Friday, December 17, 2010

राहुल के विचार पर हाय-तौबा जैसा क्या?

 विकीलिक्स के खुलासों ने अब भारत में खलबली मचा दी। आतंकवाद पर राहुल गांधी की अमेरिकी राजदूत से बातचीत ने सियासत का पारा चढ़ा दिया। पर पहले बात सोनिया गांधी के बारे में अमेरिकी मानसिकता की। विकीलिक्स के खुलासे में अमेरिका की ओर से सोनिया को अक्षम नेता कहा गया। एटमी डील के वक्त विपक्ष को साधने में नाकाम बताया। कोई मौका न चूकने वाली नेता भी कहा। तब सरकार के सहयोगी रहे वामपंथी नेता प्रकाश कारत अमेरिकी नजर में बांह मरोडऩे वाले नेता। यानी अमेरिका के मन की बात हो, तो परवेज मुशर्रफ जैसे लोग भी अच्छे हो जाते। पर सोनिया ने 2007 में सरकार बचाए रखने को प्राथमिकता दी। तो अमेरिका अक्षम बता रहा। पर अमेरिका का दोहरापन कोई छुपी हुई बात नहीं। सो शुक्रवार को सोनिया से जुड़े खुलासे पर उतना शोर नहीं मचा, जितना राहुल बाबा को लेकर। विकीलिक्स के हवाले से अपनी मीडिया ने ज्ञान की ऐसी गंगा बहाई, बीजेपी ने राहुल को अज्ञानी करार दे दिया। खबर चली- 'राहुल ने हिंदू कट्टरपंथियों को देश के लिए बड़ा खतरा बताया।' सो बीजेपी और संघ परिवार ने राहुल को नासमझ कहा। बीजेपी के रविशंकर प्रसाद बोले- 'राहुल का बयान बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और गैर जिम्मेदाराना। ये भारत के प्रति उनकी सोच का संकेत। राहुल के इस बयान से साफ हो गया कि वे भारतीय राजनीति के बारे में कितना कम जानते हैं।' बीजेपी का गुबार इतने से ही न निकला। रविशंकर बोले- 'राहुल ने एक ही झटके में लश्कर-ए-तोइबा और जमात-उद-दावा जैसे संगठनों और पाकिस्तान के दुष्प्रचार को सही ठहरा दिया। इससे आतंक के खिलाफ भारत की लड़ाई कमजोर होगी।' बीजेपी के बाद संघ के राम माधव ने मोर्चा संभाला। तो बोले- कांग्रेस नेताओं में आतंकवादियों का करीबी बनने की होड़ मची हुई है। इस बयान से राहुल की समझ उजागर हो गई। यानी विपक्षी बीजेपी ने राजनीतिक फायदे के लिए राहुल के बयान को भुनाने में कोई देरी नहीं की। सो जब कांग्रेस को लगा, बीजेपी राजनीतिक बढ़त ले रही। तो फौरन राहुल गांधी के हवाले से कांग्रेस का स्पष्टीकरण जारी हो गया। मामला सीधे राहुल से जुड़ा था। सो कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी हों या महासचिव जनार्दन द्विवेदी, तीन लाइन के बयान से इतर कुछ नहीं बोले। अब जरा राहुल का स्पष्टीकरण देखिए। कहा गया- 'हर प्रकार का आतंकवाद और सांप्रदायिकता देश के लिए खतरा। ऐसी गतिविधियां करने वाला कौन, यह मायने नहीं रखता। पर हमें हर तरह के आतंकवाद के प्रति सतर्क रहना होगा।' कांग्रेस प्रवक्ता ने तो बीजेपी को अपने गिरेबां में झांकने की नसीहत दी। पर जब वोट बैंक की राजनीति करनी हो। तो बीजेपी हो या कांग्रेस, भला कौन अपने गिरेबां में झांकता। अब भले विकीलिक्स पर राहुल और अमेरिकी