Tuesday, January 25, 2011

अराजक होता ‘तंत्र’, लुटता-पिटता ‘गण’

अंधा बांटे रेवड़ी, अपनों-अपनों को देय। सचमुच नेताओं ने अपने गणतंत्र को सठियाने को मजबूर कर दिया। सो गणतंत्र के इकसठ साल पूरे होने की पूर्व संध्या पर हर साल की तरह पद्म अवार्ड का एलान हुआ। तो मनमोहन सरकार ने अंधा और रेवड़ी की कहावत फिर चरितार्थ कर दी। गांव के लोगों को पेटू बताकर महंगाई से मुंह चुराने वाले योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया पद्म विभूषण हो गए। यानी देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मनमोहन ने अपने दोस्त को नवाज दिया। क्या महंगाई का ठीकरा गांव के गरीबों पर फोडऩा नागरिक सेवा कहलाता? वाजपेयी सरकार में सत्ता की चाबी घुमाने वाले बृजेश मिश्र भी मनमोहन राज में पद्म विभूषण हो गए। एटमी डील पर बीजेपी की नैया डुबो, मनमोहन को पार लगाया। सो देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिल गया। अब नागरिक सम्मान ऐसे बंटेंगे, तो गणतंत्र का क्या सम्मान होगा? सो संकटों से जूझ रहा अपना देश गणतंत्र के बासठवें साल में प्रवेश कर रहा। पर चुनाव में बेरंग हुआ विपक्ष अब तिरंगे से राजनीति का रंग ढूंढ रहा। तो सरकार ब्लैकमनी के मामले में दिल से ब्लैक दिख रही। गणतंत्र की पूर्व संध्या पर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने ब्लैकमनी पर सफाई पेश की। तो एक बार फिर काले चोरों का नाम बताने से इनकार कर दिया। पर दलील दी- जब आयकर विभाग जांच के बाद मुकदमा दायर करेगा। तो नाम खुद-ब-खुद सामने आ जाएंगे। यों प्रणव दा ने माना, पिछले 18 महीने में 15,000 करोड़ रुपए काले धन का पता चला। जिनसे 34,601 करोड़ रुपए की कर वसूली हुई। पर सवाल- क्या सिर्फ टेक्स चोरी की कार्रवाई से ही काला धन सफेद हो जाएगा? काले चोरों ने देश का धन चुराकर विदेशों में जमा किया। तो क्या यह देश के साथ अपराध नहीं? आखिर समझौते की ओट में चोरों का नाम छुपाने का क्या मतलब? अब प्रणव दा ने पांच सूत्री कार्य योजना का एलान किया। पर बीजेपी का आरोप- नाम खुला, तो कांग्रेस को परेशानी होगी। सो सरकार में काले धन पर संकल्प का अभाव। अगर सरकारें ठान लें, तो क्या कुछ नहीं हो सकता। बीजेपी की तिरंगा यात्रा को रोकने की उमर अब्दुल्ला ने ठान ली। सो मंगलवार को लखनपुर बार्डर पर ही यात्रा को रोक दिया। तमाम छोटे-बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। पर गिरफ्तारी के बाद सुषमा-जेतली ने तिरंगे की आन की खातिर खूब तेवर दिखाए। जेतली बोले- आजादी से पहले तिरंगा उठाने वालों को गिरफ्तार किया जाता था। अब जम्मू-कश्मीर में फिर वैसा ही हुआ। सुषमा ने क्रोध का इजहार करते हुए पूछा- हमारा अपराध क्या? हम तो तिरंगा फहराने आए थे। अलगाववादियों की चुनौती स्वीकार की। सो हमें सुरक्षा नहीं चाहिए। भले तिरंगा फहरा कर लाल चौक से हम जिंदा लौटें या मुर्दा। पर सरकार ने तिरंगे पर पहरा लगा अलगाववादियों को संरक्षण दिया। यों सुषमा की दलील सोलह आने सही। पर अपना फिर वही सवाल- लाल चौक पर तिरंगा फहरा लेने से क्या अलगाववाद खत्म हो जाएगा? क्या कश्मीर समस्या सुलझ जाएगी? अगर बीजेपी का जवाब हां, तो फिर सवाल- जम्मू-कश्मीर की सत्ता में भागीदार और केंद्र के छह साल के राज में हर साल झंडा फहरा कर अलगाववाद खत्म क्यों नहीं कर लिया? क्यों आडवाणी हुर्रियत वालों को बुलाकर मेज गोल-गोल करते रहे? कभी कोई नेता आम आदमी के लिए जिंदा या मुर्दा का संकल्प क्यों नहीं लेता? पर बात तिरंगा यात्रा की। तो गिरफ्तारी के बाद सीएम उमर अब्दुल्ला ने भी संदेश दिया। बोले- लाल चौक भारत का हिस्सा। पर शांति भंग नहीं होने दी जाएगी। उमर ने न सिर्फ बीजेपी की यात्रा रोकी। अलबत्ता अलगाववादियों को भी रोकने का बंदोबस्त कर रखा। श्रीनगर के लाल चौक पर जबर्दस्त पहरा। पर चोरी-छिपे बीजेपी के कुछ वर्कर श्रीनगर पहुंच चुके। सुषमा ने खुद इस बात का एलान किया। सो सबकी निगाह गणतंत्र दिवस पर। दिल्ली में राजनाथ सिंह राजघाट पर भूखे पेट धरना दिए बैठे। पर देश का आम आदमी ने कितनी रात भूख में गुजारी, क्या किसी नेता को सही आंकड़ा मालूम? तिरंगे का सम्मान हो, पर तीन रंग के सही अर्थ की तरह। वोट बैंक के लिए रंगों का मतलब नहीं बदलना चाहिए। पर अफसोस, इकसठ साल में ही नेताओं ने गणतंत्र का बैंड बजा दिया। मंगलवार को प्रणव दा ने ब्लैकमनी पर सफाई दी। बीजेपी ने तिरंगे पर रंग दिखाया। महाराष्ट्र के मनमाड़ में तेल माफियाओं ने मिलावट से रोकने वाले एडीएम को जिंदा जला दिया। तो न्याय व्यवस्था की लेटलतीफी, बच्चियों पर जुल्म से आहत उत्सव शर्मा ने गाजियाबाद कोर्ट के बाहर आरुषि के पिता राजेश तलवार पर फरसे से हमला कर दिया। इसी शख्स ने रुचिका गिरहोत्रा कांड के दोषी एसपीएस राठौड़ पर भी हमला किया था। सो अब भले उत्सव शर्मा की मानसिक हालत खराब बताई जा रही। पर अपने गणतंत्र के लिए यह सबक, कैसे इकसठ साल में ही दम घुट रहा। भ्रष्टाचार हो या गरीबी, पानी सिर से निकलने के बाद नया कानून बनाने का सुर्रा भर छोड़ दिया जाता। सो नेताओं की वजह से आज व्यवस्था से भी लोगों का भरोसा उठता दिख रहा। पद्म अवार्ड ने भी मंगलवार को इसका नमूना दिखा दिया। पिछली बार ओलंपिक में जीतने वाले तमाम खिलाडिय़ों को पद्म अवार्ड मिल गए। पर गांव का छोरा और कुश्ती में बाजी मारने वाला सुशील छूट गया था। सो अबके सरकार ने भूल सुधार कर ली। यानी सचमुच आज गणराज्य तो लुट-पिट रहा। तंत्र में बैठने वाले मलाई मार रहे।
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25/01/2011