Thursday, March 31, 2011

रिकार्ड पंद्रहवीं जनगणना और 15वीं लोकसभा का

तो अपनी जनसंख्या के शुरुआती आंकड़े जारी हो गए। पर जनसंख्या से पहले बात क्रिकेट और कूटनीति की। भारत-पाक की क्रिकेट कूटनीति का सूत्रधार अमेरिका गदगद हो गया। भारत में अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर बोले- मीडिया जिसे क्रिकेट कूटनीति कह रहा, हम उसके साथ आगे बढऩे के लिए दोनों देशों की सराहना करते हैं। यानी मनमोहन-गिलानी वार्ता पर अमेरिकी मोहर लग गई। सो अब जब क्रिकेट वल्र्ड कप समापन की ओर, तो मनमोहन केबिनेट ने तोहफा थमा दिया। आईसीसी को वल्र्ड कप से होने वाली आमदनी में टेक्स छूट दे दी। शनिवार को वल्र्ड कप का शोर थम जाएगा। फिर आईपीएल की गूंज होगी। सो क्रिकेट की बातें होती रहेंगी। फिलहाल बात जनसंख्या के ताजा आंकड़ों की। तो अब भारत की आबादी एक अरब 21 करोड़ हो गई। यानी पिछले दस साल में देश की आबादी कुल 18 करोड़ बढ़ी। अब भारत और चीन की आबादी का अंतर 23 करोड़ 80 लाख से घटकर महज 13 करोड़ 10 लाख रह गया। पर राहत की बात यह, पिछली जनगणना के मुकाबले अबके जनसंख्या वृद्धि की दर में करीब चार फीसदी की कमी आई। पहले यह दर 21.5 फीसदी थी, अब 17.6 रह गई। देश का कुल लिंगानुपात 1971 से अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 940 पर पहुंच गया। यानी पिछली जनगणना के मुकाबले सात का इजाफा। अब एक हजार पुरुषों के मुकाबले 940 महिलाएं। पर विकास की अंधाधुंध दौड़ में भागते भारत को जनसंख्या का यह ताजा आंकड़ा आईना भी दिखा रहा। छह साल की उम्र तक के बच्चों के लिंगानुपात में गिरावट बेडिय़ों में जकड़े समाज की कड़वी सच्चाई। बच्चों का लिंगानुपात आजाद भारत के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। कुल 3.08 फीसदी की कमी दर्ज की गई। जिनमें बालकों की संख्या में 2.42 फीसदी की कमी, तो बालिकाओं की संख्या में 3.80 फीसदी की कमी। यानी राज्य और केंद्र स्तर पर चल रही लाडली योजनाएं जमीन पर कम, कागजों में अधिक चल रहीं। भ्रूण हत्या की कड़वी सच्चाई भी आंकड़ों में जगजाहिर। पंजाब, हरियाणा में लिंगानुपात बढ़ा, पर अभी भी देश में सबसे कम। हरियाणा के झज्जर जिले में तो 774 का ही अनुपात। महिलाओं की साक्षरता दर में दस फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। पर तमाम आंकड़ों के बावजूद अपने देश में जनसंख्या नियंत्रण की कोई स्पष्ट नीति नहीं। फिर भी सुकून, 1911-21 का अपवाद छोड़ दें, तो यह पहला मौका, जब पिछले दशक की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई। पर संयोग कहिए या कुछ और, भारत की पंद्रहवीं जनगणना जनता की जागरूकता को दर्शा रही। तो देश की पंद्रहवीं लोकसभा भ्रष्टाचार के मामले में परचम लहरा रही। जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार घटी, पर राजनेताओं के भाव बढ़ गए। जब 1993 में नरसिंह राव की सरकार खतरे में थी। तो महज 45 लाख में सांसद बिके। लालू ने सात साल में 900 करोड़ का चारा घोटाला किया। बोफोर्स दलाली कांड भी याद करिए। तो महज 64 करोड़ का मामला था। फिर सांसदों की महामंदी का भी एक दौर आया, जब 2005 में अपने 11 सांसद चवन्नी-अठन्नी में बिकते धरे गए। पर जैसे ही जुलाई 2008 में मनमोहन ने विश्वास मत हासिल करने की ठानी। सांसदों के रेट 25 करोड़ तक पहुंच गए। कई सांसदों को तो निजी विमान का भी ऑफर हो गया। रही-सही कसर अपने ए. राजा ने पूरी कर दी। जनसंख्या के आंकड़े तो हमने गिन लिए। पर टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की रकम को गिनना फिलहाल अपनी जांच एजेंसी के बूते से भी बाहर। यों सीएजी ने जो 1.76 लाख करोड़ का आंकड़ा दिया, उसे आमजन की भाषा में तोड़ें। तो अमूमन एक नील 76 खरब रुपए का बनता। यानी आम आदमी की तो छोडि़ए, शायद मशीन भी इन रुपयों को गिनते-गिनते हांफ जाए। कॉमनवेल्थ घोटाले का भी आंकड़ा 70,000 करोड़ बताया जा रहा। आदर्श जैसी तो कई मीनारें घोटाले की नींव पर खड़ीं। सोचो, अगर इसरो की एस- बैंड डील रद्द न होती, तो राजा का घोटाला पीछे छूट जाता। अब टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की कड़ी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। कॉमनवेल्थ पर शुंगलू रिपोर्ट ने शीला दीक्षित, उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना और सुरेश कलमाड़ी के चेहरे से नकाब हटा दिया। शीला ने तो फौरन केबिनेट मीटिंग बुला कमेटी की रपट खारिज कर दी। सो यह चोरी और सीना जोरी नहीं, तो और क्या? पीएम की बनाई कमेटी को सीएम शीला ने ठुकरा दिया। पर सवाल- जब शुंगलू रपट को आधार बना प्रसार भारती के सीईओ बी.एस. लाली हटाए गए। तो शीला पर पीएम चुप क्यों? अगर शीला-खन्ना-कलमाड़ी बेदाग, तो भला लाली को सजा क्यों? अब जब भ्रष्टाचार पर दोहरे मापदंड होंगे, तो भला देश की आबादी की चिंता क्यों होगी? सो अब जनता खुद ही जागरूक हो रही। जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट होने लगी। पर मनमोहन सरकार की विकास दर ने नेताओं की जेब को ऐसा झोला बना दिया, जो कभी भरता नहीं। सो पंद्रहवीं जनगणना और पंद्रहवीं लोकसभा का रिकार्ड आपके सामने।
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31/03/2011