Wednesday, January 12, 2011

गठबंधन नहीं, कांग्रेस के लिए सत्ता ही मजबूरी!

तो राहुल के बोल पर राहु सवार हो गया। महंगाई अब गठबंधन पर भी महंगी पड़ रही। सो बुधवार को एनसीपी ने राहुल और कांग्रेस को खरी-खरी सुनाने में कसर नहीं छोड़ी। महंगाई के लिए शरद पवार नहीं, सामूहिक जिम्मेदारी की दलील दी। एनसीपी के प्रवक्ता डी.पी. त्रिपाठी ने राहुल गांधी की टिप्पणी को तथ्यहीन और दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। कांग्रेस को इतिहास याद करा बोले- 'राहुल का बयान जनमत पर हमला है। देश की जनता ने 2004 और 2009 में स्पष्ट कर दिया- बंधन नहीं, गठबंधन की सरकार चाहिए। अगर कांग्रेस एक दलीय शासन का सपना देख रही, तो अब यह मुमकिन नहीं। बिहार में नौ से चार सीट पर आ चुकी कांग्रेस एक दलीय शासन कैसे सोच रही?' त्रिपाठी ने इंदिरा राज के वक्त महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए जेपी आंदोलन की भी याद कराई। सवाल उठाया- तब महंगाई पर कंट्रोल क्यों नहीं कर पाई कांग्रेस? त्रिपाठी ने सोनिया गांधी पर भी निशाना साधा। बोले- 'दुनिया के 65 देशों में आज गठबंधन की सरकार चल रहीं, जिनमें इटली भी शामिल।' यों त्रिपाठी की दलील सोलह आने सही। पर सवाल- गठबंधन में सिर्फ एनसीपी को ही मिर्ची क्यों लगीं? पवार के बोल महंगाई को बढ़ाने में कितने असरदार रहे, यह दोहराने की जरूरत नहीं। सो एनसीपी के त्रिपाठी और तारिक अनवर ने राहु की भूमिका निभाई। तो कुछ देर बाद प्रफुल्ल पटेल ने राहु दोष से मुक्ति का मंत्र बांच दिया। यों राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा आम हो चुकी, एनसीपी की कमान पवार के बाद जैसे ही दूसरी पीढ़ी के हाथ गई, प्रफुल्ल कांग्रेस की राह पकड़ेंगे। सो बुधवार को प्रफुल्ल का बयान हैरत में डाल गया। उन ने राहुल को सही, अपनी पार्टी के प्रवक्ता को गलत ठहरा दिया। पर मुश्किल में बेचारी कांग्रेस फंस गई। सो कांग्रेस ने राहुल के बयान पर मचे बवाल का सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ दिया। अपने अभिषेक मनु सिंघवी बोले- राहुल ने ऐसा कुछ नहीं कहा, वह सिर्फ इतिहास का जिक्र कर रहे थे। पर मीडिया ने बात का बतंगड़ बना दिया। अब आप खुद ही देख लो, लखनऊ में राहुल ने क्या कहा था। एक छात्र का सवाल था- 'इंदिरा जी के राज में तो कांग्रेस की सरकार भ्रष्टाचार और महंगाई पर आसानी से काबू पा लेती थी, आज ऐसा क्यों नहीं कर पा रही?' अब राहुल गांधी का जवाब देखो- 'तब एक पार्टी की सरकार थी, जबकि आज गठबंधन की सरकार है। और गठबंधन की अपनी कुछ मजबूरियां होती हैं।' यानी कांग्रेस प्रवक्ता की भी दलील सही। राहुल ने न एनसीपी का नाम लिया, न महंगाई-भ्रष्टाचार का। पर राहुल की टिप्पणी का मतलब क्या था? उन ने महंगाई और भ्रष्टाचार पर लाचारी की वजह गठबंधन की राजनीति बताई। सो अभिषेक मनु सिंघवी ने बेहिचक कह दिया- हमारी गलती हो गई कि छात्रों और राहुल के बीच वन-टू-वन बातचीत में दो मिनट 50 सैकिंड के लिए मीडिया को जाने दिया। यानी सच का खुलासा हो गया, तो ठीकरा मीडिया के सिर। पर गठबंधन की लाचारी राहुल ही नहीं, मनमोहन भी जता चुके। कांग्रेस मंच से महंगाई का ठीकरा पवार के सिर कई बार फोड़ा जा चुका। सो सवाल- अगर महंगाई के लिए सिर्फ शरद पवार का मंत्रालय जिम्मेदार, तो मनमोहन-प्रणव-आनंद शर्मा-मुरली देवड़ा क्या कर रहे? क्या देश के पीएम, वित्त मंत्री, वाणिज्य मंत्री और पेट्रोलियम मंत्री की कोई जिम्मेदारी नहीं? पेट्रोल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त किसने किया? पेट्रोल-डीजल के दाम बजट में किसने बढ़ाए? पहली बार ऐसा हुआ, जब बढ़ी हुई पेट्रोल की कीमत पर पीएम ने राष्ट्र को संबोधित किया। यही हाल भ्रष्टाचार का। माना, ए. राजा गठबंधन की मजबूरी थे। पर कलमाड़ी कौन? भ्रष्टाचार के आरोपी पी.जे. थॉमस को देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी का मुखिया बनाने वाले पीएम किस पार्टी के? भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित प्रसार भारती के मुखिया बी.एस. लाली किसकी सलाह पर बनाए गए थे? महंगाई को सरकार के कंट्रोल से बाहर बताने वाले चिदंबरम किस पार्टी के? आम आदमी को कुत्ते का बिस्कुट खाने की सलाह देने वाले किस पार्टी के महानुभाव थे? क्या महंगाई ने आम आदमी की जेब की तरह सरकार का मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया? क्या यही है कांग्रेस की अतीत की नींव पर भविष्य का निर्माण? याद करिए यूपी विधानसभा चुनाव का वाकया। तो राहुल ने 20 मार्च 2007 को कहा था- 'अगर 1992 में नेहरू-गांधी परिवार का कोई सत्ता में होता, तो बाबरी ढांचा न गिरता।' फिर कुछ दिन बाद 16 अप्रैल को पाकिस्तान तोडक़र बांग्लादेश बनाने का श्रेय इंदिरा गांधी को दिया था। तब राहुल ने कहा था- 'गांधी परिवार जो ठान लेता है, उसे पूरा करके ही दम लेता है। चाहे वह आजादी की लड़ाई हो, चाहे पाकिस्तान तोडक़र बांगलादेश का निर्माण, चाहे भारत को 21वीं सदी में ले जाना, सब नेहरू-गांधी परिवार ने किया।' अब महंगाई के लिए गठबंधन को जिम्मेदार ठहरा रहे। तो सवाल- कांग्रेस के लिए आम आदमी का दर्द बड़ा या सत्ता में बैठकर मलाई काटना? अगर कांग्रेस सच में आम आदमी की हितैशी, तो पवार को क्यों झेल रही? चढ़ जाने के गठबंधन की बलि और महंगाई पर काबू करके दिखाए। तो अतीत की नींव पर भविष्य की बुलंद इमारत दिखे। पर 20 मार्च 2007 को राहुल के बयान पर सुषमा स्वराज की टिप्पणी में अब दम नजर आ रहा। उन ने कहा था- 'जब मनमोहन पीएम नहीं होंगे, तो महंगाई का ठीकरा कांग्रेस उनके सिर फोड़ेगी।' अब तो मनमोहन के विकास का ढोल भी फूट रहा। औद्योगिक विकास दर में साढ़े आठ फीसदी की गिरावट दर्ज हुई।
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12/01/2011