राजदूत के बीच लंच के दौरान हुई बातचीत से बवाल मच गया। पर जरा विकीलिक्स के खुलासे का पूरा ब्यौरा देख लें। दस्तावेज के मुताबिक जब राहुल गांधी और भारत में अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर लंच पर बैठे। तो आतंकवाद पर चर्चा में राहुल ने उनसे कहा- 'भारत के कुछ मुस्लिम समुदायों में चरमपंथी गुट लश्कर-ए-तोइबा के समर्थन के सबूत हैं, लेकिन देश के लिए बड़ा खतरा कट्टरपंथी हिंदू गुटों का बढऩा है, जो मुस्लिम समुदाय के साथ धार्मिक तनाव और राजनीतिक टकराव पैदा करते हैं।' यानी राहुल के मुताबिक पाकिस्तान स्थित गुटों से होने वाले आतंकवादी हमलों पर कट्टरपंथी हिंदुओं की प्रतिक्रिया चिंता की बात। सचमुच अगर देश में इस तरह प्रतिक्रिया होने लगे, तो फिर देश के हालात क्या होंगे? माना, राहुल हों या कोई और, वोट बैंक की राजनीति या तुष्टिकरण में पीछे नहीं। सबका अपना-अपना स्वार्थ और वोट बैंक होता। राजनीति करने वाले वैसे भी दूध के धुले नहीं होते। राहुल गांधी अयोध्या फैसले के कुछ दिन बाद ही मध्य प्रदेश दौरे के वक्त संघ और सिमी को एक तराजू में तोल आए थे। पर सियासत के तमाम खुरपेच के बावजूद अगर राहुल और अमेरिकी राजदूत के बीच हुई बातचीत को गहराई से देखें। तो शायद यही कहेंगे, मचा शोर पहलू में बहुत, पर चीरा तो कतरा ए खूं न निकला। राहुल ने किसी जनसभा में यह टिप्पणी नहीं की। सो कम से कम इस बयान को वोट बैंक की राजनीति नहीं कह सकते। अलबत्ता यह राहुल की गंभीर चिंता को दर्शा रहा। सो किसी भी राष्ट्रभक्त नागरिक को सकारात्मक सोच दिखाने की जरूरत। अगर कथित इस्लामिक आतंकवाद के जवाब में कथित हिंदू आतंकवाद विकराल रूप धर ले। तो देश की तस्वीर क्या होगी? ऐसा भी नहीं कि मालेगांव और अजमेर जैसे ब्लास्ट में हिंदू कट्टरपंथियों की भूमिका नहीं। आम तौर पर किसी भी देश में अल्पसंख्यक खुद को थोड़ा असुरक्षित मानते। पर जब बहुसंख्यक आबादी के कुछ लोग बदले की आग भडक़ाएंगे। तो पाक और भारत में क्या फर्क रह जाएगा? पाक आज अपनी ही आग में कैसे झुलस रहा, जगजाहिर। अब राजनीति का सवाल, तो बीजेपी को भी अपना इतिहास याद रखना होगा। अगर राहुल का बयान आतंकवाद पर लड़ाई कमजोर करने वाला। तो फिर 28 जुलाई 2008 को दिया सुषमा स्वराज का बयान क्या था? जब 25-26 जुलाई 2008 को बेंगलुरु-अहमदाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट हुए। तो सुषमा ने बम धमाके का आरोप सीधे केंद्र सरकार पर फोड़ दिया। दो बीजेपी शासित राज्यों में एक साथ हुए धमाकों को उन ने मनमोहन के विश्वास मत से जोड़ा था। यों बीजेपी ने बाद में बयान से दूरी बना ली। पर सुषमा ने अपना बयान वापस नहीं लिया। सुषमा ने तो बाकायदा बीजेपी के मंच से बयान दिया था। राहुल ने तो लंच भेंट में अनौपचारिक बातचीत की।
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17/12/2010