तो आखिर तय हो ही गया- देश में लोक बड़ा, तंत्र नहीं। अपने नेता तंत्र की दुहाई दे लोक यानी जनता की आवाज दबाने में जुटे थे। पर देर से ही सही, मनमोहन के सिपहसालारों को बात समझ आ गई। तंत्र कोई आसमान से नहीं आया। पहले लोक, फिर लोक से तंत्र बना। सो ना-नुकर के बाद सरकार ने शासनादेश के बजाए नोटीफिकेशन जारी करना ही मुफीद समझा। अनशन के पांचवें दिन छपा हुआ गजट अन्ना हजारे तक पहुंचा दिया। सो लोकतंत्र की जीत के साथ ही शनिवार सुबह दस बजे अन्ना ने अनशन तोड़ दिया। जंतर-मंतर ही नहीं, समूचा देश दूसरी आजादी के जश्न में सराबोर हो गया। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या युवा और क्या महिलाएं। न कोई मजहब, न कोई जात-पांत, न सामाजिक भेद-भाव। अन्ना का आंदोलन देश-दुनिया में छा गया। दिन में होली, तो शाम को देशभर में दिवाली मनी। अपने इंडिया गेट पर भी लोगों ने कैंडल मार्च कर खुशी का इजहार किया। आईपीएल का रंग इतना फीका पड़ेगा, शायद ही किसी ने सोचा हो। शुक्रवार आंदोलनकारियों और सरकार की वार्ता तक आयोजकों के तो हाथ-पांव फूले हुए थे। शुक्रवार का चेन्नई बनाम कोलकाता का मैच भले रोमांचक हुआ, पर पहली दफा अपनी मीडिया और युवाओं ने उदासीनता दिखाई। जंतर-मंतर पर कई युवाओं के हाथों में तख्तियां दिखीं, जिनमें लिखा था- वेट आईपीएल, इट्स टाइम फॉर इंडियन अगेंस्ट करप्शन। सचमुच अन्ना की आंधी ने सरकार की सांसें उखाड़ दीं। पहले नोटीफिकेशन को सिरे से खारिज कर दिया। पर जनता के जज्बे के आगे झुकना पड़ा। तो खीझ मिटाने को अब कांग्रेस कह रही- तमाम कानूनी बाध्यताओं के बाद भी हम एक स्वस्थ लोकतंत्र चाहते। संयुक्त समिति का गठन भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी गंभीरता को दर्शाता। हमने भविष्य की चिंता की, भूत की नहीं। यानी कानूनी पेच को गिना सरकार पुरानी दलील देती रहती। तो शायद सरकार का भविष्य अंधेरे में होता। सो कांग्रेस की साख को ध्यान में रख खुद सोनिया गांधी ने कमान संभाली। कपिल सिब्बल की आंदोलनकारियों से पहली वार्ता फेल हुई। तो खुद सोनिया ने अन्ना हजारे से अपील की। फिर नौकरशाही की दलीलों में सरकार आए, उससे पहले सोनिया ने शीर्ष स्तर पर मीटिंग का दौर शुरू कर दिया। सो नोटीफिकेशन को ना कर चुके कपिल सिब्बल ने आखिरकार स्वामी अग्निवेश को औपचारिक नोटीफिकेशन की कापी थमा दी। अब असली इम्तिहान बिल के ड्राफ्ट पर होगा। अन्ना हजारे ने तो अल्टीमेटम दे दिया- 15 अगस्त तक जन लोकपाल बिल पारित नहीं हुआ, तो लालकिले से तिरंगा लहराते हुए फिर अनशन करेंगे। उन ने आशंका जताई- जन लोकपाल बिल के लिए शायद एक और अनशन करना होगा। पर अन्ना के उपवास तोडऩे के बाद पीएम मनमोहन ने जो कहा, वह बेहद अहम। बोले- संसद के मानसून सत्र में आने वाला यह बिल एतिहासिक होगा। सोनिया गांधी की एनएसी अन्ना के जन लोकपाल बिल पर सहमति जाहिर कर चुकी। सो संयुक्त समिति के अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी ने इशारा कर दिया- बिल आम सहमति का होगा। यानी अन्ना के अनशन ने देश को नई दिशा दी। भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगा युवाओं के प्रेरणास्रोत बने। पर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में फिलहाल सिर्फ बिल की ड्राफ्टिंग कमेटी बनी। यह जीत आखिरी नहीं, अलबत्ता अभी तो शुरुआत हुई। सो खुशी के बावजूद जोश और जज्बा कायम रखना होगा। देश के युवाओं को शपथ लेनी होगी- अब कोई पुलिस वाला हो या पटवारी, कोई अफसर हो या बाबू, कोई मंत्री हो या संतरी। किसी ने रिश्वत मांगी, तो अन्नागिरी अपनाएंगे। भले एक झटके में भ्रष्टाचार का खात्मा संभव नहीं। पर इस नकारात्मक सोच की वजह से नई शुरुआत को दफन नहीं कर सकते। भ्रष्टाचार से लडऩे को अभी भी कई कानून, पर अन्ना बोले- अभी जो संस्था काम कर रहीं, सब सरकार के अधीन। हम स्वायत्त संस्था की बात कर रहे। अब सरकार को शायद अक्ल आ गई होगी। जनता ने पांच दिनों में अपनी भावना का इजहार कर दिया। पर अन्ना का आंदोलन सरकार ही नहीं, समाज के उन कई तबकों के लिए भी एक सबक। जो अपने निजी स्वार्थ के लिए कई रेल की पटरियां उखाड़ते, कभी बसें फूंक डालते, सडक़ें जाम कर देते। हाल ही में जाट और गुर्जर आंदोलनों ने बाकी जनता के मन में गुस्सा पैदा किया। जबकि अन्ना के आंदोलन ने देशवासियों के दिल में जगह बनाई। जंतर-मंतर पर लोग अपने पूरे परिवार, छोटे-छोटे बच्चों के साथ पहुंचने में गर्व महसूस करने लगे। क्या कोई अन्य व्यक्ति किसी गुर्जर-जाट आंदोलन में ऐसे पहुंच सकता? जाट-गुर्जर आंदोलन तो हालिया उदाहरण, पर समाज के हर वर्ग के लोगों को अन्ना से सबक लेने की जरूरत। जिनके आंदोलन ने महज पांच दिन में सरकार के घुटने टिकवा दिए और ना कोई ट्रेफिक जाम हुआ, न जनता को परेशानी। न रेल की पटरियां उखड़ीं, न किसी सरकारी संपत्ति को नुकसान। सरकार को भी मानना पड़ा, यह लोकतंत्र की जीत। सो अन्ना का आंदोलन सरकार ही नहीं, पटरी उखाडऩे वाले, सडक़ जाम करने वाले, बस फूंकने वाले समाज के अन्य आंदोलनकारियों के लिए भी सबक।
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09/04/2011
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