Wednesday, January 19, 2011

‘मनमोहिनी रैसिपी’ और जायकेदार केबिनेट!

जब दाल में नमक अधिक हो जाए, तो आप क्या करते हैं? यही ना, पानी गरम किया, दाल में डाला और घोंट दिया। अपने मनमोहन ने केबिनेट फेरबदल में यही काम किया। भ्रष्टाचार और महंगाई ने 20 महीने में ही मनमोहन की दूसरी पारी का जायका बिगाड़ दिया। सो केबिनेट को जायकेदार बनाने की रैसिपी सचमुच लाजवाब। मनमोहन केबिनेट में तीन नए चेहरे शामिल किए गए। तो 32 मंत्रियों के विभाग बदले गए। पांच का प्रमोशन हुआ। पर छुट्टी किसी की नहीं हुई। यानी इतने बड़े फेरबदल में सिर्फ छह के शपथ ग्रहण से ही समारोह निपट गया। अब जरा मनमोहन की ‘केबिनेट रैसिपी’ देखिए। फाइव स्टार मुंबइया कल्चर के विलास राव देशमुख अब गांव के विकास का काम देखेंगे। तो बीस महीने से गांव का काम देख रहे सी.पी. जोशी अब सडक़ नापेंगे। सडक़ वाले कमलनाथ शहर चले गए। शहर वाले जयपाल रेड्डी अब पेट्रोल का कुआं देखेंगे। तो पेट्रोलियम में रहते कंपनियों का प्रवक्ता बने मुरली देवड़ा अब देश की सभी कंपनियों के मामले देखेंगे। महंगाई पर ऊल-जलूल बयान देने वाले कांग्रेसी कोटे के राज्यमंत्री के.वी. थॉमस अब स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री हो गए। सोचो, जब पवार के जूनियर रहते इतना कैरा-कैरा बयान दिया। अब तो पवार नहीं, पॉवर एकला मिल गया। सो सोचो, क्या करेंगे थॉमस। प्याज की कीमत बढ़ी। तो थॉमस ने कहा था- इसमें कोई हैरानी की बात नहीं। इस साल प्याज की बढ़ी। पिछले साल आलू की बढ़ी थी। पर थॉमस ने यह नहीं बताया, अगले साल किसकी बढ़ेगी। सो मनमोहन ने फौरन प्रमोशन दे दिया। अब आप अपनी जेब को पकडक़र अगले साल का इंतजार करिए। यूपी चुनाव को फोकस कर अहम बदलाव हुए। स्वतंत्र प्रभार के दो राज्यमंत्री सलमान खुर्शीद और श्रीप्रकाश जायसवाल को अब केबिनेट रेंक मिल गया। तो केबिनेट मंत्री रह चुके बेनीप्रसाद वर्मा नए चेहरे के तौर पर शामिल किए गए। पर स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया। वर्मा पर सपा डोरे डाल रही थी। सो साधने के लिए कांग्रेस ने मंत्रालय को साधन बनाया। यों रुतबा घटने से बेनीप्रसाद वर्मा नाराज या खुश, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। पर फेरबदल में मनमोहन ने खेल मंत्री एम.एस. गिल की गिल्ली उड़ा दी। अब गिल खेल के मैदान से हटकर सांख्यिकीय आंकड़ों की गिनती करेंगे। क्षत्रिय नेता वीरभद्र सिंह की वीरता को धता बता फौलाद (इस्पात) से सूक्ष्म-लघु व मध्य उपक्रम मामलों का मंत्री बना दिया। कभी आंख दिखाने वाले करुणानिधि अबके करुण क्रंदन करते रह गए। मनमोहन ने सहयोगियों के साथ वैसा ही सलूक किया, जैसा कांग्रेस का डीएनए। केबिनेट फेरबदल में एनसीपी को ठगा, तो तृणमूल और डीएमके को ठेंगा दिखाया। गठबंधन में छोटे दलों को उल्लू कैसे बनाया जाता, यह कोई कांग्रेस से पूछे। तृणमूल-डीएमके को कुछ नहीं मिला। बेचारे टी.आर. बालू बाट जोहते रह गए। सहयोगियों के मामले में मनमोहन के तेवर ने उम्मीद दिखाई। शरद पवार का वजन कम किया। तो बदले में प्रफुल्ल पटेल को ठग लिया। नागरिक उड्डयन मंत्रालय से हटा नाम का भारी उद्योग मंत्रालय थमा दिया। अब जरा केबिनेट फेरबदल की राजनीतिक त्रिकोणमिति भी देखिए। अपनों को घोटा, सहयोगियों को लपेटा और यूपी का चुनावी कोटा। पंच सितारा कल्चर वाले विलासराव देशमुख गांव में विकास के साथ-साथ पंचायत भी करेंगे। पर इस दांव से पवार को साधने की भी रणनीति। रोजगार गारंटी का मॉडल यूपीए सरकार ने महाराष्ट्र से लिया। शरद पवार कृषि मंत्रालय संभाल रहे। सो अब गांव-गरीब के मामले पर महाराष्ट्र के दो क्षत्रप आमने-सामने। यानी गांव के विकास पर महाराष्ट्र की राजनीति भारी। पर इस भारी-भरकम खेल में हल्के पड़ गए सी.पी. जोशी। यों सडक़ परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय का रुतबा भी कम नहीं। पर सोनिया-राहुल के ड्रीम प्रोजैक्ट वाली मिनिस्ट्री से विदाई खुद में एक अहम सवाल। यों जोशी का गांव से सडक़ तक का सफर सिर्फ मराठा राजनीति का शिकार नहीं। अलबत्ता सी.पी. जोशी प्रचार में पिछड़ गए। यूपीए-वन में ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद ने नरेगा में जितना बांटा नहीं, उससे अधिक बांचा। पर यूपीए-टू में जोशी ने जितना बांटा, उसका आधा भी नहीं बांच पाए। सो गांव से सडक़ नापने की बारी आई। तो जोशी बोले- सोनिया-मनमोहन ने चुनौतीपूर्ण दायित्व सौंपा। सो आशा पर खरा उतरने का भरसक प्रयास करेंगे। देश में गुणवत्ता वाली सडक़ों का निर्माण मेरी प्राथमिकता होगी। अब सडक़ों की गुणवत्ता तो काम के बाद दिख ही जाएगी। फिलहाल सरकार की गुणवत्ता दिख गई। महंगाई-भ्रष्टाचार के महामौसम में मनमोहन ने केबिनेट बदलाव की पहल की। तो आस बंधी- कुछ ऐसा होगा, सब मोहित हो जाएंगे। पर मनमोहन के बदलाव से भी बीजेपी नहीं बदली। बोली- मनमोहन में किसी को हटाने की हिम्मत नहीं। सचमुच फिलहाल मनमोहन ने डीएमके के दबाव को दबा दिया। पर लगे हाथ भरोसा भी दिया- बजट सत्र के बाद फिर होगा फेरबदल। यानी तब तक तमिलनाडु चुनाव में डीएमके की औकात सामने आ जाएगी। फिर कांग्रेस तेल और तेल की धार देख तोल-मोल करेगी। सो मनमोहन-टू के पहले फेरबदल में परफोर्मेंस नहीं, पॉलिटिक्स हावी रही। अब सोनिया गांधी की टीम बनने के बाद मनमोहन की टीम की असली तस्वीर सामने आएगी। पर फिलहाल पहले फेरबदल में मजबूरी की मूरत साबित हुए मनमोहन। अब आगाज ऐसा, तो अंजाम क्या होगा?
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19/01/2011