Tuesday, October 12, 2010

दूध की जली कांग्रेस फूंक-फूंक कर पी रही छाछ

अब दिल्ली शिफ्ट हो गया कर-नाटक। सोनिया-आडवाणी के घर फैसलाकुन बैठकों का दौर चला। राष्ट्रपति राज के खौफ में बीजेपी ने अपने 105 एमएलए दिल्ली बुला लिए। ताकि राष्ट्रपति के सामने परेड करा राजनीतिक मुद्दे को धार दे सके। पर तेल की धार देख कांग्रेस ने खुद को फिसलने से बचा लिया। बिहार, झारखंड, गोवा जैसी जल्दबाजी नहीं की। गवर्नर हंसराज भारद्वाज तो बेनकाब हो चुके। सो फैसले पर फौरन मोहर लगाने की तोहमत नहीं ली। अलबत्ता बीजेपी को भी बेनकाब करने की रणनीति बनाई। केबिनेट की मीटिंग टाल गवर्नर को इशारा कर दिया। येदुरप्पा सरकार को दुबारा बहुमत साबित करने की हिदायत दें। सो सोमवार को राष्ट्रपति राज की सिफारिश करने में जेहादी तेवर दिखाने वाले हंसराज मंगलवार को सरेंडर कर गए। येदुरप्पा को फिर से बहुमत साबित करने को गुरुवार का वक्त दिया। अब कोई पूछे, जब सोमवार को गवर्नर राष्ट्रपति राज को मुफीद बता रहे थे। तो चौबीस घंटे में ही क्यों पलट गए? अगर खुद की ऐसी सोच, तो चौबीस घंटे पहले पल्ले क्यों नहीं पड़ी? सोमवार को खुद रपट दी- 120 एमएलए सरकार के खिलाफ। फिर आज क्यों मौका दे रहे? कर्नाटक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया। तो गवर्नर हंसराज खुद मीडिया से मुखातिब हुए। करीब पौना-एक घंटे की लंबी प्रेस कांफ्रेंस में गवर्नरी का कम, नेतागिरी का अंदाज अधिक दिखा। राजनीतिक आरोपों का जवाब ऐसे दिया, मानो, गवर्नर नहीं, विपक्ष के नेता हों। बोले- मुझे कोई डिक्टेट नहीं कर सकता, ना ही मैं किसी की स्क्रिप्ट पर काम करता हूं। स्क्रिप्ट पर काम वे लोग (बीजेपी) कर रहे। और भी बहुतेरे सवाल हुए, जिनका हंसराज ने आरोप-प्रत्यारोप के अंदाज में जवाब दिया। पर हंसराज का राजनीतिक कैरियर को जानने वाले बखूबी जानते, हंसराज किसकी स्क्रिप्ट पर काम करते। यों हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। गवर्नर ने येदुरप्पा सरकार को बहुमत साबित करने का मौका दिया। पर इसके संकेत करीब दो-ढाई घंटे पहले कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी महासचिव गुलाम नबी आजाद दिल्ली में दे चुके थे। जब उन ने कहा था- स्पीकर ने गलत काम किया। अयोग्य करार दिए गए विधायकों को बहाल कर येदुरप्पा सरकार फिर से विश्वास मत हासिल करे, तो हमें एतराज नहीं होगा। हू-ब-हू यही बात गवर्नर ने सीएम को लिखी चिट्ठी और प्रेस कांफ्रेंस में कही। अब आप खुद देख लो। केबिनेट कमेटी की मीटिंग नहीं हुई, सिर्फ कांग्रेस कोर ग्रुप और सोनिया की गुलाम नबी-वीरप्पा मोइली से मीटिंग हुई। तो सवाल, गवर्नर ने किसकी सलाह पर अपना फैसला बदल दिया। गवर्नर ने सचमुच पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक में खूब खेल किया। सीएम को बिन मांगे सलाह, राष्ट्रपति-पीएम को रपट देना किसी को भी रास नहीं आया। पर जब बीजेपी के कुछेक एमएलए बागी हुए। सरकार बचाने को बीजेपी ने भी कांग्रेसी नुस्खा अपनाया। तो गवर्नर ने स्पीकर को चिट्ठी लिखकर ऐसा निर्देश दिया, कानून पानी भरता दिखा। स्पीकर को बहुमत से एक दिन पहले लिखा- अगर बागी एमएलए की सदस्यता रद्द की, तो विश्वास मत को मंजूर नहीं करेंगे। सो अब सवाल, क्या राजभवन सदन से ऊपर? हंसराज कानून मंत्री रह चुके। पर शायद पद छिनने के साथ ही कानून भूल गए। बड़े बेमन से गवर्नर बने। सो खुद को राजनीतिक धुरंधर साबित करने के चक्कर में अपना खेल खराब कर लिया। अब कर्नाटक का पेच उलझ गया। बागी एमएलए हाईकोर्ट जा चुके। पर हाईकोर्ट ने कोई फौरी फैसला नहीं सुनाया। अलबत्ता अब अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी। पर देश में गवर्नर की सिफारिश से बीजेपी ने बवाल खड़ा किया। तो गवर्नर ने दुबारा बहुमत साबित करने के लिए 14 अक्टूबर का समय दिया। अब सोचो, गर 14 अक्टूबर को येदुरप्पा ने मौजूदा 208 की विधानसभा में बहुमत हासिल कर लिया। फिर 18 अक्टूबर को अगर कोर्ट ने बागी विधायकों को अंतरिम राहत दे दी, तो क्या होगा? क्या फिर येदुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए कहा जाएगा? कांग्रेस की रणनीति कुछ अलग। कांग्रेस की सोच, गुरुवार को येदुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर पाएंगे। अगर हंगामे में सोमवार का खेल दोहराया गया। तो राष्ट्रपति राज लगाने में देर नहीं होगी। पर बीजेपी पहले हिचकी। रार ठान ली, जब एक बार बहुमत साबित कर चुके। तो दुबारा क्यों करें। पर आडवाणी के घर देर शाम तक चली मीटिंग के बाद 208 की विधानसभा में बहुमत साबित करने को राजी हो गई। सो कांग्रेस और गवर्नर के लिए कर्नाटक चुनौती बना। तो बीजेपी के लिए भी अब प्रतिष्ठा की लड़ाई। कर्नाटक में पहली बार कमल खिला। पर महज दो साल में ही कमल पर इतना कीचड़ उछला, कमल का रंग मालूम नहीं पड़ रहा। भ्रष्टाचार और अंतर्कलह के इतने कारनामे हुए कि बीजेपी की साख खत्म हो चुकी। अब गवर्नर ने राजनीतिक मजबूरी के तहत एक और मौका दिया। तो साख गंवा चुकी बीजेपी के लिए खाल बचाने की चुनौती। कर्नाटक में बीजेपी के रणनीतिकार औंधे मुंह गिर चुके। सो अब बीजेपी को सरकार बचाने की फिक्र नहीं। अलबत्ता गवर्नर पर हमला तीखा कर दिया। कांग्रेस भी थोड़ी सहम गई। गर राष्ट्रपति राज लगाया, तो न सिर्फ विपक्ष से संबंध में कटुता आएगी। राज्यसभा में पास कराना भी टेढ़ी खीर होगा। तब समूची कांग्रेस की भद्द पिटेगी। सो फिलहाल कांग्रेस ने भद्द को हंसराज तक ही सीमित रखा। वैसे भी बिहार, गोवा, झारखंड में कांग्रेस तेवर दिखा भद्द पिटवा चुकी। सो अबके दूध की जली कांग्रेस छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रही।
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12/10/2010