Thursday, March 3, 2011

निर्लज्जता के पार जाएगी कांग्रेस या जाएंगे पीएम?

आखिर चांटा खाकर ही मनमोहन सरकार मानी। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी पी.जे. थॉमस की नियुक्ति को अवैध ठहराया। तो थॉमस ने इस्तीफा दिया। पर कोर्ट की पहली टिप्पणी के बाद जब पहली दिसंबर को होम मिनिस्टर से मिल थॉमस बाहर निकले। तो तेवर दिखाते हुए कहा था- मैं सीवीसी का बिग बॉस। पर सुप्रीम कोर्ट के सवालों से तभी साफ था, थॉमस को जाना होगा। दो दिसंबर को यहीं पर लिखा था- चाहे जो भी हो, थॉमस की विदाई तय। कांग्रेस को तय करना कि सुप्रीम कोर्ट की चपत से ही थॉमस को चलता करती या चांटा खाकर। सचमुच कांग्रेस का इतिहास चांटा खाकर ही मानने का। चाहे बिहार के गवर्नर बूटा सिंह का मामला हो या झारखंड के गवर्नर सिब्ते रजी को लेकर हुई किरकिरी का। या फिर गोवा के गवर्नर एससी जमीर का। सो कांग्रेस का जमीर तो अब चिकना घड़ा हो चुका। सुप्रीम कोर्ट की चाहे जितनी थाप पड़े, असर नहीं पड़ता। पर गुरुवार को कोर्ट ने न सिर्फ थॉमस की नियुक्ति को गैरकानूनी ठहराया। अलबत्ता पहली बार कांग्रेसी चिकने घड़े पर छाप दिखी। चीफ जस्टिस एचएस कपाडिय़ा की रहनुमाई वाली बैंच ने कहा- थॉमस की नियुक्ति में कमेटी ने सीवीसी जैसी संस्था की गरिमा को ध्यान में नहीं रखा। सिर्फ बायोडाटा के आधार पर नियुक्ति गलत। ऐसी नियुक्तियां नौकरशाही तक सीमित न हों। अन्य क्षेत्र के लोगों पर भी विचार हो। कोर्ट ने माना, थॉमस की नियुक्ति में यह नहीं देखा गया कि जिस व्यक्ति को सीवीसी बनाया जा रहा, वह करप्शन से लडऩे में कितना सक्षम। इसलिए थॉमस की नियुक्ति अवैध। सो जैसे ही फैसला आया, समूची सरकार को सांप सूंघ गया। विधि मंत्री वीरप्पा मोइली संसद भवन में भागते-भागते पीएम के पास जाते दिखे। चिदंबरम तो ऐसे निकल गए, मानो, मुंह में जुबान नहीं। शंख की तरह नाद करने वाले कांग्रेसी प्रवक्ता फटे बांस नजर आए। यों कांग्रेस और सरकार ने थॉमस का बचाव करने में कसर नहीं छोड़ी। अटार्नी जनरल तक ने झूठ बोला। जब सुषमा स्वराज ने आंखें दिखाईं। तो चिदंबरम ने सुषमा को सही ठहरा बात संभाल ली। अब दबी जुबान में कह रही- हमने तो थॉमस से कई बार इस्तीफा देने को कहा। पर वह नहीं माने। अब ऐसी दलीलें तो महज खाल बचाने की कोशिश। पर सवाल- जब सुषमा स्वराज ने बतौर नेता प्रतिपक्ष एतराज जताया। तो पीएम-चिदंबरम क्यों नहीं माने? तब चिदंबरम ने थॉमस को पॉमोलिन ऑयल घोटाले में क्लीन चिट दी। खुद मनमोहन-चिदंबरम ने सात सितंबर को थॉमस के शपथ ग्रहण समारोह के बाद खम ठोककर कहा था- हमने सही कदम उठाया। तीन नामों के पैनल में सबसे बेहतर उम्मीदवार चुना। अब मनमोहन बताएं- क्या इसे बेहतर उम्मीदवार कहते हैं? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद थॉमस नाम की घंटी सीधे मनमोहन के गले बंध गई। गुरुवार को समूचे विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया। सो संसद के दोनों सदन ठप हो गए। अब विपक्ष चिदंबरम का इस्तीफा मांग रहा। पीएम को भी इशारा कर दिया। सो पीएम को संसद में सफाई देनी होगी। पर राम जेठमलानी ने तो बेलौस कह दिया- पीएम अपनी ईमानदार छवि का बहुत बेजा फायदा उठा चुके। अब किसी न किसी को संसदीय जवाबदेही तो लेनी होगी। आडवाणी बोले- साठ साल में कभी ऐसा नहीं हुआ, जब पीएम की ओर से हुई नियुक्ति को कोर्ट ने अवैध ठहराया हो। सो पीएम-सोनिया को नैतिक जिम्मेदारी लेनी होगी। अरुण जेतली ने भी कहा- अब सिर्फ पीएम ही जवाब दे सकते। उन्हें गुमराह किया गया या खुद गुमराह हो गए थे। सो टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर गठबंधन की मजबूरी का राग अलापने वाले मनमोहन अब कौन सा नया कुतर्क देंगे? यों मोइली ने बाद में माना, कोर्ट का फैसला सरकार के लिए सबक। पर अब बचाव में कांग्रेस क्या करेगी? पीएम खुद अपनी नैतिकता तय करेंगे। या कांग्रेस बहुमत के दम पर उनसे ही गाड़ी खिंचवाएगी, यह देखना होगा। पर अब कांग्रेस के पास कोई तर्क नहीं। यों राजनीति में बचाव के लिए कुतर्कों की भी कमी नहीं। पर मनमोहन के ‘मोहिनी’ रूप का सच अब खुल चुका। सो देर शाम पीएम निवास पर कांग्रेस कोर ग्रुप की इमरजेंसी मीटिंग हुई। पर अब कांग्रेस चाहे जितनी मीटिंगें करे, सरकार की साख को बट्टा लग चुका। थॉमस मामले पर जूते, प्याज, टमाटर, अंडे सब खा लिए। सो अब कांग्रेस को ही तय करना, निर्लज्जता की सारी हदें पार कर कुतर्क गढ़ेगी या पीएम पद छोड़ेंगे? थॉमस तो निर्लज्जता की पराकाष्ठा पार कर ही चुके थे। जब उन ने हलफनामा देकर कहा था- मेरे खिलाफ क्रिमीनल केस, करप्शन का नहीं। बाकायदा सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को ही चुनौती दे दी थी कि उनकी नियुक्ति की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती। देखिए, कैसा राज आ गया- जब चोर कोतवाल को उसका हक बताने लगे। यों कोर्ट के फैसले का एक असर दिखा। गुरुवार को पीएमओ ने फोन कर अन्ना हजारे को सूचना दी- अपनी सहूलियत के मुताबिक आकर पीएम से मिल सकते हैं। हजारे पिछले पांच महीने से लोकपाल बिल पर बात करने के लिए टाइम मांग रहे थे। अब 27 मार्च से आमरण अनशन की चेतावनी दे दी थी। पर कोर्ट के फैसले ने गुरुवार ही पीएमओ को सद्बुद्धि दे दी। सो थॉमस पर आए फैसले, उस पर हुई सियासत और अब तक के घटनाक्रम का एक ही निचोड़- यह मनमोहन सरकार की राजनैतिक, न्यायिक, संवैधानिक हार।
----------
03/03/2011