वंस की याद दिला मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश की। पर ताजा फैसला तो जमीन विवाद में आया। कांग्रेस दोनों पक्षों में एकता के प्रयास कर सकती थी। पर हाईकोर्ट के फैसले से कांग्रेस को राजनीतिक उल्लू सीधा होता नहीं दिख रहा। सो दोनों मामलों को जोडक़र बयानबाजी कर रही। पर भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस के लिए गंभीर नहीं, क्योंकि इसमें कांग्रेसी झुलस रहे। सो भ्रष्टाचार पर अधिवेशन में चुप्पी मुद्दा बनी। बीजेपी ने हमला बोला। तो दिग्वििजय सिंह ने बेहिचक कह दिया। जरुरी नहीं हर मंच से भ्रष्टाचार की चर्चा हो। यानी कांग्रेस की जय हो। इतने बड़े अधिवेशन में भ्रष्टाचार पर न बोलना भी एक ‘आदर्श।’
------
02/11/2010