Tuesday, February 8, 2011

सरस्वती पूजा के दिन सबको आई सद्बुद्धि

घोटालों का मौसम विदा होने का नाम नहीं ले रहा। सो उधर टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के राजा की रिमांड बढ़ी। तो इधर एस बैंड स्पेक्ट्रम पर पीएमओ को सफाई देनी पड़ी। पीएमओ की मानो, तो ऐसी किसी डील को मंजूरी नहीं दी गई। सो नुकसान की खबर गलत। पर पीएम के मातहत अंतरिक्ष विभाग का जिम्मा संभाल चुके पृथ्वीराज चव्हाण ने 2010 में ही घोटाला सामने आने की बात मानी। तो पीएम के अधीन अंतरिक्ष विभाग ने भी अपनी सफाई में माना- एंट्रिक्स और देवास के बीच 28 जनवरी 2005 को हुए करार की विभागीय समीक्षा हो रही है और जनता के हित में सरकार हर संभव कदम उठाएगी। सो दूसरे दिन भी विपक्ष ने पीएम पर निशाना साधा। बीजेपी के रविशंकर प्रसाद ने पूछा- मिस्टर पीएम, और कितने घोटाले होंगे। उन ने सोनिया गांधी की चुप्पी पर भी सवाल उठाए। विपक्षी खेमे से अब एस बैंड स्पेक्ट्रम को भी जेपीसी के दायरे में लाने की मांग होने लगी। सो बदलते मौसम, यानी सर्दी-गर्मी के बीच बसंत ऋतु का आगमन हुआ। तो सरकार की सोच भी बदलने लगी। राजा की तरह अगर पीएम पर भी विपक्षी बंदूकें तन गईं। तो मिड-टर्म पोल के सिवा कोई विकल्प नहीं। सो देर से ही सही, कांग्रेस दुरुस्त आ रही। बसंत पंचमी के दिन संसद का गतिरोध तोडऩे के लिए मीटिंग हुई। सो ज्ञान की देवी मां सरस्वती की कृपा ही कहिए, पक्ष-विपक्ष सबकी अक्ल के बल्ब जल उठे। संसद की गरिमा की सुध अब जुबां पर आने लगी। भ्रष्टाचार पर जेपीसी जांच की मांग ने संसद के शीत सत्र की बलि ली। अब तलवार बजट सत्र पर भी लटकती दिखी। सो सब-कुछ लुटाकर कांग्रेस होश में लौट आई। मंगलवार की सर्वदलीय मीटिंग में तुरत-फुरत फैसला तो नहीं हुआ। पर जेपीसी के आसार अब बनने लगे। मीटिंग में प्रणव मुखर्जी ने साफ इशारा कर दिया- संसद की कार्यवाही सुचारु ढंग से चले, इसके लिए कोई भी कीमत अधिक नहीं होगी। यानी जेपीसी पर अब तक सीधा ना कर रही कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींच लिए। विपक्ष ने भी मीटिंग के बाद गतिरोध खत्म होने की उम्मीद जताई। सुषमा स्वराज ने तो प्रणव दा से भी अधिक स्पष्ट कह दिया- शीत सत्र में भी जेपीसी नकारने की एक भी वजह सरकार स्पष्ट नहीं कर पाई। सहयोगी दल भी जेपीसी पर एतराज नहीं कर रहे थे। पर अब आज की मीटिंग से मुझे काफी से अधिक उम्मीद बंधी है कि सत्र शुरू होने पर सरकार जेपीसी मान जाएगी और संसद चलेगी। पर सरकार की ओर से औपचारिक जवाब आना अभी बाकी है। सुषमा के बयान का मतलब साफ, अनौपचारिक सहमति तो बन गई, पर औपचारिकता की चादर में सरकार अपनी खाल बचाएगी। सीताराम येचुरी ने भी कह दिया- सरकार जेपीसी के बारे में सदन में प्रस्ताव लाए, तो हम चर्चा को तैयार। पर हम चाहते हैं, संसद चले और जेपीसी भी हो। गुरुदास दासगुप्त ने तो तस्वीर ही साफ कर दी। बोले- जेपीसी को लेकर गतिरोध टूटने की पूरी उम्मीद। पर जेपीसी के गठन की घोषणा संसद के भीतर ही की जा सकती। वरना विशेषाधिकार हनन का मामला बनेगा। पर कांग्रेस सीधे जेपीसी की हामी भरने के बजाए संसद को ढाल बनाने की रणनीति अपना रही। सो विपक्ष के कड़े तेवर को देखते हुए कांग्रेस ने प्रस्ताव पर वोटिंग का फार्मूला छोड़ दिया। अब सत्र की शुरुआत तक सब ठीक-ठाक रहा, तो पहले दिन ही सरकार सदन में प्रस्ताव लाएगी। जिस पर सभी दल अपनी-अपनी बात रखेंगे। आखिर में सरकार की ओर से सदन की भावना का सम्मान करते हुए जेपीसी का एलान हो जाएगा। पर उससे पहले एक और फैसलाकुन सर्वदलीय मीटिंग होगी। जिसमें जेपीसी के टर्म एंड रिफरेंस से लेकर सदस्यों के नाम पर भी अनौपचारिक चर्चा होने के आसार। कांग्रेस ने तो मंगलवार को ही कह दिया- जेपीसी मानेंगे, पर अपनी शर्तें भी जोड़ेंगे। सो कहीं शर्त के चक्कर में फिर कोई गड़बड़झाला न हो जाए। वैसे भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तीन महीने तक सब-कुछ लुटा कांग्रेस अब होश में आ रही। जेपीसी न मानने के तमाम हथकंडे धरे रह गए। राजा के उत्तराधिकारी कपिल सिब्बल ने तो सीएजी को ही झुठला दिया था। पर अब राजा गिरफ्तार हो चुके। तो सिब्बल को कुछ नहीं सूझ रहा। सिब्बल ने जस्टिस शिवराज पाटिल कमेटी भी गठित की थी। जिसमें 2003 की एनडीए सरकार के वक्त से ही गड़बड़ी की रिपोर्ट। सो अब एनडीए सरकार में संचार मंत्री रहे अरुण शौरी ने मोर्चा खोला। सिब्बल को राजा का वकील बताया। बोले- सिब्बल हमेशा राजा को बचाने की कोशिश कर रहे। जस्टिस पाटिल की रिपोर्ट भी गलतबयानी और सरकार को मदद करने वाली। शौरी ने दावा किया- मेरे पास कुछ ऐसे दस्तावेज, जिन्हें दबाया गया और कैग के सामने पेश नहीं किया गया। यानी शौरी ने सिब्बल को चेतावनी दे दी। सो अपने हर मोहरे पिटवा चुकी कांग्रेस के पास अब जेपीसी के सिवा कोई रास्ता नहीं। विपक्ष ने मंगलवार को नरमी से ही सही, पर राग वही- संसद चलाना चाहते, पर पहले जेपीसी बने। सो कभी झुकती, कभी अकड़ती कांग्रेस अब लेटने को मजबूर हो गई। अब जेपीसी से भ्रष्टाचार का क्या बिगड़ेगा, यह तो पता नहीं। पर संसद के दिन जरूर बहुरेंगे।
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08/02/2011