Wednesday, November 3, 2010

लुटे-पिटे ओबामा से भला कैसी उम्मीद?

तो धनतेरस भी बीत गया। बाजारों में खूब रौनक रही, लोगों ने दिल खोलकर खरीददारी की। भले भारत दो हिस्सों दिखता हो, जैसा खुद राहुल गांधी कह रहे। पर अपने भारत की यही बड़ी खासियत, त्योहार के रंग में लोग इस कदर रंग जाते। अमीरी-गरीबी का फर्क भले कुछ पल के लिए ही सही, पर मिट सा जाता। अपनी संस्कृति में यही अनोखापन, जो विविधता से भरे भारत को एक सूत्र में पिरोए रखता। पर देखिए, जहां त्योहार हमारी एकता का आदर्श बन जाता। वहां आदर्श के नाम पर नेता-नौकरशाह कितनी लूट मचाते। बुधवार को नौ सेना ने रक्षा मंत्रालय को अपनी अंतरिम रपट दी। तो साफ कर दिया, सोसायटी की जमीन पर सेना का हक। पर महाराष्ट्र सरकार भी अपना दावा जताती रही है। नौ सेना ने सोसायटी को एनओसी नहीं दी। सुरक्षा के लिहाज से मौजूदा इमारत को खतरा भी बताया। अब सवाल अपनी नौ सेना से भी। नेताओं-नौकरशाहों की नीयत तो हमेशा ही रेवडियों की खातिर लपलपाई रहती। पर नौ सेना के अहम ठिकानों के बिलकुल पास में 31 मंजिला इमारत खड़ी हो गई। तो नौ सेना को तब क्यों नहीं दिखा। इतनी बड़ी इमारत कोई रातों-रात तो खड़ी नहीं हो गई। सो सवाल, नौ सेना ने पहले ही इस इमारत का निर्माण रुकवाने को कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए? अपना इरादा नौ सेना की क्षमता पर संदेह का नहीं। पर सेना की रपट से ही यह सवाल निकल रहा। आखिर नौ सेना किस तरह से सुरक्षा का जिम्मा संभाल रही थी, जो इतनी बड़ी इमारत बन गई और उसे पता भी नहीं चला? यानी इस आदर्श घोटाले में सबके सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे निकले। अगर सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत नहीं होती। तो इतनी बड़ी भ्रष्ट इमारत खड़ी नहीं हो पाती। सो आदर्श फ्लैट धारको में नेताओं-नौकरशाहों के साथ-साथ सेना के नामी-गिरामी हस्तियों की भी कलई खुल गई। अब तक खुद को पाक बताने वाले विलासराव देशमुख के भी चेहरे से नकाब उतर गया। जब कानूनी सीमा से बाहर जाकर आदर्श सोसायटी को फायदा दिलाया। सो आदर्श के चक्कर में फर्श घिस रही कांग्रेस। ऊपर से कॉमनवेल्थ करप्शन पर बीजेपी लगातार परतें उधेडऩे में जुटी। नितिन गडकरी ने केबिनेट के फैसलों के नोट जारी कर दिया। तो शाहनवाज हुसैन ने आरोप लगाया, घोटाले में कांग्रेस खुद चोर और चौकीदार बनी बैठी। सो कांग्रेस अबके भ्रष्टाचार के जाल में बुरी तरह फंस चुकी। मंगलवार के कांग्रेस अधिवेशन में भ्रष्टाचार पर चुप्पी मीडिया की सुर्खियां बनी। तो बुधवार को कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी सफाई देने मैदान में आए। उनने मीडिया की समझ पर सवाल उठा अपनी समझनदानी बड़ी बता दी। बोले- आपलोग सोनिया गांधी के भाषण को सही ढंग से समझ नहीं पाए। उन्होंने वर्करों को बुनियादी मूल्य न भूलने और संयम-सादगी का मंत्र दिया था, जिसमें संदेश साफ निहित है। यानी कांग्रेस भ्रष्टाचार के सिवा बाकी सभी मुद्दो पर सीधा-सीधा बोलती है। अब इसे राजनीतिक बेशर्मी नहीं, तो और क्या कहेंगे? भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मुद्दा, पर कांग्रेस सीधा बोलने से बच रही। अब अगर मनीष तिवारी की दलील मान भी लें। तो क्या मंगलवार को सोनिया का भाषण दिग्वििजय सिंह को भी समझ नहीं आया। उन ने तो मंगलवार को ही कहा था, जरुरी नहीं हर मंच से भ्रष्टाचार की बात हो। सो कांग्रेस के वाकई क्या कहने। अब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दौरे के बाद फिर हंगामा बरपेगा। बीजेपी ने संसद में घेरने की पुख्ता रणनीति बना ली। पर उससे पहले बराक ओबामा के स्वागत की तैयारी में मनमोहन सरकार बिछ चुकी। दिवाली के मौके पर मुंबई छावनी में तब्दील हो गई। ओबामा के संग तीन हजार से अधिक लोग आ रहे। सो अमेरिका मुंबई विजिट पर रोजाना 900 करोड़ खर्च करेगा। अब आप ही सोचिए, ओबामा का सीधे भारत की आर्थिक नगरी मुंबई में आना। सारा फोकस मुंबई पर करना, क्या यों ही। सही मायने में भारत में दिवाली का जश्न, तो उधर अमेरिका में बराक ओबामा का दिवाला निकल गया। लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच जिस तरह अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति होने का गौरव हासिल किया। अब धराशायी मार्केट की तरह लोकप्रियता भी गिर गई। मध्यावधि चुनाव में ओबामा की पार्टी डेमोक्रेटिक का हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में बहुमत खत्म हो गया। अब रिपब्लिकन ने बहुमत हासिल कर लिया। सीनेट में भी रिपब्लिकन डेमोक्रेट के करीब आ गई। यानी 21 महीने में ही ओबामा लुट गए। यों व्यक्तिगत तौर पर लोग ओबामा को पसंद करते, पर उनकी नीतियां बेअसर साबित हुई। आर्थिक मंदी से उबरने में नाकाम ओबामा अब भारत दौरे से खुद उम्मीद लगाए बैठे। सो दौरे से पहले ही कह दिया, सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता, दोहरी टेक्नोलॉजी का मामला बेहद जटिल। पर एक पते की बात कह गए ओबामा। उनने पाक को मुंबई हमले के दोषियों पर जिम्मेदार कार्रवाई की नसीहत दी। तो लगे हाथ, रणनीतिक साझेदारी के लिए भारत को अपनी टॉप पालिसी बताया। आखिर में कहा, दुनिया में बहुत नेताओं से मिला। पर उनमें मनमोहन सर्वाधिक अदभूत नेता। यानी कुल मिलाकर अमेरिका हमें जुबानी सराहना देगा, बदले में भारत के बाजार में अपना माल खपाने का बंदोबस्त कर जाएगा। वैसे भी लुटे-पिटे ओबामा से भारत भला उम्मीद भी क्या करे।
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03/11/2010