आखिर किस हद तक गिरेगी अपनी राजनीति? कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने फिर कमाल कर दिया, धोती को फाड़ के रूमाल कर दिया। ऊपर वाले की कृपा से भले वाराणसी बम धमाके में जान-माल की अधिक क्षति नहीं हुई। पर दिग्गी राजा ने जो राजनीतिक धमाका किया, खुद कांग्रेस-बीजेपी और अपनी कूटनीति भी लहुलुहान होती दिख रही। अभी 26/11 हमले की दूसरी बरसी को बीते महज पखवाड़ा भर हुए। पर दिग्गी राजा ने नई कहानी गढ़ दी। खुलासा किया- ‘मालेगांव बम धमाके की जांच में हिंदुवादी संगठनों की भूमिका उजागर करने की वजह से एटीएस चीफ हेमंत करकरे को कट्टर हिंदू संगठनों से जान का खतरा था।’ दिग्गी की मानें, तो मुंबई पर हुए आतंकी हमले से ठीक दो घंटे पहले फोन पर बातचीत में खुद करकरे ने यह बात उन्हें बताई थी। पर सवाल, दिग्गी राजा को 26 नवंबर 2008 को करकरे से हुई बात हमले की दूसरी बरसी के बाद अचानक कैसे याद आ गई? अगर करकरे को सचमुच धमकियां मिल रही थी, तो उन ने दिग्विजय सिंह को ही क्यों बताया? करकरे अपने वरिष्ठ अधिकारी या महाराष्ट्र के गृह मंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री या फिर पीएम-सीएम से बात कर सकते थे। पर उन ने सिर्फ दिग्गी राजा को ही क्यों बताई? इससे भी अलग सवाल, जब किसी को कोई धमकी मिलती है, तो वह सबसे पहले अपने परिवार से शेयर करता है। पर शहीद हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने फौरन इनकार किया। अलबत्ता जांच में जुड़े अधिकारी के नाते ऐसी बातों को सामान्य बताया। पर दिग्गी राजा की टिप्पणी को कविता करकरे ने वोट बैंक की ओछी राजनीति से प्रेरित बताने में देर नहीं की। सचमुच दिग्गी राजा की दलील आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई को कमजोर करेगा। जब सारी दुनिया और अदालत मुंबई हमले और करकरे जैसे बहादुर ऑफीसरों की शहादत के पीछे पाकिस्तानी आतंकियों की करतूत मान चुका। यों विशेष अदालत से फांसी की सजा पा चुका आतंकी कसाब अब हाई कोर्ट में पैतरेबाजी कर रहा। हाल ही में कसाब ने हेमंत करकरे को मारने में अपनी भूमिका से इनकार किया था। अब करीब-करीब वही बात कांग्रेस महासचिव दिग्गी राजा कह रहे। उन ने दो-टूक कह दिया- ‘जब रात में करकरे की मौत की खबर मिली, तो मैं सन्न रह गया था और मेरे मुंह से निकला, ओह गॉड, मालेगांव जांच के विरोधियों ने उन्हें मार डाला।’ अब आप क्या कहेंगे? क्या शहादत पर बखेड़ा खड़ा करना सचमुच कांग्रेस की फितरत बन गई? या फिर वोट बैंक के लिए कसाब को भी अफजल बनाएगी कांग्रेस? सोमवार को संसद पर हमले की नौंवीं बरसी। पर लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर पर हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरु वोट बैंक के राजनीतिक तवे में सेंकी रोटियां तोड़ रहा। फिर भी संसद में श्रद्धांजलि का ढक़ोसला करते दिखेंगे अपने माननीय नेतागण। जो अफजल की फांसी से जुड़ी फाइल पर कुंडली मारकर बैठे हुए। सिर्फ अफजल ही नहीं, बटला हाउस मुठभेड़ में शहीद इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा पर भी उंगली उठा चुकी कांग्रेस। खुद दिग्गी राजा ने मोर्चा खोला था। आतंकियों के परिजनों से सहानुभूति जताने आजमगढ़ जाने में भी कोई हिचक नहीं दिखाई थी। पर दिग्गी राजा के हर विवादास्पद स्टैंड में कांग्रेस की बड़ी राजनीति निहित होती। सो कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने तो बेबाक कह दिया। बोले- ‘दिग्विजय सिंह उपन्यास के पार्ट जरुर हैं, पर उपन्यासकार नहीं।’ अब कोई पूछे, उपन्यासकार कौन है? अब मुंबई जैसे आतंकी हमले को भी वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बनाने का क्या मकसद? क्या अब कांग्रेस ‘कसाब बचाओ मुहिम’ में जुट गई? अगर करकरे आतंकी हमले में शहीद नहीं हुए, तो क्या विरोधियों ने हत्या कर दी? अगर यही दिग्विजय सिंह का स्टैंड, तो पाक को बेमतलब डोजियर क्यों सौंपे? कसाब ने करकरे को नहीं मारा, तो कोर्ट में जाकर दिग्विजय उसके पक्ष में गवाही दे दें? फिर भी मन नहीं भरता, तो कसाब को सम्मान सहित पाक के फरीदकोट उसके गांव पहुंचा आएं। क्या दिग्विजय का बयान अब पाक के लिए ढ़ाल नहीं बनेगा। जब सत्ताधारी दल का एक वरिष्ठ महासचिव ही ऐसा कहेगा। तो पाक की मुराद तो खुद-ब-खुद पूरी हो जाएगी। पर कांग्रेस हो या बीजेपी, सबकी कहानी एक। दिग्विजय से पहले बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्वराज भी ऐसा कर चुकीं। जब 22 जुलाई 2008 को मनमोहन सरकार ने जोड़-तोड़ से बहुमत हासिल किया। फिर 25-26 जुलाई को अहमदाबाद-बेंगलुरू में लगातार सीरीयल ब्लास्ट हुए। तो 28 जुलाई को सुषमा ने इसे मनमोहन सरकार की साजिश बता दिया। बोलीं- ‘विश्वास मत के चार दिन बाद ही इस तरह का हमला हुआ। परिस्थितिजन्य साक्ष्य नाम की कोई चीज दुनिया में है या नहीं। ऐसा कभी नहीं हुआ, 24 घंटे में दो बीजेपी स्टेट में एक जैसे ब्लास्ट हुए। कैश फॉर वोट से ध्यान बंटाने, अमेरिकापरस्ती से छिटके मुस्लिम वोट को बीजेपी का कृत्रिम भय दिखाने के लिए हुए हमले।’ पर बवाल मचा, तो दो दिन बाद बीजेपी ने भी वैसे ही सुषमा से दूरी बना ली। जैसे कांग्रेस ने दिग्विजय के बयान से। पर तब भी न सुषमा ने खेद जता बयान वापस लिया, न दिग्विजय अब ऐसा कर रहे। सो राजनीति की यह कैसी विडंबना। कभी अफजल का बचाव, तो कभी बटला कांड में शहीद इंस्पेक्टर की शहादत पर सवाल, तो कभी भ्रष्टाचार के आरोपी ए. राजा और पी.जे. थॉमस जैसे लोगों का बचाव...। और अब दिग्विजय का रुख कहीं कांग्रेस की कसाब बचाओ मुहिम तो नहीं? विकिलीक्स के जरिए भी खुलासा हो गया, कांग्रेस ने 26/11 के बाद मजहब यानी वोट बैंक की राजनीति की कोशिश की थी।
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11/12/2010
Saturday, December 11, 2010
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