Monday, August 30, 2010

तो राजा के लिए बिल, राजस्थानी को झुनझुना

तो सीबीआई से शुरू, सीबीआई पर ही खत्म। मानसून सत्र के आखिर में बीजेपी को सीबीआई का मुद्दा याद आ गया। सत्र से पहले सीबीआई के बेजा इस्तेमाल पर ही पीएम के लंच का बॉयकाट किया था। पर पूरे सत्र में इस मुद्दे को प्राथमिकता नहीं दी। अब सत्र की अवधि दो दिन बढ़ गई। तो सोमवार को दोनों सदनों में बवाल काटा। घंटे भर संसद ठप करा संतुष्ट हो गई। सो चुटकी लेने वालों ने नरेंद्र मोदी इंपैक्ट बताया। यों बीजेपी की मानिए, तो मोदी का फोन आया जरूर था। पर मामला उठाने के लिए नहीं, उठाने से रोकने के लिए। गीता जौहरी ने सीबीआई की धमकी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली, तो मोदी ने मना किया। अब सच जो भी हो, इतना तो साफ हो चुका। पीएम के लंच का बॉयकाट हो या सोमवार को संसद में हंगामा, मोदी का फोन आया था। पर सीबीआई का मुद्दा निपटा, तो एनीमी प्रॉपर्टी बिल हंगामे की वजह बना। सुप्रीम कोर्ट ने राजा महमूदाबाद की 1100 प्रॉपर्टी वापस करने का आदेश दिया। तो सरकार ने फैसले को गलत मानते हुए अध्यादेश जारी कर दिया। सो राजा महमूदाबाद को संपित्त वापस नहीं मिली। अब मुस्लिम सांसदों के दबाव में सरकार अध्यादेश में संशोधन चाह रही। सलमान खुर्शीद ने मोर्चा संभाल मुस्लिम सांसदों को लामबंद किया। सोनिया-पीएम-चिदंबरम तक अलख जगाई। सो मुस्लिम वोट की खातिर सरकार इतिहास रचने को तैयार हो गई। अध्यादेश संसद सत्र न होने के वक्त लाया जाता। पर सत्र में जस का तस अध्यादेश को कानूनी जामा मिलता। अबके सरकार जिस खातिर अध्यादेश लाई, संशोधन जोड़ उसे ही पलटना चाह रही। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत बताया था। पर संशोधन के साथ बिल पास हो जाए। तो राजा महमूदाबाद को सारी प्रापर्टी वापस मिल जाएगी। सो बीजेपी ने एतराज किया। पर लालू-मुलायम को तो अपने वोट बैंक की फिक्र। बीजेपी की दलील, अगर राजा को प्रॉपर्टी वापस मिली, तो सारे किरायेदारों को बाहर कर देगा। पर चिदंबरम बीजेपी की इस आपत्ति को दूर करने को राजी थे। फिर भी बीजेपी ने प्रॉपर्टी वापस करने की मुखालफत की। सो विरोध को देखते हुए सरकार ने सोमवार को बिल वापस ले लिया। अब शीत सत्र में बिल लाने का एलान हुआ। पर सरकार के इरादे नेक नहीं। सो सुषमा स्वराज ने सदन में ही हमला बोला। पूछा- क्या सरकार कोई नया अध्यादेश लाने की सोच रही? चिदंबरम ने कोई जवाब नहीं दिया। पर चाल देखिए, मौजूदा अध्यादेश सत्र खत्म होते ही लेप्स हो जाएगा। फिर सरकार अभी जो संशोधन चाह रही थी। उसी संशोधन के साथ नया अध्यादेश ले आएगी। फिर शीत सत्र में विपक्ष ने विरोध किया, तो भी सरकार की राजनीतिक सेहत पर फर्क नहीं पड़ेगा। संविधान के तहत यह प्रावधान, अगर कोई अध्यादेश लेप्स हो जाए। तो उसके जरिए हुआ काम मान्य होगा। यानी मौजूदा अध्यादेश के तहत राजा महमूदाबाद को प्रॉपर्टी वापस नहीं मिलेगी। पर नया अध्यादेश आया, तो सरकार और लालू-मुलायम की मंशा पूरी होगी। राजा महमूदाबाद के बेटे को 24 हजार करोड़ की प्रॉपर्टी वापस मिल जाएगी। फिर जब राजा को बैठे-ठाले इतनी संपत्ति मिलेगी। तो राजा की खातिर फुर्ती दिखाने वाले दल चुनावी चंदे के साथ-साथ वोट बैंक का भी जुगाड़ कर सकेंगे। यों एनीमी प्रॉपर्टी बिल को लेकर सरकार की नीयत में खोट। तो विपक्ष भी दूध का धुला नहीं। हदबंदी कानून देश में लंबे समय से लागू। कृषि संपत्ति सीमा तय करने का कानून 1968 में बना। तो शहरी संपत्ति सीमा का कानून 1973 में। यूपी में इस कानून के मुताबिक कोई परिवार अधिक से अधिक 33 एकड़ कृषि भूमि ही रख सकता। जबकि लखनऊ जैसे शहर में सीलिंग की सीमा एक हजार वर्ग मीटर। पर अब शहर में सीलिंग का कानून रद्द हो चुका। अगर शहर सीलिंग एक्ट लागू होता। तो न अध्यादेश की जरूरत पड़ती, न वोट के सौदागर ऐसा ख्याल दिल में लाते। पर सनद रहे, सो बता दें। शहरी सीलिंग एक्ट 1999 में एनडीए राज में बतौर शहरी विकास मंत्री राम जेठमलानी ने रद्द करवाया। तब दलील दी गई, एक हजार वर्ग मीटर में मकान के अलावा छोटा सर्वेंट क्वार्टर भी नहीं बन पाता। सो कानून ही हटा दिया गया। अब कोई कानून नहीं, सो संशोधित रूप में अध्यादेश आया। तो लोकतंत्र के इस दौर में भी राजा महमूदाबाद का वारिस सचमुच का राजा होगा। वोट की खातिर नेताओं ने संसद को सचमुच कठपुतली बना दिया। पाकिस्तान जा चुके लोगों की खातिर कानून बन रहे। लालू को तो एनीमी शब्द पर ही एतराज। देश की जनता से किए वादे शायद ही कभी पूरे होते। पर एनीमी और अमेरिका के लिए कुछ भी होगा। अब सोमवार को राजस्थानी भाषा को लेकर लोकसभा में हंगामा बरपा। तो 18 दिसंबर 2006 का गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल का वादा याद कराया गया। खम ठोककर बजट सत्र 2007 में बिल लाने का एलान किया था। पर उस लोकसभा का विसर्जन हो गया, वादा पूरा नहीं हुआ। सत्ता में आने वाले यह भूल जाते, संसद सरकार और जनता के बीच मध्यस्थ का काम करती। राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में कहा था- संसद की असली संप्रभुता इसी में कि वह अपने और जनता के हक के बीच कोई फर्क न करे। लोकतंत्र को सफल बनाना है, तो संसद को अपने अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ जनता की आवाज सुनने को भी तैयार रहना चाहिए। पर अब संसद का इस्तेमाल सिर्फ वोट और निजी हित की खातिर होता।
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30/08/2010