Thursday, March 17, 2011

तो क्या ‘चौदहवीं के चांद’ पर लगा दाग नहीं धुलेगा?

भ्रष्टाचार का भूकंप अब मनमोहन सरकार की सुनामी बन गई। नित-नए झटकों से सरकार को दो-चार होना पड़ रहा। सीडब्ल्यूजी, टू-जी, आदर्श और थॉमस के बाद अब विकीलिक्स की फांस गले पड़ गई। अमेरिका से एटमी डील की खातिर मनमोहन ने सरकार दांव पर लगा दी थी। बाईस जुलाई 2008 को मनमोहन ने विश्वासमत जीता। पर लोकतंत्र का मंदिर दागदार हो गया। अब विकीलिक्स ने खुलासा किया, कैसे बहुमत के लिए सांसदों की खरीद-फरोख्त हुई। कथित तौर पर कैप्टेन सतीश शर्मा का करीबी नचिकेता कपूर अमेरिकी दूतावास के अधिकारी से मिला था। नोटों से भरे बैग दिखा बतलाया था- सांसदों को खरीदने के लिए 50-60 करोड़ रुपए साथ लेकर चल रहे। यों नचिकेता और सतीश शर्मा का आरोपों से इनकार। पर सतीश शर्मा से जान-पहचान की बात नचिकेता ने कबूल की। विकीलिक्स के खुलासे में वोट के बदले निजी विमान भी रिश्वत में देने का ऑफर हुआ था। अजित सिंह की रालोद के सांसदों को खरीदने के लिए 40 करोड़ रुपए दिए गए। ये सारे खुलासे विकीलिक्स ने अमेरिकी दस्तावेज के आधार पर किए। सो गुरुवार को संसद में जमकर हंगामा हुआ। कांग्रेसियों को तो सांप सूंघ गया। एटमी डील पर मनमोहन की वैतरिणी पार लगाने वाले मुलायम भी विपक्ष के साथ सुर मिला जांच की मांग करने लगे। पर भ्रष्टाचार रूपी भूकंप के झटके खा रही सरकार के लिए यह खुलासा मारक साबित हो रहा। पहली बार समूचे विपक्ष ने सीधे मनमोहन सिंह से इस्तीफा मांगा। आडवाणी-सुषमा समेत सभी विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने दो-टूक कहा- अब यूपीए सरकार को शासन में बने रहने का कोई हक नहीं। यों विपक्ष की मांग सौ फीसदी सही। पर विकीलिक्स का खुलासा कुछ नया नहीं। जब 22 जुलाई 2008 को मनमोहन ने अपने राजनीतिक गुरु नरसिंह राव की तरह ही विश्वास मत का इतिहास रचा। तब बीजेपी ने क्या किया? भले सबूत न हों, पर इसमें कोई शक नहीं कि विश्वास मत के लिए सांसदों की खरीद-फरोख्त हुई। सदस्यता और निष्ठा को दांव पर लगाकर 19 सांसदों ने यों ही पाला नहीं बदला होगा। क्रॉस वोटिंग करने वाले गैर कांग्रेसी दलों के सांसद 15वीं लोकसभा में कांग्रेसी टिकट पर चुनकर आए। भ्रष्टाचार पर कांग्रेस के डीएनए का एक और नमूना देखिए। सिर्फ वोट के बदले नोट कांड ही नहीं, सवाल के बदले घूस कांड में लोकसभा से बर्खास्त तबके बसपाई सांसद राजा रामपाल 15वीं लोकसभा में कांग्रेस के सांसद हैं। सो राजनीति बेहयाईपन की कोई सीमा रेखा नहीं। जिस चौदहवीं लोकसभा के विश्वासमत पर पंद्रहवीं लोकसभा में हंगामा बरपा। उस 14वीं लोकसभा में सबसे अधिक बीजेपी के सांसद भ्रष्ट थे। ऑपरेशन दुर्योधन, चक्रव्यूह, वोट के बदले नोट तक बीजेपी के कुल सांसद धरे गए। यानी उस लोकसभा में बीजेपी के कुल 138 सांसद से गुणा-भाग करें, तो औसतन बीजेपी का हर नौवां सांसद भ्रष्ट था। सो वोट के बदले नोट कांड के बाद आडवाणी ने ठोक-बजाकर उम्मीदवार उतारने का एलान किया। बीजेपी ने अपनी चुनाव समिति की मीटिंग टाल नए मापदंड तय किए- अब जिताऊ से अधिक टिकाऊ को अहमियत देंगे। ताकि चुनकर आने के बाद सांसद बिकाऊ न बनें। सचमुच कोई मजबूत विपक्ष होता, तो सर्कस बन चुकी मनमोहन सरकार का तख्ता पलट चुका होता। पर लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी अंदरूनी कलह की शिकार रही। अध्यक्ष और पोल मैनेजर खुलेआम लड़ते रहे। सो भ्रष्टाचार, आतंकवाद और महंगाई जैसे तमाम मुद्दों के बावजूद मनमोहन सरकार सत्ता में वापस लौटी। विपक्ष न तो विकल्प के तौर पर मैदान में खड़ा हो सका और ना ही मनमोहन सरकार को घेर सका। सो कांग्रेस न सिर्फ सत्ता में लौटी, अलबत्ता मजबूत होकर लौटी। पर विपक्ष की कमजोरी ने कांग्रेस की जीत में नशा घोल दिया। सो सत्ता के नशे में गलतियों का पहाड़ खड़ा हो गया। कांग्रेस को इल्म तब हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने हथौड़ा मारा। अब विकीलिक्स के ताजा खुलासे पर कांग्रेस और प्रणव दा की दलील देखिए। चूंकि यह मामला 14वीं लोकसभा का, सो 15वीं लोकसभा में डिस्कस नहीं हो सकता। मौजूदा सरकार सिर्फ 15वीं लोकसभा के लिए जिम्मेदार, 14वीं के लिए नहीं। प्रणव दा ने खुलासे की न पुष्टि की, न खंडन किया। पर इसके लिए भी दलील देखिए- दूतावास को राजनयिक संरक्षण हासिल, सो सरकार के लिए पुष्टि या खंडन करना संभव नहीं। पर विपक्ष के नेता अरुण जेतली ने पलटवार किया। बोले- चूंकि यह अपराध भारत में हुआ, इसमें भारतीय शामिल थे। सो राजनयिक छूट का मुद्दा नहीं उठता। जेतली और प्रणव दा के बीच जमकर तकरार हुई। पर क्या 14वीं के चांद पर लगा यह दाग नहीं धुलेगा? भले अजित सिंह की पार्टी के सांसदों ने सरकार के खिलाफ वोट दिया हो। पर पैसे के लेन-देन से अभी इनकार नहीं। लोकसभा में 22 जुलाई 2008 को चार बजकर चार मिनट पर बीजेपी के तीन सांसद अशोक अर्गल, महावीर भगोरा और फग्गन सिंह कुलस्ते ने अमर सिंह एंड कंपनी की ओर से दिए गए एक करोड़ के नोटों की गड्डियां सदन में लहराईं। बाद में संसद की जांच कमेटी बनी, तो नोट लहराने वाले ही अपराधी हो गए। अमर सिंह को क्लीन चिट मिल गई। पर सवाल- पाला बदलने वाले सांसदों ने क्या नि:स्वार्थ वोट दिया? एटमी डील की खातिर मनमोहन ने साम, दाम, दंड, भेद सब लगा दिए। विश्वास मत से पहले ही गुरुदास दासगुप्त ने खुलासा किया था- 25 करोड़ में बिक रहे सांसद।
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17/03/2011