Friday, April 9, 2010

एक थे पाटिल और एक हैं चिदंबरम

शुक्रवार को एक फिल्म रिलीज हुई, जो आपको परदे पर नजर नहीं आएगी। फिल्म का नाम है- राजनीति की नैतिकता। पी. चिदंबरम ने इस्तीफे की पेशकश की। अब यह सब अचानक से नहीं हुआ। अलबत्ता जैसे पूरी फिल्म की शूटिंग पहले हो जाती और बढिय़ा मुहुर्त देख रिलीज होता। ठीक वैसे ही शुक्रवार को हुआ। जब दंतेवाड़ा के नक्सली हमले पर नैतिकता का बड़ा खेल हुआ। चिदंबरम सीआरपीएफ के शौर्य दिवस प्रोग्राम में थे। वहीं नैतिक जिम्मेदारी ओढऩे का एलान कर दिया। पीएम-सोनिया से मिलकर अपनी बात कह चुके। अब ये बातें तो सार्वजनिक तौर से हुई। पर बैक डोर से प्लांट हो गया, चिंदबरम ने इस्तीफे की पेशकश की। बस क्या था, चारों तरफ राजनीतिक पारा चढ़ गया। चिंदबरम के बिछाए राजनीतिक जाल में अपने तो अपने विपक्षी भी फंस गए। सफाई आने लगी, पीएम ने इस्तीफा मंजूर नहीं किया। विपक्षी बीजेपी ने तो दो कदम आगे बढकर कह दिया। चिदंबरम इस्तीफा न दे, नहीं तो यह नक्सलियों की जीत होगी। अब किसी केबिनेट मंत्री के लिए विपक्ष ऐसी भावना दिखाए। तो क्या समझेंगे आप? यही ना, देखो कितना अच्छा मंत्री है। अब अगर अंदरखाने कहीं किसी कांग्रेसी के मन में खुन्नस भी हो। तो दबानी पड़ जाएगी। चिदंबरम का यही दर्द तो उभर कर सामने आया। उनने कहा, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर मुझसे पूछा जा रहा था। इस घटना के लिए कौन जिम्मेदार है। सो दंतेवाड़ा हमले की पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूं। अब पूछने वालों को जवाब भी मिल गया। चिदंबरम ने एक ही स्ट्रोक से अपनी राजनीतिक हैसियत भी बढ़ा ली। पर इस्तीफे की खबरों में कितना दम, यह खुद प्रणव मुखर्जी ने बता दिया। सवाल हुआ, तो दादा ने साफ कह दिया। अफवाहों पर यकीन न करो। यानी नक्सली हमले में अपनों की आलोचना से आहत चिदंबरम ने सोच-समझकर इस्तीफे का राजनीतिक पासा फेंका। अगर चिदंबरम ने छत्तीसगढ़ से लौटते ही पीएम से मिल अपनी मंशा जता दी थी। तो क्या राजनीतिक नौटंकी दिखाने के लिए शुक्रवार का इंतजार कर रहे थे? उसी दिन देश को कह देते, जिम्मेदारी लेता हूं। पर नेता इतनी ईमानदारी दिखाने लगे। तो फिर राजनेता कहां, समाज सेवक हो जाएं। अब चिदंबरम का बतौर होम मिनिस्टर हिसाब-किताब लें। तो कोई शक नहीं, उनने 26/11 के हमले के बाद खुफिया तंत्र का कायापलट कर दिया। अधिकारियों को जिम्मेदारी का अहसास कराया। पर नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में थोड़ी चूक कर गए। राजनीतिक नंबर बढ़ाने के चक्कर में लालगढ़ गए। तो बुद्धदेव भट्टाचार्य से ही उलझ गए। अपनी शेखी बघारने को एलान कर दिया। नक्सलवादी कायर हैं, जंगलों में छुपे बैठे। अब सुरक्षा बल किसी खास ऑपरेशन में जुटे हों और होम मिनिस्टर ऐसा उकसाने वाला बयान दे। तो क्या कहेंगे आप। आखिर वही हुआ, जंगल के हर रास्ते से वाकिफ नक्सलियों ने ऐसा जाल बिछाया। अपने सीआरपीएफ के जवान समझ ही नहीं पाए। चिदंबरम के बयान का जवाब नक्सलियों ने 76 सुरक्षा बलों को मार कर दिया। वैसे नक्सली वाकई कायराना हरकत पर उतारु। पर गांव में कहावत है ना, मरखाने बैल को लाल कपड़ा दिखाओगे, तो वह सींग मारेगा ही। नक्सलियों ने चिदंबरम के बयान को लाल कपड़ा समझ लिया। अब चिदंबरम नैतिक जिम्मेदारी ओढ़ रहे और वाकई उन्हें अपनी भूल का अहसास। तो सिर्फ पेशकश क्यों, इस्तीफा देकर चले जाते। भले पीएम पद पर रहने की मनुहार करते, अगर अपनी गलती का अहसास है तो कतई नहीं मानते। अगर चिदंबरम इस्तीफे की पेशकश कर रहे। तो इसका क्या मतलब निकाला जाए। यही ना, नक्सलवाद के खिलाफ बनाई अपनी रणनीति के आगे चिदंबरम हार गए। ऑपरेशन ग्रीन हंट आखिर चिदंबरम की ही तैयारी। पर इस्तीफा देकर अपनी ही योजना का नाकाम बता रहे। अगर नक्सलवाद के खिलाफ युद्ध छेड़ा है। तो युद्ध में कुर्बानी तो होंगी ही। अगर व्यवस्था में जज्बा, तो ईंट का जवाब पत्थर से दें। साथ ही कुर्बानी देने वाले जवानों के परिवार की जिम्मेदारी भी सरकार की। पर नेताओं से उम्मीद करना बेमानी ही। तभी तो शुक्रवार को जब चिदंबरम के इस्तीफे की पेशकश पर राजनीतिक पारा चढ़ा। तो कांग्रेस ने साफ कर दिया, इस्तीफा नहीं माना जाएगा। पर लगे हाथ एक और बात कही, जरा आप भी सुन लो। अभिषेक मनु सिंघवी बोले- च्हम रमण सिंह का इस्तीफा नहीं मांग रहे।ज् यानी कांग्रेसी पैंतरा, जब रमण नहीं तो चिदंबरम क्यों? पर रमण सिंह का इस्तीफा नैतिकता के किस फॉर्मूले से मांगेगी कांग्रेस? नक्सलियों के खिलाफ राज्य और केंद्र का यूनीफाइड कमांड अब तक नहीं बना। तो जिम्मेदार कौन? रमण सिंह तो अभी भी लडऩे का जज्बा दिखा रहे। चिदंबरम की तरह नहीं, जो मैदान छोडऩे की तैयारी कर रहे। वैसे जो भी हो, चिदंबरम और उनके पूर्ववर्ती शिवराज पाटिल में एक बड़ा फर्क तो दिखा। हर आतंकी धमाके के बाद शिवराज पाटिल सिर्फ जुबान चलाते। पर इस्तीफे की पेशकश तो छोडि़ए, इस्तीफा शब्द आते ही एनडीए राज के हमले गिना देते। पर चिदंबरम ने भले राजनीति के लिए ही सही, कम से कम इस्तीफे की पेशकश तो की।
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09/04/2010