Friday, November 20, 2009

'सब कुछ लुटा के होश में आए, तो क्या किया'

इंडिया गेट से
---------
'सब कुछ लुटा के होश
में आए, तो क्या किया'
--------------
 संतोष कुमार
-----------
              तो लौट के बुद्धू घर को आए। अब फिर गन्ना कीमतें पुराने ढर्रे पर तय होंगी। शुक्रवार को भी विपक्ष ने संसद नहीं चलने दी। तो प्रणव मुखर्जी ने तुरत-फुरत संसद भवन में ही सर्वदलीय मीटिंग बुला ली। यों सोमवार को भी सर्वदलीय मीटिंग होगी। पर तब एनेक्सी में बैठ सभी नेता नाश्ता उड़ाएंगे। सो शुक्रवार को ही अध्यादेश का विवादित क्लॉज 3-बी हटाने पर सहमति बन गई। ताकि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। केंद्र ने एफआरपी तय कर मिल मालिकों को राहत दी थी। अब 3-बी हटेगा। तो केंद्र एक मूल्य तय करेगा। फिर राज्य की ओर से कीमत तय होंगी। और दोनों के बीच के अंतर की भरपाई मिल मालिकों को करनी होगी। यानी कुल मिलाकर अध्यादेश से पहले वाली नीति लौट आएगी। अब अपनी सरकार को क्या कहें। तलत महमूद का वह गीत सोलह आने फिट बैठ रहा- 'सब कुछ लुटा के होश में आए, तो क्या किया। दिन में अगर चिराग जलाए, तो क्या किया।Ó जब वापस ही लौटना था। तो दो दिन संसद क्यों ठप कराया। देश की राजधानी को जाम में क्यों फंसाया। संसद सत्र में एक दिन का खर्चा करीबन 45 लाख बैठता। यानी दो दिन में करोड़ों का नुकसान। भले गन्ना किसानों को राहत मिलेगी। पर सरकार की फांस कम नहीं हुई। सुगर लॉबी ने सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ 14 हजार करोड़ सरकार से हासिल किए। सो सरकार ने अध्यादेश लाकर राज्यों पर बोझ डाल दिया। अब संशोधन होगा। तो वापस मिल मालिक बोझ उठाएंगे। तो क्या सुगर लॉबी चुपचाप बैठी रहेगी? मामला फिर सुप्रीम कोर्ट जाना तय मानिए। यानी अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई। अलबत्ता शीत सत्र की शुरुआत में ही लगे झटके से उबरने की राजनीतिक कोशिश हुई। गतिरोध तोडऩा जरूरी था। सो विपक्ष ने भी अध्यादेश वापसी की मांग छोड़ दी। विवादित क्लॉज हटाने पर सहमति दे दी। यानी चेहरा बचाने को सरकार ने भी मान लिया। सुबह का भूला शाम को घर लौट आए। तो उसे भूला नहीं कहते। सो बाकी दलों ने भी चेहरा बचाने के लिए ऐसा ही मान लिया। तभी तो सुषमा स्वराज बोलीं- 'किसी राजनीतिक दल की नहीं, अलबत्ता किसानों की जीत।Ó वाकई अब राजनीतिक दलों के बूते में जन आंदोलन जैसी चीजें नहीं रहीं। तभी तो शिवसेनिक हार की खिसियाहट में मीडिया पर हमला बोल रहे। तो दूसरी तरफ बीजेपी में श्रेष्ठïता की जंग छिड़ी हुई। शुक्रवार को मुंबई-पुणे में बाल ठाकरे के गुंडों ने एक टीवी चैनल के दफ्तर पर धावा बोल दिया। कर्मचारियों से बदसलूकी की। कंप्यूटर से लेकर टीवी तक जो जी में आया, तोड़-फोड़ डाला। क्या महाराष्टï्र में लोकतंत्र की बागडोर चचा-भतीजे ने ही संभाल रखी? अगर किसी खबर पर एतराज हो। तो आप नोटिस भेज सकते या कोर्ट जा सकते। या प्रेस काउंसिल में भी जाने का विकल्प। पर इन चचा-भतीजे ने तो संविधान को मानो जेब में रख लिया। अब जनता चुनाव में न जिताए। तो क्या कोई ऐसे पागल सांड की तरह सींग मारेगा? पर लगातार तीसरी हार के बाद भी शिवसेना के होश ठिकाने नहीं। तो कोई क्या करे। पर बात बीजेपी की। मौका मिलता, तो विपक्ष की भूमिका का दिखावा कर जाती। जैसे अबके गन्ना अध्यादेश के क्लॉज 3-बी पर किया। वरना बीजेपी तो संघ के अध्यादेश में लगाए डी-4 क्लॉज से ही परेशान। डी-4, यानी दिल्ली से बाहर का नेता होगा अध्यक्ष। डी-4 में पहले जेतली, सुषमा, वेंकैया, अनंत का नाम आया। पर अब सही खुलासा सुषमा स्वराज ने किया। अनंत कहीं नहीं, चौथे नरेंद्र मोदी। नए अध्यक्ष को लेकर तीन महीने पहले ही प्रक्रिया शुरू हो गई। शुरुआत में सुषमा का नाम आया। तो उन ने अध्यक्षी के बजाए आडवाणी का उत्तराधिकारी बनने का फैसला किया। अरुण जेतली राज्यसभा में उम्दा काम करने की वजह से छंट गए। तो वेंकैया नायडू पहले भी अध्यक्ष रहने की वजह से बाहर हो गए। फिर नरेंद्र मोदी सीएम होने की वजह से। सो आखिर में नितिन गडकरी पर बात बनी। अब बीजेपी के नए खुलासे पर क्या कहें। सुषमा का त्याग या अंगूर खट्टïे हैं? या नितिन गडकरी को ताजपोशी से पहले हैसियत बता दी गई? वाकई गडकरी के लिए अनुशासन और हार से उबरने की चुनौती से ज्यादा डी-4 के नेता। पर संघ ने बीजेपी के लिए अध्यादेश जारी कर अपनी और पार्टी की भी किरकिरी करा ली। सो गुरुवार की रात संघ ने बयान जारी कर सफाई दी। डी-4 के नेता भी अध्यक्ष पद की दौड़ में। अब शुक्रवार को वेंकैया नायडू का बयान जारी हो गया। तो दो-तीन बातें कहीं। आडवाणी अपना पद पहले ही छोड़ेंगे। मैं अध्यक्ष पद की दौड़ में नहीं। और सबसे अहम बात, संघ और बीजेपी का सिर्फ वैचारिक रिश्ता। दोनों का एक-दूसरे के कामकाज में कोई दखल नहीं। रही बात अध्यक्ष की। तो न आरएसएस ने कोई नाम सुझाया, न खारिज किया। न ही बीजेपी ने अभी तक अपना कोई अध्यक्ष तय किया। सो आम सहमति की प्रक्रिया पूरी होने के बाद होगा नए अध्यक्ष का एलान। पर अब तक तो बीजेपी खम ठोककर कह रही थी। आडवाणी पूरे टर्म नेता विपक्ष रहेंगे। अब वेंकैया से रिटायरमेंट का एलान करवा दिया। पर सब कुछ लुटा के होश में आए, तो क्या किया। यानी कुल मिलाकर बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन की अंदरूनी कवायद तो खत्म हो चुकी। सुषमा लोकसभा में नेता, गडकरी अध्यक्ष, बाकी अपने पद पर रहेंगे। सो सिर्फ औपचारिकता ही बाकी।

--------

20/11/2009