Wednesday, February 9, 2011

दुख की एक और दुखान्तिका!

क्या अपना तंत्र साठ साल में ही नाकारा हो चुका? क्या बदलते जमाने के साथ तंत्र कदमताल करने में सक्षम नहीं? या फिर तंत्र में बैठे लोग काम ही नहीं करना चाहते? मासूम आरुषि का मर्डर हुआ, पर किसने किया, मिस्ट्री बनी हुई। सो सवाल- क्या अब देश में अपराधी अपनी जांच एजेंसियां ही नहीं, सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई से भी अधिक शातिर हो गए? अगर सचमुच ऐसी बात, तो अपनी व्यवस्था की हालत वैसी ही, जैसे महाभारत काल में शर-शैया पर पड़े भीष्म पितामह की। सीबीआई ने आरुषि केस को बंद करने की अर्जी दी थी। पर बुधवार को गाजियाबाद की विशेष अदालत ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट तो नहीं मानी। अलबत्ता उसी रिपोर्ट को आधार बना आरुषि के मां-बाप यानी तलवार दंपति को आरोपी मान लिया। अदालत के फैसले से हताश तलवार परिवार अब ऊपरी अदालत में चुनौती देगा। ऊपरी अदालतों में केस क्या मोड़ लेगा, यह तो वक्त बताएगा। पर सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट कितनी भरोसेमंद? जब 15 मई 2008 को आरुषि की हत्या हुई, तो यूपी पुलिस ने शुरुआती जांच में ही पिता राजेश तलवार को मुजरिम ठहरा दिया। तलवार 23 मई को गिरफ्तार कर लिए गए। पर यूपी पुलिस की जांच में मीन-मेख निकाला जाने लगा। तो आजिज होकर मायावती सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी। पहली जून 2008 से सीबीआई की भारी-भरकम 25 मेंबरी टीम ने जांच शुरू कर दी। जांच टीम का मुखिया यूपी काडर से ही सीबीआई में पदस्थ अरुण कुमार को बनाया गया। शुरुआती जांच में ही यूपी पुलिस की परतें खुलने लगीं। सीबीआई ने आरुषि की मां नूपुर तलवार का दो बार लाई डिटेक्ट टेस्ट किया। राजेश तलवार का भी लाई डिटेक्शन टेस्ट हुआ। पर दोनों में ही कोई नतीजा नहीं निकला। फिर तीन नौकरों की गिरफ्तारी हुई। बारह जुलाई को राजेश तलवार जमानत पर रिहा हुए। चार सितंबर 2009 को सीएफएसएल हैदराबाद ने माना कि आरुषि के जांच सैंपल बदले गए हैं। लैबोरेट्री में भेजे गए कपड़े पर भी खून के धब्बे नहीं थे। अरुण कुमार की रहनुमाई वाली जांच टीम ने तलवार दंपति को क्लीन चिट दे दी। पर यूपी काडर के अरुण वापस बुला लिए गए। तो नई टीम ने जांच का जिम्मा संभाला। पर अंधेरे में अधिक तीर चलाने से बचते हुए सीबीआई ने यूपी पुलिस को ही आदर्श बना लिया। यानी लौटकर ‘सीबीआई’ घर को आ गई। यूपी पुलिस ने शुरुआती जांच में ही तलवार दंपति पर जो शक जताया, आखिरकार अल्टी-पल्टी मारते सीबीआई ने वही राग अलाप दिया। सो सीबीआई की पहली रिपोर्ट पर भरोसा करें या आखिरी रपट पर? सीबीआई ने रपट में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर तलवार दंपति को आरोपी ठहराया। सो राजेश तलवार की भाभी वंदना तलवार ने बुधवार को सवाल उठाया। पूछा- राजेश-नूपुर का क्या कसूर? बेटी की हत्या के वक्त वे दोनों घर में थे, क्या यही कसूर? हमारा दर्द कोई नहीं समझता। क्या कोई मां-बाप ऐसा करेगा? वंदना तलवार ने मौजूं सवाल उठाया। अगर किसी परिवार में किसी व्यक्ति की हत्या हो जाए और अपराधी का पता न चले, तो क्या जांच एजेंसियां परिवार वालों को ही गुनहगार ठहराएंगी? अगर जांच एजेंसियां इसी ढर्रे पर चल पड़ीं। तो तो क्या अपराधियों के मनोबल नहीं बढ़ेंगे? तलवार दंपति को सीबीआई रपट के मुताबिक आरोपी मान भी लिया जाए। तो क्या ये दोनों पेशेवर अपराधी, जो सीबीआई के हर दांव को झूठा साबित कर दें? तलवार दंपति पर शक होना लाजिमी। पर सीबीआई ने तो केस दर्ज करने के बजाए केस बंद करने की सिफारिश की। यानी क्लोजर रिपोर्ट की वजह से सीबीआई के नकारेपन की खिल्ली न उड़े, सो मां-बाप को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। अब सीबीआई की दलील ऊपरी अदालतों में कितनी ठहर पाएगी, इसका इंतजार करना होगा। पर सवाल फिर वही- क्या देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी इतनी पंगु हो चुकी कि अपराधी को नहीं पकड़ सकती? जेसिका लाल केस में क्या हुआ था? निचली अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया। तो मीडिया ने सवाल उठाया- क्या जेसिका को किसी ने नहीं मारा? तो अपना तंत्र नींद से जागा। अब केस का अंतिम पड़ाव सबके सामने। रुचिका गिरहोत्रा केस में 19 साल तक जांच एजेंसियों ने क्या किया? पर जब मीडिया में सवाल उठे, तो रुतबे वाला एसपीएस राठौड़ जेल की चारदीवारी में बैठा दिन गिन रहा। अब सीबीआई से एक और सवाल- जब आरुषि केस में परिस्थितिजन्य साक्ष्य तलवार दंपति के खिलाफ। तो निठारी कांड में मोनिंदर सिंह पंढेर के बजाए उसका नौकर सुरिंदर कोली को ही हर केस में उम्रकैद और फांसी क्यों मिल रही? निठारी की डी-5 कोठी में कोली ने जो कुछ भी किया, क्या सालों तक पंढेर को भनक नहीं लगी? अब तलवार परिवार दोहरे दुख के साथ आगे बढ़ेगा। पर कब तक, कहना मुश्किल। अपने तंत्र की यही खामी। कई बार निर्दोष कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाता मर जाता, अपराधी बेखौफ घूमता। ताजा उदाहरण 26/11 के गुनहगार आतंकी कसाब का ही लो। अपने तंत्र की इतनी बड़ी खामी, 26 महीने हो चुके। पर अभी तक कानूनी प्रक्रिया में ही केस फंसा हुआ। सो शहीद मेजर उन्नीकृष्णन के चाचा के. मोहनन ने पिछले हफ्ते संसद भवन के सामने आत्मदाह कर लिया। क्या यही है अपना तंत्र?
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09/02/2011